संकेत बिंदु-(1) हास्य का महत्त्व (2) कविताओं का हास्य रूप (3) मित्रों के साथ हास्य (4) कवि सम्मेलन की घटना (5) उपसंहार।
जीवन में हास्य को उतारना या हास्य में जीवन को जीना बड़ी साधारण बात है। मैं एक आप आदमी हूँ और जीवन में नित्यप्रति घटनाओं में हास्य खोजना सहज है। आइये, मैं आपको कुछ कवियों की कविताओं का पोस्ट मार्टम करना भी बातों ही बातों में सिखा दूँ।
मीराबाई का नाम आप सबने सुना होगा और मीरा जी के भजन भी आप सुने ही नहीं होंगे उन्हें गुनगुनाते और गाते भी होंगे आप-
‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई’ इस भजन को यदि हम हास्य में उतारें तो हमें केवल दो चार शब्दों की हेराफेरी करनी पड़ेगी। जैसे-
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई।
जाके हाथ पासपोर्ट, मेरो पति सोई॥
मीरा जी के बाद अब आप महाकवि सूरदास की रचना का भी लगे हाथों पोस्टमार्टम देखें तो आप हास्य रस के एक अच्छे कवि स्वयं हो जाएँगे।
‘मय्या मैं गाय चरावन जैहों।’ यह सूरदास जी का पद है और मय्या मैं तो कार चलावन जैहों गर्ल फ्रेंड को संग बिठाकर, पिकनिक खूब मनै हों, मैय्या मैं तो कार चलावन जैहों।
अगर इस हास्य की सरिता में हम शब्दों को बदल बदलकर उतारते रहेंगे तो हमें आनंद की अनुभूति होती रहेगी। कबीरदास जी ने भी अनेक दोहे लिखे हैं। वह तो बैकुंठ चले गए हैं, उनके दोहे में भी शब्द बदलकर हास्य का आनंद किया जा सकता है-
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जो जीवन में न हँसे, वह मूरख का बाप॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
मैरिज जो अब न करे, तो फेर करेगा कब॥
दोहे रहीमदास जी ने भी लिखे हैं, उनको भी हास्य में आओ उतार ही लिया जाए-
बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल।
रहिम हीरा ने कहा, तो दे मेरो मोल।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डार।
जहाँ काम आवे कच्छा, कहाँ करे सलवार॥
‘रत्नम्’ वह नर मर चुके, जो नित पियें शराब।
उनसे पहले वह मुए, जो इसको कहें खराब॥
इसी आधार पर हिम्मत से आगे बढ़ते रहें और कवियों की कविता उनका उसे अच्छे शब्द जड़कर हास्य बनाते रहें। अब सुभद्राकुमारी चौहान जो वीर रस की कवियित्री रहीं उनकी एक लोकप्रिय कविता ‘झाँसी की रानी’ की चीरफाड़ ऐसे की जा सकती हैं-
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़ी काकी के तन में फिर से आई नयी जवानी थी
गुमे हुए अपने गुस्से की, कीमत ही वह पहचानी थी
अकड़ रही थी खड़ी गली में, वह सोनू की नानी थी।
विभिन्न कवियों की कविताओं में हास्यरस की जबरन उत्पत्ति देखी। मुझे आशा है कि सभ्य समाज का यह भ्रम मिटाने के लिए कि हास्य की रचनाओं में सदा कमी रही। आप लोग भी मेरा अवश्य साथ देंगे। यही नहीं, मन बहलाने के लिए हास्य तो कहीं भी उत्पन्न किया जा सकता है। बातों में, मुलाकातों में और अब देखें वार्ताओं में। हास्य की झलका।
मित्रो, आप पूछेगें मैं कैसा हूँ, मेरा उत्तर है आई. एम. क्वाइटम्स् वैलम। मैंने अंग्रेजी के शब्दों को संस्कृत का रूप दिया है, ताकि आप जान सकें कि मैंने उच्च शिक्षा पाई है और मैं भी ग्रेजुएट हूँ। वैसे आजकल रिक्शा चलाने वाले और मजदूर भी अच्छी अंग्रेज़ी बोल लेते हैं।
एक बार मेरे एक मित्र घर आए, बातों का सिलसिला शुरू हुआ। काफी समय बीत गया, चाय के भी दौर चले। अंत में वह मित्र उठे और बोले- अच्छा डियर्स, अब मैं चलता हूँ, घर पर फादर्स आ गए होंगे।
शराब तो अब अंतर्राष्ट्रीय पेय बन चुकी है और सारे विश्व में इसके पीने वाले मिल जाते हैं। एक बार मुझे भी इसके मधुर सेवन-पान का सुंदर अवसर मिला। मैं शराब को दूध समझकर पूरा गिलास बिना पानी मिलाये पी गया, क्योंकि मैं किसी भी वस्तु में मिलावट करना पाप मानता हूँ। फिर क्या था, मुझे एक आदमी के चार-चार दिखाई पड़ने लगे। तभी वह आदमी मेरे पास आया जिसने मुझे शराब पिलाने की बाजी जीत ली थी और बोला- इच्छा हो तो और ले लो। मैंने कहा- एक-एक आदमी करके बात करें, मैं चार- चार आदमियों को एक साथ जवाब देने की हालत में नहीं हूँ।
बात शराब की है तो एक घटना और है। रात के लगभग ग्यारह बज रहे होंगे। मुहल्ले में पाँच शराबी आकर शोर मचाने लगे, रामलाल जी, रामलाल जी।
ऊपरी तीसरी मंजिल से रामलाल की पत्नी ने झाँककर कहा कि वह अभी घर नहीं आए। इस पर एक शराबी ने कहा कि आप नीचे आकर रामलाल को पहचान लो और ऊपर ले जाओ, आज जरा हम लोगों ने ज्यादा ही पी ली है।
कवि सम्मेलन में एक कवि ने शराब पी रखी थी। जब कविता सुनाने माइक पर आए तो बोले- दोस्तो, मैं आज जो कविता सुनाने लाया हूँ, वह तो घर रह गई है, माइक को पकड़ा और लड़खड़ाये। फिर बोले-यह मुझे स्टेज हिलता-सा लग रहा है, मैं हिलते हुए स्टेट और हिलते हुए श्रोताओं के सामने कविता पढ़कर कविता को बदनाम नहीं करना चाहता। पहले हिलना बंद कराया जाए, फिर मैं आपको कविता सुना सकता हूँ।
बातचीत में जो हास्य उभर आता है, मगर कभी-कभी हास्य बिना बात के भी हँस जाता है। एक घटना मेरे साथ ऐसी घटी कि मुझे जब याद आती है तो पसीना आ जाता है। मैंने सिल्क का कुर्ता-पायजामा सिलवाया और संयोग से नाड़ा (अजारबंद) भी सिल्की ही था। पहनकर बस में जा बैठा। रास्ते में पता नहीं कैसे मेरा नाड़ा लटक गया और बस में मेरे बराबर में एक महिला आकर बैठ गई। जब महिला की नजर नाड़े पर पड़ी तो उसने मेरे नाड़े को अपना नाड़ा समझकर अपनी सलवार में फँसा लिया और मैं पायजामा खुल जाने के भय से अपने नाड़े की गाँठ को पकड़कर बैठ गया। मगर महिला का जोर लगाना था कि सिल्क के नाड़े पर लगी गाँठ का खुलना स्वभाविक था। मेरा स्टॉप आ गया, मगर महिला थी कि उठने का नाम ही न ले रही थी, मुझे पसीने छूट रहे थे। मैंने संयम बाँध कर महिला से कहा-मैडम आपने जो नाड़ा अपनी सलवार में अड़ाया है वह आपका नहीं, मेरा है। आप अगर इसी तरह नाड़े से खींचतान करती रहीं तो, मैं बिल्कुल वैसा हो जाऊँगा। वह महिला मुझे घूरने लगी और मैं पसीने से तर होता चला गया।
एक बार मैं रात को जरा देर से घर पहुँचा तो पत्नी रो रही थी, मुहल्ले की पाँच-छ औरतें पास बैठी मेरी पत्नी को दिलासा दे रही थीं। मुझे देखते ही औरतें तो चली गईं, मैंने अपनी पत्नी से रोने का और औरतों के आने का कारण पूछा तो पत्नी ने बताया कि पिछले वाले शर्मा जी का लड़का एक घंटा पहले आया था। उसने कहा कि रोड पर कार-टैक्सी ऐक्सीडेन्ट में एक आदमी मर गया है, उसके मुँह पर डाढ़ी है और रंग साँवला है, दुबला- पतला सा है। मैंने समझा कि तुम्हारा ऐक्सीडेंट हुआ है, तुम मर गए हो और मैं भरी जवानी में ही विधवा हो गई हूँ। मेरे रोने को सुनकर मुहल्ले की औरतों का आना तो स्वभाविक ही था। भला तुम मरो और मुहल्ला अफसोस करने भी न आए, यह कैसे हो सकता है। डार्लिंग, अच्छा अब यह बताओ, तुम उस कार ऐक्सीडेंट में मरे क्यों नहीं, अगर मर जाते तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता, कम से कम सरकार से मुझे मुआवजा तो मिल जाता। कल से या तो जल्दी घर आया करो या फिर ……।