संकेत बिंदु-(1) रेलगाड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान (2) प्लेटफार्म पर सार्वजनिक सुविधाएँ (3) गाड़ी के प्लेटफार्म पर पहुँचने से हलचल (4) रेलवे स्टेशन का कोलाहल पूर्ण वातावरण (5) उपसंहार।
यातायात के विविध साधनों में रेलगाड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सस्ता सुलभ और अधिक सुरक्षित सवारी है। इसलिए इसे जनता की सवारी कहा जाता है। आज देश में रेलों का एक जाल-सा बिछा हुआ है। स्वराज्य प्राप्ति के पश्चात् राष्ट्र के कर्णधारों ने इसे प्रत्येक जिले, नगर, कस्बे तथा गाँव तक पहुँचाने का प्रयास किया है और कर रहे हैं।
विशालकाय लौहपथगामिनी के ठहरने, विश्राम करने, कोयला-डीजल, बिजली व पानी लेने तथा अपने भार को हल्का करने और नया भार लेने के लिए निश्चित स्थान है-रेलवे स्टेशन। स्टेशन के अंदर गाड़ी पर यात्रियों के चढ़ने और उतरने के लिए एक चबूतरा या मंच होता है। इसे रेलवे की भाषा में ‘प्लेटफार्म’ कहते हैं।
यात्रियों की सुविधा के लिए प्लेटफार्म पर पानी के लिए सार्वजनिक नल होते हैं, क्षुधा- शांति के लिए जलपान की रेहड़ियाँ होती हैं, ज्ञानवर्धन और मानसिक भूख मिटाने के लिए बुकस्टाल होते हैं। इनके अतिरिक्त एक-दो रेहड़ियाँ बच्चों के खेल-खिलौनों या स्थान- विशेष की प्रसिद्ध वस्तुओं की भी होती हैं।
प्लेटफार्म पर गाड़ी में चढ़ने और उतरने वालों, अपने संबंधियों अथवा मित्रों की बिदाई अथवा अगवानी (स्वागत-सत्कार) के लिए आए प्रतीक्षार्थियों की भीड़ रहती है। इनके अतिरिक्त सामान उठाने, गाड़ी में रखने तथा उतारने के लिए कुलियों की भीड़ होती है। इनकी पहचान है: लाल या हरा कुर्ता, पगड़ी, सफेद पाजामा, बाँह पर बँधा हुआ रेलवे का अधिकृत बिल्ला। भारत की दरिद्र जनता का एक अंश हाथ में भिक्षा पात्र लिएँ उदर- पूर्ति के लिए याचना करने वाले नर-नारी, बाल-वृद्ध भी प्लेटफार्म पर भारत की आर्थिक दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत कर रहे होते हैं।
गाड़ी आने वाली है। स्टेशन-कर्मचारी ने गाड़ी आने की सूचना घंटी बजाकर या उद्घोषणा करके दे दी है। सबको सावधान कर दिया है। हलचल तेज हो गई है। भूमि पर चौकड़ी लगाए और बैंचों पर पैर लटकाए बैठे प्रतीक्षार्थी खड़े हो गए हैं। यात्रियों ने अपना सामान सँभालना शुरू कर दिया है। बच्चों को आवाजें लग रही हैं- ‘अज्जू-संजू, जल्दी आओ, गाड़ी आ रही है। ओ अलका, चाट के पत्ते को फेंक, जल्दी कर, वरना यहीं रह जाएगी!‘
कुलियों में हलचल मच गई है। जिन लोगों ने पहले ही अपने कुली निश्चित कर रखे हैं, वे उन्हें आवाज लगा रहे हैं। कुछ कुली स्वतः ही अपने निश्चित किए सामान की ओर दौड़ रहे हैं। पानी पिलाने वाले कर्मचारी ने बाल्टी भर ली है। द्वार पर नियुक्त टिकट चेकर, जो मटरगश्ती में मस्त था, द्वार पर पहुँच चुका है। पोर्टर और कुली डाक के थैले और आने वाली गाड़ी में चढ़ाने का सामान हाथ रेहड़ी में लेकर प्लेटफार्म पर आ रहे हैं।
धुआँ उड़ाती, सीटी बजाती, छक्-छक् करती अपेक्षाकृत मंद गति से चलती हुई रेलगाड़ी प्लेटफार्म में प्रवेश कर रही है। गाड़ी के प्लेटफार्म में प्रवेश करते हीं जनता में तेजी से हलचल मच गई है, गाड़ी एक झटके के साथ रुकती है। तो हलचल तीव्रतम हो उठती है।
गाड़ी में चढ़ने वाले और सामान लादे कुली गाड़ी में चढ़ने के लिए उतावलापन दिखाकर धक्का-मुक्की कर रहे हैं। उतरने वाले उनसे अधिक जल्दी में हैं। इस सारी आपा-धापी में नर-नारियों के तीव्र, कर्कश और घबराहट भरे स्वर सुनाई पड़ते हैं, ‘पूनम, तू चढ़ती क्यों नहीं?’ ‘अरे भाई साहब, जरा लड़की को तो चढ़ने दो।’ आदि।
उधर इस हल्के, मधुर, कर्णप्रिय शोर में वातावरण को अशांत कर रही है ‘वेंडरों’ की कर्कश आवाजें-‘चाय गरम’, ‘गर्म छोले-कुलचे’, ‘गरम दाल-रोटी लीजिए’, ‘गरम दूध’, ‘बीड़ी-सिगरेट’। इधर चाय के गिलास लिए हुए चाय-स्टॉल के लड़के डिब्बे की खिड़कियों के अंदर की ओर मुँह करके आवाज लगा रहे हैं, ‘चाय गरम गरम चाय।’
चार-पाँच मिनट में ही प्लेटफार्म का दृश्य बदल जाता है। उतरने वाले यात्री प्लेटफार्म छोड़ रहे हैं। प्लेटफार्म की भूमि और बैंचों पर के यात्री अब गाड़ी में बैठे हैं। बैंच प्रायः खाली हैं। कुछ लोग चाय-पान या अल्पाहार में संलग्न हैं। कुछ नीहे उतरकर सुस्ता रहे हैं। पानी पिलाने वाले और चाय बेचने वालों की फुर्ती में थोड़ा अंतर आ गया है। वेंडरों के कर्कश स्वर में धीमापन आ गया है। कुलियों की धका-पेल कम हो गई है। पुस्तकों का स्टॉल प्रायः सुनसान सा पड़ा है।
इधर, गाड़ी ने चलने के लिए सावधान होने की पहली सीटी दी। उधर, एक दंपति और दो बच्चे कुली से सामान उठवाए क्षिप्र गति से प्लेटफार्म पार कर गाड़ी में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। कुली सिर का सामान उतार और मजदूरी की प्रतीक्षा में ‘बाबू पैसे दो, बाबू पैसे दो’ के शोर में रत है। उधर बाबू जी हाँफते हुए जेब में हाथ डाल रहे हैं।
गाड़ी आई और चली गई। यात्री आए और चले गए। पर प्लेटफार्म शांत भाव से अपनी जगह अवस्थित है। वह आने वाली गाड़ी की प्रतीक्षा में है, जिसके आने से एक बार उसके हृदय में भी ज्वार-भाटा आता है, चेहरे पर रौनक आ जाती है।