लोकतंत्र में पत्रकारों का दायित्व

gantantra men patrakaron ki bhumika par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) जागरूक प्रहरी की सार्थक भूमिका (2) सत्य घटना व जानकारी का स्रोत (3) अपनी जान पर खेलकर कर्त्तव्य-निर्वाह (4) जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम (5) उपसंहार।

पत्रकार लोकतंत्र में एक जागरूक प्रहरी की सार्थक भूमिका का निर्वाहक होता है और समाचार-पत्र लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहां गया है। समाचार-पत्र और पत्रकार ही समाज की खोई शक्ति को पुनः जागृत करने का कार्य करते हैं। पत्रकार ही अपने समाचार-पत्र के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों को उजागर कर समाज को जागरूक बनाते हैं। कवि मनोहर लाल ‘रत्नम’ ने अपनी कविता ‘पत्रकार प्रहरी होता है’ में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है कि-

लोकतंत्र की मर्यादा का, पत्रकार प्रहरी होता है।

मन का भावुक पत्रकार यह, समय पड़े जहरी होता है।

लोकतंत्र में पत्रकार सत्य और सही बात कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करता। राजनैतिक बेईमानी, प्रशासन की कमजोरियाँ, चहूँ ओर फैला भ्रष्टाचार, नेताओं के झूठे आश्वसनों का पत्रकार ही पर्दाफाश करता है। वर्तमान में पत्रकार दो प्रकार से देखे जा सकते हैं, एक तो प्रकाशन समुदाय से जुड़े पत्रकार जिसे आज हम ‘प्रिंट मीडिया’ के नाम से जानते हैं और (दूसरे ‘मीडिया’ से जुड़े अर्थात् दूरदर्शन प्रणाली के पत्रकार। दोनों के पत्रकार चाहे समाचार-पत्र से जुड़े हों या दूरदर्शन से, समाचार एकत्र करने में अपने दायित्व का निर्वाह करते देखे गए हैं।

वर्तमान में युग दूरदर्शन का है और विभिन्न चैनलों के माध्यम से आज पत्रकार अपने कार्य को सुचारू रूप से कर रहे हैं। लोकतंत्र में पत्रकार आज इतना जागरूक है कि ‘तहलका’ और ‘तेलगी’ जैसे घिनौने कार्य का पत्रकारों ने अपनी जान पर खेलकर फर्दाफाश किया है। लोकतंत्र में इन पत्रकारों को इतनी स्वतंत्रता मिल पाना ही लोकतंत्र की जीत कही जा सकती है।

भारत देश प्रजातंत्र के भेष में परिवार तंत्र की स्थापना के प्रति समाज और देश को सचेत करने दायित्व इन पत्रकारों ने ही निभाया है। देश में हो रहे अनेकों कांड चारा घोटाला कांड, चीनी कांड, शेयर घोटाला कांड, बोफोर्स कांड, ताबूत कांड इत्यादि अनेकों घोटालों का भंडाफोड़ पत्रकारों ने ही किया है, यही कारण है कि आज बड़े-बड़े नेता भी यदि भय खाते हैं तो इस प्रकार के कर्त्तव्यनिष्ठ खोजी पत्रकारों से, जिनके प्रयास से नेताओं की काली करतूते जनता के सामने आती हैं।

पत्रकार अपनी लेखनी की पैनीधार से राजनीति की भी बखिया उधेड़ते ही रहते हैं। यदि देश का पत्रकार अपने कर्त्तव्य में विमुख हो जाए तो सारा समाज गँदला हो जाएगा। पत्रकार अग्रणी होकर समाज में हो रही अनेक घटनाओं की जानकारी जनता के समक्ष रखते हैं।

पत्रकार लोकतांत्रिक राष्ट्र ने जन-शक्ति का महान् प्रदर्शक है, जिसकी तत्परता से ही समाज में जागकरण आता है। पत्रकार ही जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है। पत्रकारों का साहस है कि वह अपने उस खुफिया कैमरे के माध्यम से बिक्रीकर अधिकारियों, आयकर विभाग के कर्मचारियों, नेताओं और पुलिस को रिश्वत लेते हुए दूरदर्शन के चैनलों पर दिखाकर लोकतंत्र में अपने दायित्व को निभाया है, ताकि देश की जनता इनके असली स्वरूप को पहचान सके।

समाज का आम नागरिक तो रात को अपने घर में आराम कर रहा होता है और पत्रकार खबरें खोज रहा होता है। टी.वी. पर अनेक चैनलों ने नए ढंग से विस्तार के साथ समाचारों को प्रसारित करना प्रारंभ किया है जिनमें सनसनी, अचल हैंडरेड, पुलिस फाईल में, काल-कपाल-महाकाल, वारदाता, सी. आई.डी., नाम से जो कार्यक्रम टी.वी. पर विभिन्न चैनलों द्वारा प्रसारित किए जाते हैं उनको बनाने में, फिल्माने में पत्रकारों का साहस और उनका कर्तव्य भी प्रशंसनीय है। तभी से कहा गया है कि ‘अपने देश की सीमाओं का पत्रकार प्रहरी होता है।’

प्रहरी पत्रकार के प्रतिनिधि मंडल के मुखिया से यह पूछ लिया कि आपकी कार में ‘लालबत्ती’ किस हैसियत से लगी है, क्योंकि आप न तो विधायक हैं, न सांसद हैं और न ही कोई मंत्री हैं तो गाड़ी पर लालबत्ती का कारण? इतना सुनते उस मुखिया के हिमायतियों ने पत्रकार के साथ मारपीट शुरू कर दी; उसी क्षण सभी टी.वी. चैनलों के पत्रकारों ने वह मारपीट और उस तथाकथित मुखिया नेता द्वारा बोली जा रही अभद्र भाषा को फिल्माकर पूरे देश को दिखा दिया। लोकतंत्र में पत्रकार ने केवल ‘लालबत्ती’ के अधिकार का प्रश्न ही पूछा तो हँगामा इतना हो गया कि जैसे किसी चोर को चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो।

आज के समय में पत्रकारिता का कार्य बड़ा जोखिम भरा है और जब तक पत्रकार निडर और निर्भीक नहीं है तब तक वह व्यक्ति पत्रकार के कार्य को भली प्रकार नहीं निभा सकता। आजकल तो महिलाएँ इस क्षेत्र में रुचि लेकर आगे आ रही हैं। भारत देश के नेता तो पूरे देश को दागी और कलंकित करने पर उतारू हो रहे लगते हैं और पत्रकार लोकतंत्र में अपने दायित्व को निभाने में तत्पर हैं।

लोकतंत्र में कपटतंत्र है, संविधान है मौन।

पत्रकार है सजग देश का, और न्याय है मौन॥

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