औद्योगीकरण शब्द उद्योग से बना है, इसका तात्पर्य है देश में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विकास । यद्यपि घरेलू अथवा कुटीर उद्योग भिन्न हैं फिर भी व्यापक अर्थ में देंखे तो वे भी औद्योगीकरण के अंतर्गत आते हैं। अंतर यह है कि कुटीर उद्योग प्रायः ग्रामीणों द्वारा घरों में चलाए जाते हैं। इनके लिए स्थान और पूँजी थोड़ी ही चाहिए। इसके विपरीत अन्य उद्योग अधिक धन से तथा बड़े स्थान पर लगाए जाते हैं। बहुत से बड़े उद्योग कुटीर उद्योग के सहारे चलते हैं। दोनों प्रकार के उद्योग राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। जनता को इन्हीं से सुविधाएँ प्राप्त होती हैं तथा राष्ट्र का सम्मान इन्हीं से बढ़ता है।
औद्योगीकरण का महत्त्व इस बात पर निर्भर है कि विभिन्न उद्योगों को चलाने में कितनी ईमानदारी अपनाई जाती है। विभिन्न औद्योगिक इकाइयों का सुनियोजित विकास आर्थिक दृष्टि से देश को सुदृढ़ बनाता है। रस्सी बनाना, मधुमक्खी पालन, गुड़, खिलौने, टोकरी, छोटे आभूषण बनाना, सूत कातकर मोटा कपड़ा बुनना आदि अनेक ऐसे कुटीर उद्योग हैं जिन्हें अपनाकर परिवार अपनी जीविका चलाते हैं। जूते गढ़ना, बर्तन बनाना, फर्नीचर निर्माण आदि अनेक ऐसे उद्योग हैं जो घरेलू स्तर पर भी चल रहे हैं और इनकी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ भी लगी हुई हैं। औद्योगीकरण से देश की अर्थव्यवस्था तो सुधरती है, सैकड़ों व्यक्तियों को काम भी मिलता है। बड़ी मशीनें प्राय: स्वचालित होती हैं फिर भी उन्हें ठीक रखने के लिए प्रशिक्षित कारीगरों की आवश्यकता होती है।
औद्योगीकरण समाज के लिए और अंततः राष्ट्र के लिए अत्यधिक लाभकारी है। विश्व में बढ़ते हुए विकास के समकक्ष खड़ा होने में नित नए उद्योगों को लगाना आवश्यक हो जाता है। बेरोज़गारी की समस्या को दूर करना इसी के द्वारा संभव है। सामान्य खाद्य सामग्री तथा दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं का आयात देश की आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डालता है। इनका उत्पादन देश में ही करना लाभदायक होगा। इसके लिए सरकार द्वारा निर्मित सुयोजनाओं को बड़े उद्योगपतियों द्वारा सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि देश की युवा पीढ़ी बाहर देशों में भागने के बजाए अपने ही देश में रहकर राष्ट्र विकास में सहयोग देगी। यह सत्य है कि देश की समृद्धि का प्रतीक औद्योगीकरण ही है।
औद्योगीकरण सदैव लाभकारी हो, ऐसा नहीं है। इसकी कुछ हानियाँ भी है। आज हम जिन परिस्थितियों में रह रहे हैं वे बहुत सुखद नहीं है। विभिन्न सामाजिक समस्याएँ विकसित हो गई हैं। भारत के ग्रामों में रहने वाली अधिकांश जनता तक औद्योगीकरण का पूरा लाभ नहीं पहुँचा। वहाँ के लोग नगरों की ओर भाग रहे हैं, जहाँ की आबादी आज इतनी बढ़ चुकी है कि नगर जंगल बनते जा रहे हैं। नगरों में प्रदूषण की बहुत बड़ी समस्या है। कुछ कारखानों से निकलने वाले रसायन से नदियों का जल दूषित हो रहा है। इसके साथ ही रात-दिन काम करने वाले कारखानें धुआँ उगल रहे हैं जिससे चारों ओर का वातावरण जहरीला हो रहा है। कुछ कारखानों में काम आने वाले कच्चे माल को देश के बाहर के देशों से मँगवाना पड़ता है जिसके लिए भारी मूल्य देना पड़ता है। यह भी देखने में आया है कि उत्पादन में लगकर अनेक परिवार अपने लिए आवश्यक आवश्यकताएँ जुटा पाते हैं, मशीनें उन सबको बेकार कर देती हैं उनके हाथ काम करने के अभ्यासी नहीं रहते। अपने पुश्तैनी धंधे को वे छोड़ चुके होते हैं और इस प्रकार उनके लिए जीवन जीना भी दूभर हो जाता है।
अस्तु, औद्योगीकरण फिर भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है, यदि कारखाने लगने के कारण बेरोज़गारों को घरेलू उद्योगों में काम देकर उनकी कारीगरी का लाभ उठाया जाए। विश्व में अपना स्थान बनाने के लिए अधिक से अधिक वस्तुएँ उत्पादित करनी होगी, इसके लिए औद्योगीकरण वर्तमान समय की अनिवार्यता है।