संकेत बिंदु-(1) खेल के बिना जीवन (2) खेलों से आत्म-विश्वास और वीरता का भाज (3) खेलों के प्रकार (4) खेलों में धन और यश की प्राप्ति (5) उपसंहार।
जीवन हैं भौतिक शरीर में प्राणों के बने रहने की अवस्था। खेल हैं समय बिताने, शरीर को स्वस्थ रखने तथा मन बहलाने के लिए किया जाने वाला काम। इस प्रकार संपूर्ण जीवन ही एक खेल है। खेलमय जीवन में ही भौतिक शरीर की गतिशीलता है, संवेदना है, आत्मतुष्टि है।
जीवन सौंदर्य की आत्मा है और खेल उसके प्राण प्राणों के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। खेल के बिना जीवन जड़ है। खेलमय जीवन ही जागृति है और उत्थान है, इसीलिए जैनेन्द्र कहते हैं ‘जीवन- दायित्व का खेल है और खेल में जीवन-दायित्व की प्राण संजीवनी शक्ति है।’
गतिशीलता जीवन का लक्षण है। गतिशीलता निर्भर करती है स्वस्थ शरीर पर। सुश्रुत संहिता के अनुसार स्वस्थ शरीर की पहचान है, जिसके वात, पित्त और कफ समान रूप से कार्य कर रहे हों, पाचन शक्ति ठीक हो, रस आदि धातु एवं मलों की क्रिया सम हो और आत्मा, इंद्रियाँ तथा मन प्रसन्न हों। इसका आधार है व्यायाम। महर्षि चरक ने कहा भी है, ‘शरीरस्य या चेष्टा, स्थैर्यार्था बलवर्धिनी देह व्यायामः।’ खेल व्यायाम का ही एक भाग है, मुख्य अंग है।
वैदिक काल से मानव की चाह रही है,
‘जीवेम शरदः शतम्। शृणुयाम शरदः शतम्।
प्रब्रवाम शरदः शतम्, अदीनाः स्याम शरदः शतम्।’
इतना ही नहीं वह चाहता है मेरा शरीर पत्थर के समान दृढ़ हो और चंद्रमा के समान दिनों-दिन बढ़कर खूब फले-फूले (गात्राण्यस्य वर्धन्तामंशुखाप्यायतामयम्) इस कामना पूर्ति के लिए चाहिए नीरोग काया और इसकी रामबाण औषध है ‘खेल’।
जीवन भोग का कोश है। इंद्रिय-जनित सुख तथा इच्छाओं की तृप्ति के लिए चाहिए वीरता। कहते भी हैं, ‘वीर भोग्या वसुंधरा।’ वीरता का मूल है आत्म-विश्वास। आत्म- विश्वास जागरण का मूल मंत्र है खेल।
खेल तीन प्रकार के हैं-मनोविनोद के खेल, व्यायाम के खेल तथा धर्नोपार्जन कराने वाले खेल। मनोरंजन के खेलों में ताश, शतरंज, कैरमबोर्ड, साँप सीढ़ी, जादुई करिश्मे आदि आते हैं। व्यायाम के खेलों में एथलेटिक्स, कुश्ती, निशानेबाजी, नौकायन, डोंगीचालन, घूँसे/मुक्केबाजी (बाक्सिंग), भारोत्तोलन (वेटलिफ्टिंग), साइक्लिंग, फेसिंग, जूडो, अश्वारोहण, तीरंदाजी, हॉकी, बालीबॉल, हैंडबॉल, फुटबॉल, टेनिस, टेबलटेनिस, क्रिकेट, खो-खो, कबड्डी आदि आते हैं। धनोपार्जन के लिए खेलों में सरकस का खेल, जादू के खेल तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले मैच आते हैं।
मनोरंजन के खेल मानसिक व्यायाम के साधन हैं। इनसे मानसिक थकावट दूर होती है, नवस्फूर्ति आती है, नवस्फूर्ति मन के संकल्पों का दृढ़ आधार है। सत्य संकल्प ईश्वर के प्रति सबसे बड़ी निष्ठा हैं, जीवन के शुभ और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
व्यायाम के खेलों से शरीर की पुष्टि, गात्रों की कांति, माँस-पेशियों के उभार का ठीक विभाजन, जठराग्नि की तीव्रता, आलस्यहीनता, स्थिरता, हलकापन और मल, मूत्र, पसीना आदि की नियमित शुद्धि होती है। पाचक रस अधिक निकलने से भूख बढ़ती है। शरीर में स्फूर्ति रहती है और मन में उत्साह रहता है।
धनोपार्जन कराने वाले खेलों से न केवल धन की प्राप्ति होती है, बल्कि यश भी मिलता है। हॉकी खिलाड़ी परगटसिंह। पुरुष तैराक खजानसिंह पहलवान ओमवीरसिंह। निशानेबाज सोमादत्त, क्रिकेटर कपिलदेव तथा समृद्ध स्पिन परंपरा को आगे बढ़ाने वाले अनिल कुम्बले। दौड़ में जलवे दिखाने वाले मिल्खा सिंह। भारतीय तैराकी के वर्तमान स्टार निशा मिलेट। टैनिस जगत की शान लिएंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी। ओपन बैडमिंटन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले पी. गोपीचंद। देश का सबसे महँगा फुटबॉल खिलाड़ी बाईचुंग भूटिया। शतरंज में मात्र बारह वर्ष की उम्र में इंटरनेशनल वीमेन्स बैंडमिंटन खिलाड़ी कोनुरुहम्पी। उभरती हुई महिला बैडमिंटन खिलाड़ी अर्पणा पोपट व पीवी सिंधु। भारोत्तोलक पद्मश्री कर्णम् मल्लेश्वरी तथा कुंजारानी देवी। गोल्डन गर्ल के नाम से प्रसिद्ध धाविका ज्योतिर्मय सिकंदर उड़नपरी पी.टी. उषा। महिला हॉकी खिलाड़ी नीलम जे. सिंह। इन सबने धन के साथ यश भी अर्जित किया है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जा रहे खेलों में, एशियाड और ओलम्पिक खेलों में धन और यश के साथ राष्ट्र जीवन की अस्मिता भी जुड़ जाती है। पदकों की प्राप्ति राष्ट्रों के गौरव और गर्व का परिचायक है। इसलिए प्रत्येक राष्ट्र अपने श्रेष्ठ खिलाड़ियों पर गर्व करता है।
खेल-कूद से अपने दल के अनुशासन में रहकर साथियों के साथ पूर्ण सहयोग करते हुए खेलने की भावना का उदय होता है। कारण, सहयोग और अनुशासन के बिना खेल चल नहीं सकता। हॉकी में हॉफबैक खेलने वाला खिलाड़ी अनुशासन तोड़कर, साथियों से सहयोग न करते हुए क्या कभी फारवर्ड खेलने का प्रयास करेगा? कदापि नहीं। अतः खेल-कूद से अनुशासन में रहने और सहयोग से कार्य करने की भावना जागृत होती है।
खेल-कूद से मनुष्य में पूरी तन्मयता से कार्य करने की लगन जागृत होती है। वह जब कोई खेल खेलता है, तो विजय पाने के लिए अपने अंदर की समस्त शक्तियों को केंद्रीयभूत कर लेता है। इसे ‘Sportsman spirit’ (खेल भावना) भी कहते हैं। इससे जीवन के हर कार्य में खिलाड़ी प्रवृत्ति से कार्य करने का स्वभाव बनता है। खेलने में चोट लगने पर खिलाड़ी प्रतिशोध लेने की बजाय कष्ट को सहन करता है। इससे मानव में सहनशीलता की भावना बढ़ती है।
सीखने की प्रक्रिया में खेलों का विशिष्ट स्थान है। शैशव और बाल्यकाल में तो खेलों द्वारा सीखने की सहज प्रवृत्ति है। शिशु खेल-खेल में खड़ा होना, चलना और दौड़ना सीखता है। बालक खेल-खेल में भावी जीवन का विकास करता है। गुड्डे-गुड़ियों के खेल में बालिका गृहस्थ जीवन की शिक्षा लेती है। अपने से छोटे तथा शिशुओं को खिलाने में बालक-बालिका अनजाने में मातृत्व-पितृत्व का अभ्यास करते हैं।