छात्र-जीवन में खेलों का महत्त्व

importance of games and sports in students life an hindi essay

संकेत बिंदु-(1) खेल तन और मन स्वस्थ रखने के साधन (2) शरीर में लचकता और मन को मजबूत बनाना (3) स्वस्थ तन स्वस्थ मन (4) विद्यालय और कॉलेज में खेलों का महत्त्व (5) उपसंहार।

छात्र-जीवन में खेल छात्र के तन से स्वस्थ और मन से प्रसन्न रहने के साधन है। तन का स्वास्थ्य और मन की प्रसन्नता अध्ययन और मनन की ओर प्रेरित करती है। अध्ययन और मनन की प्रेरणा परीक्षा में अधिक अंक प्राप्ति का कारण बनती है। अधिक अंक प्राप्ति अर्थात् सर्वाग्रणी रहना छात्र जीवन का लक्ष्य होता है। इस प्रकार खेल छात्र जीवन के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक तत्त्व है।

वह विशिष्ट कालखंड जिसमें बालक या बालिका किसी शिक्षा संस्थान में अध्ययन करते हैं, छात्र जीवन कहलाता है। जीविकोपार्जन की चिंता से मुक्त अध्ययन की समयावधि छात्र-जीवन है। छात्रावस्था जीवन के निर्माण का काल है। सर्जनात्मकता या निर्माण का मूल है स्वस्थ मस्तिष्क। छात्र जीवन शिक्षा द्वारा मस्तिष्क के विकास का काल है। मस्तिष्क का विकास स्वस्थ शरीर पर निर्भर हैं। कहा भी है, Sound mind in a sound body. अर्थात् स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। स्वस्थ शरीर के लिए चाहिए-पाचनशक्ति का ठीक होना; वात, पित्त और कफ का समान रूप से संचालन; रस आदि धातुओं का निर्माण तथा मलों का नियमित विसर्जन। इन चारों की सुचारुता निर्भर करती है खेलों पर। छात्र-जीवन में मस्तिष्क के विकास के लिए खेल आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी हैं।

छात्र जीवन प्राय: शैशव के पश्चात् किशोरावस्था मे आरंभ होता है। किशोरावस्था में शरीर की हड्डियाँ कोमल तथा लचकदार होती हैं। इन्हें सरलता से तरोड़ा मरोड़ा जा सकता है। अतः विभिन्न प्रकार के खेलों के लिए इस अवस्था में शरीर आसानी से तैयार हो जाता है। भारत की सर्वश्रेष्ठ धाविका पी. टी. उषा ने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘मैंने अपना दौड़ प्रशिक्षण आठवीं कक्षा से आरंभ किया था।’ इससे स्पष्ट हुआ कि छात्र-जीवन में खेलों का अति महत्त्व है।

हड्डियों की कोमलता की तरह किशोरावस्था में छात्र का मन भी किशोर रहता है। किशोर मन का अर्थ है अपरिपक्व बुद्धि। इस किशोर मन को जिस प्रकार तैयार करेंगे, भावी जीवन उससे प्रभावित होगा। खेलों द्वारा किशोर मन में संघर्ष के लिए सिद्धता, विजय प्राप्ति की सोच, दलीय अनुशासन, परस्पर सहयोग तथा तन्मयता का स्वभाव बनता है। पराजित होने पर आत्मग्लानि नहीं होती, बल्कि पुनः दक्षता प्राप्ति की कामना जागृत होती है। गिर गिर कर उठने की चाह होती है। चोट लगने पर प्रतिशोध भावना नहीं पनपती, बल्कि सहिष्णुता का गुण उदित होता है। भावी जीवन की सफलता, प्रगति और समृद्धि के लिए खेलों द्वारा निर्मित गुण व्यक्ति के जीवन में नींव के पत्थर साबित होते हैं। महापुरुषों का जीवन इस बात का साक्षी है कि उनकी चारित्रिक विशेषताओं का श्रेय किशोर जीवन के खेलों को है। नेपोलियन को पराजित करने वाले सेनापति नेलसन ने कहा था, ‘The war of Waterloo was won in the fields of Edon.’ अर्थात् मेरी विजय का समस्त श्रेय (किशोरावस्था) के खेल मैदान को है।

छात्र जीवन में तन की स्वस्थता अनिवार्य तत्त्व है। तन स्वस्थ नहीं होगा तो मन उदास रहेगा, पढ़ने में चित्त नहीं लगेगा, पाठ याद नहीं होगा। तन स्वस्थ नहीं होगा तो चुस्ती-फुर्ती काफूर होगी, उत्साह उमंग दूर भागेंगे। किसी भी कार्य को करने में कष्ट का अनुभव होगा। चेहरे पर बारह बजे होंगे। ‘होमटास्क’ (गृहकार्य) पूरा नहीं होगा तो दंड से अपमानित होना पड़ेगा। कहावत प्रसिद्ध है, ‘All work and no play makes Jack a dull boy.’ अर्थात् खेल के अभाव में होशियार छात्र भी मूर्ख बन जाता है। अतः स्वस्थ छात्र के लिए खेल जरूरी हैं।

खेल भी दो प्रकार के हैं। एक, केवल मनोविनोद के खेल तथा दूसरे व्यायाम के खेल। ताश, शतरंज, कैरम, साँप-सीढ़ी आदि खेल केवल मनोरंजन करने वाले खेल हैं। इन खेलों से मन का व्यायाम होता है और रंजन भी। ताश का पत्ता फेंकने या शतरंज की चाल चलने में मन की सोच ही मानसिक व्यायाम है।

व्यायाम के खेलों में तन का व्यायाम तथा मन की कसरत, दोनों होती हैं। दौड़, आसन, कुश्ती, खो-खो, हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल आदि खेल व्यायाम के श्रेष्ठ साधन हैं। इन खेलों से शरीर सुडौल, सुगठित एवं सुदृढ़ होता है। पुट्ठे मजबूत होते हैं, सीना चौड़ा होता है गर्दन गोल तथा मोटी होती है। सभी इंद्रियाँ ठीक तरह से कार्य करती हैं। शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है और मन में उत्साह लहराता है। छात्रों के लिए ऐसे ही खेल उत्तम हैं।

स्कूल तथा कॉलिज में अपनी पहचान बनाने तथा अपना महत्त्व प्रकट करने का एक तरीका है-योग्यता। योग्यता भी दो प्रकार की हैं-पढ़ाई की योग्यता और खेल-कूद की योग्यता। यश की दृष्टि से खेल-कूद की योग्यता के सम्मुख पढ़ाई की योग्यता फीकी है। खिलाड़ी को छात्र भीड़ में भी पहचाना जाएगा। लोग उंगली के इंगित से उसकी पहचान प्रकट करेंगे। संगी साथी मैत्री भाव बढ़ाएँगे, गुरुजन स्नेह प्रदान करेंगे। यह ख्याति और प्रतिष्ठा खेलों का कृपा प्रसाद ही तो है।

छात्र-जीवन में खेल छात्र को सम्मानित करने के कारण भी हैं। स्कूल-कॉलिज में खेल प्रतियोगिताएँ होती हैं। प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान प्राप्त खिलाड़ी तथा प्रथम आई ‘टीमें’ पुरस्कृत होती हैं। इतना ही नहीं अंतर्नगरीय, अंतर्प्रान्तीय तथा अंतर्देशीय छात्र खेल आयोजित होते हैं। इनमें विजेता खिलाड़ी न केवल पुरस्कृत होते हैं, अपितु यश के भागी भी बनते हैं। छात्र जीवन के खेलों में अग्रणी खिलाड़ियों से ही एशियाड तथा ओलम्पिक खेलों के खिलाड़ी चुने जाते हैं। इस प्रकार खेल छात्रों को कीर्ति प्रदान करते

हैं।

छात्र-जीवन में खेलों को पढ़ाई से अधिक महत्त्व देने का अर्थ है, कम अंक पाने पर भी कालेज में प्रवेश पाने का विश्वास। पढ़ाई में फिसड्डी रह गए, येन-केन प्रकारेण उत्तीर्ण तो हो गए, या तृतीय श्रेणी में या द्वितीय श्रेणी अंक लेकर उर्त्तीण हुए तो कॉलेज में प्रवेश कहाँ? प्रवेश के अभाव में जब आप निराश हैं तो तभी पता चलता है कि खिलाड़ियों के कोटे से आप प्रवेश पा सकते हैं। असंभवता में संभवता No admission में Yes admission छात्र जीवन में खेलों का चमत्कार है।

छात्र-जीवन में खेल छात्र के शारीरिक और मानसिक विकास और मनोरंजन के साधन हैं। शिक्षण संस्था तथा समाज में अपनी पहचान और प्रसिद्धि के माध्यम हैं। भावी जीवन में संघर्ष और विजय-श्री के वरण की पृष्ठभूमि हैं।

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Avinash Ranjan Gupta

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