वन संरक्षण

Importance of affortation in hindi

संकेत बिंदु-(1) वन संरक्षण की आवश्यकता (2) वन, प्राकृतिक वस्तुओं की खान (3) प्राकृतिक सुषमा का घर (4) जलवायु संतुलन तथा प्रदूषण रोकथाम (5) वनों का कटाव मानव का विनाश।

अमूल्य प्राकृतिक संपदा के कोष तथा नैसर्गिक सुषमा के आगार अरण्यों को बनाए रखने के लिए वन-संरक्षण की परम आवश्यकता है। समय पर संतुलित वर्षा जल का सदुपयोग तथा राष्ट्र को जलाभाव से बचाने के लिए वन संरक्षण की आवश्यकता हैं। जलवायु में असामयिक परिवर्तन रोकने, पर्यावरण को संतुलित रखने तथा वायु को प्रदूषण से अप्रभावित रखने के लिए वन संरक्षण की आवश्यकता है। वन्य प्राणियों के जीवन तथा वनों से प्राप्त औद्योगिक कच्चे माल को बचाने के लिए वन-संरक्षण की आवश्यकता है। इतना ही नहीं सस्य-श्यामला भूमि को बंजर होने से बचाने, भू-क्षरण, पर्वत-स्खलन को रोकने तथा पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वन संरक्षण की आवश्यकता है।

वन जड़ी-बूटियों की खान है, जिनसे जीवन रक्षक औषधियाँ बनती हैं। वृक्षों की छाल और पत्तियाँ भी जड़ी-बूटी का काम देती हैं। इसी प्रकार मधुमक्खियाँ फूलों के मकरंद से शहद बनाती हैं, जिसका उपयोग दवाइयों में होता है तथा खाने के काम भी आता है।

वनों से लकड़ी मिलती है। लकड़ी न केवल ईंधन के काम आती है, अपितु भवन, निर्माण मेज-कुर्सी, खिड़की-द्वार आदि अनेक वस्तुओं के निर्माण और साज-सज्जा इसका उपयोग होता है। वनों से बाँस, यूक्लिप्टस, फर की लकड़ी और घास मिलती है, जिनसे कागज बनता है। लाख और गोंद मिलता है, जो खिलौने बनाने और रंग में मिलाने के काम आता है। वनों में उत्पन्न वृक्षों से प्लाईवुड बनती है, जो सौंदर्य-सज्जा और खेल- कूद का सामान बनाने में काम आती है। खैर के पेड़ की लकड़ी से कत्था और केन्दू वृक्ष के पत्तों से बीड़ी बनती है। बाँस के वृक्षों से बंसलोचन मिलता है। नीलगिरि के वनों से रबड़ मिलता है।

वन प्राकृतिक सुषमा के घर हैं। वनों के चहुँ ओर फैली हरियाली, पक्षियों का कलरव, वन्य जंतुओं की क्रीड़ा, मन को मोह लेती है। शायद इसीलिए वर्डसवर्थ को कहना पड़ा, ‘इन्हें कोमल हाथ से स्पर्श करो, क्योंकि वनों में भी आत्मा है?’ (with gentle hand touch for – there is a sprit in the woods)। इसीलिए वन पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। पर्यटक जहाँ प्रकृति की दिव्य-सुषमा से आनंद-विभोर होता है, वहाँ मांसल धारीधार शरीर तथा अनोखे स्वभाव के बाघों को देखकर, सिंह- सिंहनी एवं सिंह-शावकों की क्रीड़ा को देखकर मंत्र-मुग्ध रह जाता है। पर्यटक जब हाथियों की मदमस्त चाल और उन्हें झुंड में पानी पीते और क्रीड़ा करते देखता है तो उसका शरीर रोमांचित हो जाता है। विशाल झील के तट पर खड़े सहस्रों वृक्षों पर चहचहाते, क्रीड़ा करते, बच्चों को भोजन कराते, रंग-बिरंगे पक्षियों को देखकर पर्यटक एक ऐसे देवलोक में पहुँच जाता है जहाँ शांति और सौंदर्य का अनंत साम्राज्य है। फिर पर्यटन व्यवसाय राष्ट्रीय आय का स्रोत भी है। इसलिए भी वन संरक्षण की आवश्यकता है।

वन जलवायु को संतुलित करते हैं। ठीक समय पर वर्षा करने में सहायक होते हैं। वन के वृक्ष पानी के व्यर्थ बहने को रोकते हैं। भूमि पर गिरे उसके फूल पत्ते ऊपर की मिट्टी को पानी के साथ बह जाने से रोकते हैं। इस प्रकार भूमि को संतुलित जल प्रदान कर उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। झील, तालाब, नदी, कुओं में जल का भंडारण सुरक्षित कर देश में जल की कमी नहीं होने देते।

दूसरी ओर वन पर्यावरण प्रदूषण को रोकते हैं। ऑक्सीजन प्रदान कर कार्बन डाइऑक्साइड को स्वयं खाते हैं। इससे जलवायु और भूमि का संतुलन बना रहता हैं। सिंह, बाघ, गैंडे, हाथी, भैंसे, सूअर आदि आकर्षक वन्य पशुओं और भाँति-भाँति के पक्षियों के लिए तो वन प्यारा घर है। वन उसका जीवन है। इसलिए राष्ट्रीय-सरकार ने राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्यों की व्यवस्था की है।

देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण वन्य-पदार्थों की माँग बढ़ी। माँग की पूर्ति के लिए वनों की अन्धाधुंध कटाई की गई। फलतः आज वन नंगे हो रहे हैं। वनों के नंगेपन की पहली मार पड़ी मौसम के बदलाव पर। बे-मौसमी बारिस और ओलों की मार से खलिहानों में खड़ी फसल चौपट होने लगी या अकाल पड़ने लगा।

वनों की अंधाधुंध कटाई से भू-क्षरण तथा पर्वतों का स्खलन हुआ। देश की हरियाली घटी, मरुस्थल का फैलाव बढ़ा। मैदानी वनों के कारण हवा का वेग रुकता था और पहाड़ी वनों के कारण वर्षा जल का प्रभाव कम होता था, वह समाप्त हुआ। अधिक वर्षा का जल पर्वतों की करोड़ों टन मिट्टी बहाकर नदियों में ले जाता है, इससे विनाशकारी बाढ़ें आती हैं।

दूसरी ओर, जनसंख्या वृद्धि के कारण ही कृषि के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता हुई, उसके कारण भी वन काटे जाने लगे। फलतः प्राकृतिक वातावरण या पर्यावरण में असंतुलन आया। इस क्षति की पूर्ति के लिए भी आज अधिक से अधिक वृक्ष लगाने की तथा वनों के संरक्षण की आवश्यकता है।

वन संरक्षण आज देश की परम आवश्यकता है। इसका संहार, इसको काटना दंडनीय अपराध होना चाहिए। वनों की वृद्धि न केवल मानव-जीवन के लिए लाभप्रद है अपितु प्राणिमात्र के लिए हितकर है। वनों का विध्वंस प्राणिमात्र की सामूहिक हत्या का षड्यन्त्र है। वनों का विकास प्राकृतिक सौंदर्य से देश को आकर्षक बनाना है, इनका संहार प्रकृति के नियमों का उल्लंघन है। कारण, गेटे के शब्दों में, ‘प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती और अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है।’

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Avinash Ranjan Gupta

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