प्रसिद्ध कहावत है “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है।” स्वास्थ्य संसार का सर्वोतम रत्न है। इतिहास साक्षी है कि स्वास्थ्य के बल पर ही बड़े कार्य सिद्ध हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने नवयुवकों को बलवान बनने का संदेश दिया। उन्होंने यहाँ तक कहा “गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबॉल खेलने द्वारा स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे।” श्री सुभाषचंद्र बोस ने तो स्वस्थ लोगों की फ़ौज ही खड़ी कर के दी। स्वस्थ शरीर मनुष्य के लिए ऐसा वरदान है जो उसमें सद्गुणों का विकास करता है। इसी के बल पर वह सुख भोग सकता है तथा जीवन में आत्मविश्वास उत्पन्न कर सकता है।
खेलकूद कई प्रकार के हैं। घर के भीतर खेले जाने वाले खेल जैसे, कैरम, ताश, शतरंज आदि; मैदान में खेले जाने वाले खेल – जैसे, फुटबॉल, हॉकी, क्रिकेट, कबड्डी आदि; ऐसे खेल जिनसे धनोपार्जन हो- जैसे, कुश्ती, विभिन्न खेलों की प्रतियोगिताएँ, सर्कस आदि; ये सभी किसी न किसी रूप में मनोरंजन के साथ-साथ स्वस्थ भी करते हैं। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक ऐसी प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं जिनमें हारना-जीतना इतना महत्त्व नहीं रखता वरन् इनमें प्रतिभागी होना राष्ट्र के लिए गौरवपूर्ण होता है। ऐसे खेल अथवा प्रतियोगिताएँ व्यक्तियों को ही नहीं पूरे राष्ट्रों की जनता को एक दूसरे के निकट लाने में सहायक होती हैं।
व्यक्ति का जीवन संघर्ष से भरपूर है। विभिन्न प्रकार की चिंताएँ उसे दुखी करती रहती हैं। ऐसी स्थिति में खेलकूद यदि उसे कुछ समय के लिए कष्ट भूल जाने में सहायक होते हैं तो इससे सुखद अन्य बात नहीं है। आज शिक्षा और खेल एक दूसरे के पोषक हैं, विरोधी नहीं हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अति सर्वत्र हानिकारक है। प्रत्येक समय खेलते रहना, शिक्षा की उपेक्षा करना कोई भी व्यक्ति इसकी अनुमति नहीं देगा। पाश्चात्य विद्वान पी० साइमन ने कहा है, “अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं।” दोनों को साथ लेकर चलना ही सफलता की कुंजी है। प्रातः काल घूमना तथा व्यायाम, योग साधना आदि भी एक प्रकार से खेलकूद के रूप ही हैं। इनके द्वारा भी शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है।
विभिन्न खेलों से सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य खेल भावना के विकास के साथ अनुशासन में रहना सीख जाता है। उसमें धैर्य, सहयोग, सहनशीलता, उत्साह जैसे सद्गुणों का विकास होता है। खेल ही है जो मनुष्य को साम्प्रदायिकता से ऊपर उठाकर मिल जुलकर रहने का अवसर प्रदान करता है। भारत ने विश्व की प्रतियोगिताओं में खेल भावना से सदैव भाग लिया है। पी० टी० उषा, ध्यानचंद, खजान सिंह, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, विजय अमृतराज, आनंद, सतपाल आदि अनेक ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राष्ट्र के गौरव को ऊँचा उठाया है। खेल विश्वबंधुत्व की भावना का विकास करता है। आज ऐसे बहुत व्यापारिक संस्थान हैं जो शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद को भी महत्त्व देते हैं। शिक्षित खिलाड़ी को वे अपने संस्थान में नौकरी देकर अप्रत्यक्ष रूप से खेल भावना का विकास करते हैं।
विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों ने खेलों के विकास के लिए पृथक् मंत्रालय बनाए हुए हैं। भारत भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं है। खेलों को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं तथा आश्वासन दिया जाता है कि खिलाड़ियों को अवसर के साथ-साथ सुविधाएँ भी प्रदान की जाएँगी। खेलों के द्वारा स्वस्थ मनोरंजन होना चाहिए, यही आज की आवश्यकता है।