जनसंख्या घटाइए, वृक्ष लगाइए / वृक्षों से वायु, वायु से आयु

Indian population and importance of trees

संकेत बिंदु-(1) मनुष्य और प्रकृति के संतुलन के लिए (2) जनसंख्या पर नियंत्रण समय की माँग (3) सीमित परिवार और वृक्षारोपण (4) बढ़ती जनसंख्या भयानक समस्या (5) उपसंहार।

मनुष्य और प्रकृति का संतुलन बना रहे. इस प्रकार के प्रयास काफी समय से होते चले आ रहे हैं। इस प्रकार का संतुलन बने रहने से ही मानव जगत सुखी और स्वस्थ रह सकता है। वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि ने सारे प्रारूप और संतुलन को डगमग दिया है, जनसंख्या बढ़ जाने से भूमि तो नहीं बढ़ी और न ही उन्नत जल में ही वृद्धि हुई। हाँ इतना अवश्य हुआ कि नगरों और ग्रामों का जनसंख्या के अनुपात से विस्तार हुआ और हानि हुई उपजाऊ भूमि की, साथ ही वनों और वृक्षों की। वृक्ष समाप्त होने पर धरती पर प्रदूषण का साम्राज्य आने लगा और लोग असमय ही नये-नए रोगों से ग्रस्त होने लगे।

प्राचीन काल की एक घटना का स्मरण होता है कि रक्तबीज नामक एक दानव था, जिसको यह वरदान प्राप्त था कि तुम्हारे रक्त की जितनी बूँदें धरती पर गिरेंगी, तत्काल उतने ही रक्तबीज उत्पन्न हो जाएँगे। इस वरदान को प्राप्त कर रक्तबीज ने बहुत उत्पात मचाया, सारी सृष्टि त्राहि-त्राहि कर उठी अंत में माँ काली ने रक्तबीज के रक्त को खप्पर में भरकर पीना प्रारंभ किया तो रक्तबीज नामक दानव का अंत हुआ। आज देश की जनसंख्या भी रक्तबीज के रक्त की भाँति नित्यप्रति बढ़ती जा रही है। 1947 को जब भारत देश स्वाधीन हुआ तब देश की जनसंख्या केवल 34 करोड़ थी जो अब 75 वर्षों में एक डेढ़ अरब से ऊपर जा पहुँची है। जनसंख्या की समस्या देश में सुरक्षा की भाँति विकट बन पड़ी है और इस विकट समस्या से निपटने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को तत्पर रहने की आवश्यकता है। कवि मनोहरलाल ‘रत्नम्’ की कविता में एक संदेश इसी समस्या पर उभरकर सामने आया है-

“युग स्रष्टा से युग द्रष्टा बनकर आओ,

संभव हो कुछ जनका जन्म घटाओ।

फिर से इतिहास के पृष्ठ को स्वयं रचा दो;

हे युवा वर्ग ! अब धरा पे वृक्ष लगा दो॥”  

जनसंख्या पर नियंत्रण समय की माँग भी है और धरती पर रह रहे मनुष्यों के स्वास्थ्य को बचाने का माध्यम भी यही है। इतिहास साक्षी है कि जब-जब धरती पर जनसंख्या अधिक हुई है तो उसके समापन का भी माध्यम साथ ही बना है। रामायण काल में रावण के कुकर्म द्वारा लाखों लोगों के प्राण गए, इस संदर्भ में एक कहावत आज भी सुनी जा सकती है।

‘एक लाख पूत सवा लाख नाती,

ता रावण घर दिया न बाती’।

यदि हम संतान उत्पत्ति पर ध्यान दें तो अंजनी का केवल एक पुत्र हनुमान था, जिसके पराक्रम की चर्चा समाज में विस्तार से है।

द्वापर युग में महाभारत काल में धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे और पांडव पाँच ही थे, परिणाम सामने हैं। अधिक संतान दुख का कारण तो बनती है, साथ ही रहन-सहन, भरण-पोषण में भी समस्या खड़ी हो जाती है। शकुंतला के एक पुत्र भरत ने इतिहास को अमर कर दिया। आज समय की माँग है कि धरती पर जनसंख्या वृद्धि की अब आवश्यकता नहीं हैं, अब यदि किसी वस्तु की आवश्यकता है तो देश की जनसंख्या के स्वास्थ्य की और इसके लिए प्रत्येक देश के एक नागरिक को अपने आसपास के क्षेत्र में एक-एक वृक्ष लगाने की आवश्यकता है। कहा गया है कि-

‘वृक्षों से वायु और वायु से आयु’

जब धरती पर वृक्ष लगेगें और हरियाली छाएगी तो प्रदूषण का विष स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। आज देश को स्वस्थ और बलिष्ठ नागरिकों की आवश्यकता है और यह आवश्यकता तभी पूरी हो सकती है जब देश के प्रत्येक नागरिक को उचित शिक्षा, भरपूर भोजन और आजीविका के साधन सुलभ हो सकें और इन सबका एक ही आधार सामने दिखाई पड़ता है सीमित परिवार और छोटा परिवार ही देश की खुशहाली में सहायक हो सकता है।

युवा वर्ग का दायित्व है कि देश के भविष्य को स्थिर रखा जाए, अपने परिवार को सीमित करके अपने आसपास फलदार वृक्षों का रोपण कर परिवार, समाज व देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने में अपनी भागीदारी का निर्वाह करें। यदि हम संतान और वृक्ष की तुलना करें तो वृक्ष हमारे लिए संतान से भी अधिकारी लाभकारी सिद्ध हो सकता है। संतान तो पथभ्रष्ट भी हो सकती है मगर वृक्ष पथभ्रष्ट नहीं होता। वृक्ष यदि फलदार है तो वह अवश्य फल देगा और यदि वृक्ष फलदार नहीं है तो छाया और ऑक्सीजन तो अवश्य देगा ही, साथ ही वृक्ष के पत्ते और लकड़ी भी उपयोग में लाई जा सकती है। धरती पर वनों के कटने से, महानगरों के विस्तार में अनेक वृक्ष काटे गए हैं जिनका परिणाम भी भयंकर हुआ है। प्रदूषण के रूप में, एक दोहे में यह पीड़ा साफ झलकती है-

बरगद, पीपल, नीम को, काट ले गए लोग।

हवा भी जहरी हो गयी, फैला जहरी रोग॥

अब प्रश्न उठता है कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या पर कैसे अंकुश लगाया जाए? सरकार ने जनसंख्या वृद्धि रोकने के अनेक उपाय किए हैं। आयुर्वेद में अनेक सर्व सुलभ साधन उपलब्ध हैं। एक युवक के विवाह पर एक घटना घटित हुई जिसकी चर्चा में यहाँ करना उचित इसलिए मानता हूँ कि जब युवक के विवाह के पश्चात् वह अपनी पत्नी को साथ लेकर एक वृद्ध महिला के चरण स्पर्श कर हटा तो उस महिला ने उस युवक को ‘दूधो नहाओ-पूतों फलो’ का आशीर्वाद दिया- “उस महिला के आशीर्वाद को यह युवक सुनकर बोला- दादी माँ मुझे नरक में धकेलने का आशीर्वाद नहीं चाहिए, मैं तो बस एक ही बालक को जन्म देकर अपना और उसी भावी बालकं का जीवन सुखमय बनाने का प्रयास करूँगा”, तभी उस युवक के पास खड़े एक कवि ने कविता की पंक्तियाँ इसी घटना पर सुना दी-

आशीर्वाद फूलो फलो का मिला, सुनकर मेरा कलेजा था हिला।

कह दिया मैंने तभी यह चीखकर- एक बालक में है तुझको क्या गिला?

यदि आज का युवक भी एक बालक को जन्म देने का (चाहे लड़का हो या लड़की) प्रण कर लेते। संभवतः जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश अवश्य लगेगा और साथ ही एक युवक एक वृक्ष लगाकर धरती पर हरियाली लाने का भी प्रयास करे तो माना जा सकता है कि आने वाले समय में भारत किसी रमणीय स्वर्गभूमि से कम नहीं रहेगा।

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Avinash Ranjan Gupta

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