राष्ट्रभाषा का महत्त्व

hind bhasha ka mahattav par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) स्वतंत्र देश की संपत्ति (2) राष्ट्रभाषा को उचित सम्मान नहीं (3) हिंदी ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की भाषा (4) नेहरू जी का कथन (5) उपसंहार।

किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता को स्थिर बनाए रखने के लिए वहाँ के निवासियों की राष्ट्रीय चेतना सर्वाधिक महत्त्व रखती है। हमारे देश भारत में राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्र चिह्न तथा राष्ट्रभाषा का बराबर का महत्त्व है। यदि हमारे मन में अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं है तो हम राष्ट्र के प्रति भी अपनी आस्था नहीं रखते, यह स्पष्ट हो जाता है।

राष्ट्रभाषा स्वतंत्र देश की संपत्ति है और हमारे देश की राष्ट्रभाषा हिंदी है। लेकिन अधिकांश देशवासी हिंदी को महत्त्व न देकर अंग्रेज़ी के मोहपाश में फँसे बैठे हैं। इस प्रकार का व्यवहार राष्ट्रभाषा और राष्ट्र का अपमान है। राष्ट्रभाषा वस्तुतः दो पदों के योग से बनी है-राष्ट्र और भाषा, सीधे अर्थ में राष्ट्र की भाषा। यह भी स्थापित तथ्य है कि राष्ट्रभाषा का महत्त्व राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से ही है। एक ही राष्ट्र के निवासी जब आपस में मिलने पर बात विदेशी भाषा में करें तो यह एक सीधे से अर्थ में विपत्ति टूटना है। एक ही घर के तो व्यक्ति किसी विदेशी भाषा को अभिव्यक्ति का माध्यम बनायें तो माना जा सकता है कि वह दोनों वैचारिक स्तर पर ‘ दरिद्र’ हैं। दूसरे देश से भाषा का आयात कर अपना काम चलाना किसी भिखारीपन से कम नहीं कहा जा सकता। जिसकी अपनी भाषा है वह दूसरे की भाषा का सम्मान तो कर सकता है मगर दूसरी भाषा पर आश्रित होना दिवालियेपन से कम नहीं है।

यह एक निर्विवाद सत्य है कि हिंदी राष्ट्र की आबादी के एक बड़े भू-भाग की भाषा है। हिमगिरि से लेकर कन्याकुमारी तक हिंदी की पहचान और पहुँच है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसकी परंपरा अंततः पुष्ट और सुदीर्घ है। भक्तिकाल का संपूर्ण साहित्य भी हिंदी भाषा में ही रचित है।

गाँधीजी ने समस्त भारतीय भाषाओं में से केवल हिंदी को ही समस्त विशेषताओं से संयुक्त समझा। स्वतंत्र भारत में देश के सभी नेताओं ने हिंदी के महत्त्व को पूर्णरूपेण स्वीकार किया और भारत के संविधान में 14 सिंतबर 1949 को हिंदी को भारत गणराज्य की राष्ट्रभाषा घोषित किया और 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू करते समय देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया गया।

परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता के 55 वर्षों के बाद भी हम राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका उचित सम्मान और महत्त्व प्रदान करने में सफल नहीं हो पाये। आज भी हिंदी विरोधियों की संख्या कुछ कम नहीं है। कहने वाले यहाँ तक कह देते हैं कि अंग्रेज़ी ही भारत की एकता और अखंडता स्थिर रखने में सक्षम है। जबकि मेरे अपने मतानुसार अंग्रेज़ी के जानकार समूचे देश में 1/2 प्रतिशत लोग ही होंगे। हिंदी को पढ़ने, समझने, बोलने वालों की संख्या 75 प्रतिशत के लगभग हो सकती है मगर फिर भी हिंदी के साथ कैसी विडंबना है कि हर नागरिक डरे मन से ही हिंदी को स्वीकार करने की बात कहता है। किसी भी स्वाधीन देश में जो महत्त्व उसके राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज का होता है वही महत्त्व राष्ट्रभाषा का भी होता है। किसी प्रजातांत्रिक देश में भाषा की दीवार आवश्यक है। शासन के प्रत्येक कार्य को राष्ट्रभाषा में संपादित होना होता है। जब तक राष्ट्रभाषा हिंदी को उसकी उचित गरिमा प्राप्त नहीं होती तब तक हमारा देश वास्तविक अर्थों में सबल रह पाएगा व्यक्ति अपनी भाषा में ही स्पष्टता और सरलता के साथ अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। नूतन विचारों के स्पन्दन और ज्ञानार्जन का माध्यम राष्ट्रभाषा ही हो सकती है। राष्ट्रभाषा हिंदी जन-जन की वाणी है, जिसके अभाव में राष्ट्र प्रायः गूँगा-सा हो जाता है।

यह कहना तथ्य से परे की बात है कि हिंदी ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी विषयों की भाषा नहीं हो सकती। अब तक पर्याप्त हिंदी शब्दावली समृद्ध हो चुकी है और अभियंत्रण से लेकर चिकित्सा-विज्ञान तक के ग्रंथ इसमें प्रणीत होने लगे हैं। राष्ट्रभाषा हिंदी को हम उस अनुवाद की भाषा के रूप में नहीं देखना चाहते। हिंदी हमारी वाणी है। हमारी अस्मिता और हमारी मनीषा की महिमामयी प्रतिभा हिंदी है, हिंदी भाषा में मौलिक चिंतन, लेखन और अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों के रूप में तथा आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान की संवाहिका के रूप में पूरे वेग के साथ उभरकर जन-मानस के पटल पर राष्ट्रभाषा हिंदी के महत्त्व को और अधिक उभारना है।

अखिल भारतीय रूप से राष्ट्रभाषा हिंदी के महत्त्व को, गौरव के अनुकूल प्रतिष्ठित करना और प्रत्येक कार्य के लिए उसे अंगीकार करना नितांत आवश्यक है। यह कार्य पारस्परिक तालमेल, समन्वय के साथ-साथ भाषायी संस्कृति के विकास के लिए तथा भावनात्मक रूप से देश की एकता के लिए अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान स्थिति में राष्ट्रभाषा हिंदी को जनमानस की भाषा के रूप में अभिव्यक्ति की भाषा बनाकर, राष्ट्र की वाणी हिंदी को और मुखर करने की भहती आवश्यकता है।

कोटि-कोटि कंठों की भाषा, मेरे भारत की अभिलाषा।

हिंदी है पहचान हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी परिभाषा॥

राष्ट्रभाषा हिंदी के महत्त्व के संदर्भ में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा-“मैं किसी भाषा का पंडित तो नहीं हूँ, फिर भी मुझे भाषा के सौंदर्य से उसके शब्दों के संगीत से और शब्दों में भरे जादू और ताकत से मेरा प्रेम रहा है। मेरा विश्वास है कि लगभग दूसरी हर चीज के वनिस्बत भाषा किसी राष्ट्र के चरित्र की सही कसौटी है। अगर भाषा शक्तिशाली और ज़ोरदार होती है तो उसके इस्तेमाल करने वाले लोग भी वैसे ही होते हैं। अगर वह छिछली, लच्छेदार और पेचीदी है तो बोलने वाली प्रजा में भी वहीं लक्षण देखने को मिलेगा।

संविधान की धारा 351 के अंतर्गत हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो दिया गया है, मगर सरकारी स्तर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा का महत्त्व अभी प्राप्त न हो सका। इस कार्य के लिए हमें सरकार का मुँह ताकते नहीं रहना होगा। स्वयं आगे बढ़कर हमें यह उद्घोष करना होगा कि हम हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार कर उसके महत्त्व को स्थापित करने में योगदान करेंगे और कहेंगे-

जब तक भावुकता में बल है

जब तक नारी उर कोमल है

धरा पै बहता गंगा जल है

तब तक हिंदी अमर रहेगी।

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हिंदीभाषा

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