कारगिल-विजय

kargil jeet aur bharat ka jashn par ek shandaar nibandh

संकेत बिंदु-(1) आपरेशन विजय (2) कारगिल का इतिहास (3) पाकिस्तान की कारगिल क्षेत्र पर कुदृष्टि (4) पाकिस्तान की कूटनीति और भारत की विजय (5) उपसंहार।

कारगिल ‘ऑपरेशन विजय’ भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने वाली विजय गाथा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला अवसर हैं जब पाकिस्तान को बिना शर्त, बिना समझौते नियंत्रण रेखा से पीछे हटना पड़ा, पलायन करना पड़ा। यह पहला अवसर है जब विश्व मंच के प्रबल सूत्रधार अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिंटन के वार्त्ता-निमंत्रण को राष्ट्रीयता के पुरोधा पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने ठुकरा दिया। कूटनीति की चौसर पर भी विजय प्राप्त करके भारत को गौरवान्वित किया। विदेशनीति की विजय का यह पहला अवसर है जब पाकिस्तान के हिमायती अमेरिका और चीन ने भी उसका पक्ष लेने से इंकार ही नहीं किया, बल्कि उसे घुसपैठिए वापिस बुलाने की एकतरफा घोषणा करने को विवश होना पड़ा। यह पहला अवसर है जब ऑपरेशन विजय के दिनों में भारत का मुसलमान राष्ट्रीय धारा में बहता नजर आया और यह पहला ही अवसर है जब संघर्ष के समय भारत का विपक्ष अपनी सरकार की निंदा कर दुश्मन के हौंसले बुलन्द करता रहा।

1948 के अंतिम चरण में भारतीय सेना ने जोजिला और कारगिल को मुक्त करा कर, लद्दाख को बचा लिया था। सेना जब स्कार्दू को मुक्त कराने के लिए बढ़ने लगी तो पंडित नेहरू ने 1 जनवरी 1949 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी। परिणामतः कारगिल तो भारत के पास रहा, किंतु उसके निकट पहाड़ी क्षेत्र और चोटियाँ जहाँ से कारगिल नगर और श्रीनगर लेह मार्ग को निशाना बनाया जा सकता है, पाकिस्तान के अधिकार में रह गए।

1964 में जब पाकिस्तान ने कच्छ पर आक्रमण किया तो भारतीय सेना ने बलिदानों की भारी कीमत देकर इन चोटियों को जिन्हें ‘कारगिल हाइट्स’ कहा जाने लगा था, अपने अधिकार में ले लिया और श्रीनगर-लेह मार्ग को सुरक्षित कर दिया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू की अदूरदर्शिता और भारत की विदेश नीति और सुरक्षा नीति में तालमेल न होने के कारण कच्छ समझौते के अंतर्गत इन चोटियों को फिर पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भारतीय सेना ने फिर इन चोटियों को मुक्त करा लिया, परंतु 1966 में हुए ताशकंद समझौते के अंतर्गत इन्हें फिर पाकिस्तान को दे दिया गया।

1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने न केवल इन चोटियों को अपितु इनके साथ लगे हुए सियाचिन हिमनद तक का क्षेत्र फिर अपने अधिकार में ले लिया। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी पंजाब प्रांत का लगभग पाँच हजार वर्ग मील क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया और पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक भी बंदी बना लिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ‘शिमला समझौता’ कर, न केवल 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को लौटाया, अपितु विजित क्षेत्र भी लौटा दिए। कारगिल क्षेत्र भारत के पास रह गया। पाकिस्तान की तभी से निरंतर यह चेष्टा रही कि कारगिल क्षेत्र की चोटियों पर पुनः अधिकार कर लेह तथा हिमनद ग्लेशियर को श्रीनगर से मिलाने वाली सड़क को काट दिया जाए।

8 से 15 मई 1999 के बीच भारतीय गश्ती सैनिक दल ने कारगिल की पहाड़ियों पर घुसपैठियों को देखा और पाकिस्तान के इस षड्यंत्र को भाँपा कि वह पाकिस्तान-लेह-श्रीनगर सड़क संपर्क को काटना चाहता है। 26 मई तक सेना को यह भी विश्वास हो गया कि कारगिल, द्रास, बटालिक आदि क्षेत्रों में पंद्रह सौ तक घुसपैठिए जमे हुए हैं।

भारत ने पूर्ण तैयारी के साथ समूचे क्षेत्र पर हमला किया। भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने 18,000 फुट की ऊँचाई पर उड़कर जो कमाल दिखाया, वैसा चमत्कार भारतीय इतिहास के लिए अद्भुत था। दूसरी ओर, ग्लेशियर पोशाकों के अभाव में भी बहादुर पैदल सेना ने जो उत्साह, साहस और शौर्य प्रदर्शित किया, उसने अंततोगत्वा भारत का भाग्य ही बदल दिया।

पाकिस्तान ने भारत को पहले की तरह कूटनीति से पराजित करने का प्रयत्न किया। उसने अमेरिका और चीन का सहयोग लेने के प्रयास किए, किंतु भारत की कूटनीति और प्रधानमंत्री के नियंत्रण रेखा पार नहीं करने के संयम ने विश्वमंच पर भारत की साख बढ़ा दी। परिणामतः विश्व मंच से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा कि अपने घुसपैठियों को वापिस बुला ले। तब अमेरिका के राष्ट्रपति क्लिंटन ने दूरभाष से पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी को बातचीत के लिए तुरंत अमेरिका आने को कहा, किंतु वाजपेयी जी ने उनका निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। ‘इस घुसपैठ के खिलाफ संयुक्त अभियान में भारतीय सेना ने लगातार सफलता हासिल करते हुए बटालिक, द्रास और मश्कोह घाटी के क्षेत्र में पहाड़ी चोटियों को मुक्त कराने में कामयाबी हासिल की। इसके पश्चात् भारतीय सेना ने एक निर्णायक कदम उठाते हुए 13 जून को सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण लोलोलिंग चोटी पर फिर से अपना कब्जा कर लिया और तोलोलिंग के उत्तर में स्थित सैंडल तथा प्वाइंड 4590 क्षेत्र को दुश्मन से खाली कराने में सफलता हासिल की। तोलोलिंग विजय अभियान उस समय पूरा हुआ जब 20 जून को भारतीय सेना ने प्वांइट 5140 पर कब्जा कर लिया।

4 जुलाई 1999 को सेना और वायुसेना के संयुक्त अभियान के फलस्वरूप भारतीय सैनिकों ने द्रास क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण ठिकाने ‘टाइगर हिल’ की चोटी पर कब्जा करने में सफलता हासिल की। इसके पश्चात् 9 जुलाई के आते-आते पाकिस्तानी घुसपैठियों ने करगिल क्षेत्र से पीछे हटना शुरू कर दिया। भारतीय सेना ने बटालिक की महत्त्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तानी उग्रवादियों को पूर्ण रूप में भारतीय क्षेत्र खाली करने के लिए 16 जुलाई की समय सीमा निर्धारित कर दी।

कारगिल, द्रास, बटालिक, प्वाइंट 5140, तोलोलिंग आदि पहाड़ियों पर भारतीय विजय और विश्व जनमत के दबाव में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 12 जुलाई 1999 के अपने टी. वी. भाषण में घुसपैठियों की वापसी की घोषणा की। 14 जुलाई 1999 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा कर दी।

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