‘मद्यनिषेध’ शब्द में ‘निषेध’ जुड़ा है जिसका अर्थ मना करना, प्रतिबंध लगाना अथवा वर्जित करना है। मद्यनिषेध से तात्पर्य है, मदिरापान को कानूनी तौर पर मना करना। आज मद्य शब्द मदिरा या शराब तक ही सीमित नहीं है सभी प्रकार के नशीले पदार्थों के सेवन की मनाही इसमें सम्मिलित है। किंतु मद्यनिषेध शराबबंदी का पर्याय है उसी प्रकार अँग्रेज़ी का ‘प्रोहिबिशन’ शब्द भी शराब पीने की कानूनी मनाही का सूचक है। सभी जानते हैं कि शराब पीने का व्यसन परिवार को नष्ट कर देता है किंतु नागरिकों पर जबरदस्ती शराबबंदी लागू करना उनके मौलिक अधिकार का हनन माना जाता है। वास्तव में मद्यनिषेध नैतिक तथा नीतिशास्त्र से संबंधित है इसी कारण इस पर व्यापक चिंतन एवं विचार-विमर्श की आवश्यकता है। विशेषकर केंद्र सरकार को इस पर विस्तृत चर्चा करना अपेक्षित है।
शराब पीने की आदत हानिकारक है, यह सर्वविदित है। धनवान इस कारण पीते हैं क्योंकि उनके लिए यह प्रतिष्ठा की वस्तु है, उनके पास पैसा है। शराब के साथ और भी दूसरी बुराइयाँ साथ आती हैं, रोग भी लग जाते हैं। निर्धन इसलिए पीने लगते हैं कि उन्हें लगता है कि पीकर वे अपने दुःख, कष्ट को भूल जाएँगे। मध्यवर्ग धनवानों की नकल करता है। धनवान देशी अथवा विदेशी शराब पीते हैं जबकि निर्धन देशी ठर्रा, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। आज भी कुछ राज्यों में सड़कों के किनारे या नालियों में गिरे हुए लोग मिल जाएँगे जिन्होंने इतनी शराब पी ली होती है कि उन्हें होश ही नहीं रहता कि वे कहाँ है ? उस स्थिति में कभी भयंकर चोट भी लग जाती है। अतः मद्यनिषेध की आवश्यकता निश्चित है।
मद्यनिषेध के लाभ बहुत हैं। इसी कारण आज इसकी अनिवार्यता है। इसके द्वारा बहुत से परिवारों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। निषेध आम आदमी का शराब से बचाव तो करेगा ही, साथ ही शराब पीने के परिणामों से ही अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं। शराब पीकर मोटर, बस आदि चलाना नहीं जानते कि कितनों की जीवन-लीला समाप्त कर सकता है। नवयुवक और नवयुवतियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है और वे शराब पीकर सामाजिक अपराध कर देते हैं। पहले शौक में पीते हैं फिर उसके आदी हो जाते हैं। शराबी सोचता है कि वह नशे में कुछ भी कर सकता है। विभिन्न उत्सवों पर शराब अधिक पीने की प्रथा लोगों ने अपना ली है और वहीं फिर विभिन्न प्रकार उपद्रव होते हैं। इन सबसे तभी बचा जा सकता है जब मद्यनिषेध हो।
कुछ व्यक्ति मद्यनिषेध नहीं चाहते क्योंकि वे स्वयं मदिरापान करते हैं। वे इसे बुराई भी नहीं मानते। अपने पक्ष में तर्क देते हुए वे कहते हैं कि यदि मद्यनिषेध किया गया तो सरकार की आय कम हो जाएगी। शराब की बिक्री से उत्पाद शुल्क तथा बिक्री कर के रूप में यथेष्ट राजस्व प्राप्त होता है। संभवत: इसी कारण न तो राज्य सरकार और न केंद्र सरकार कानून बनाकर मद्यनिषेध लागू करना चाहती है। वैसे भी मद्यनिषेध करना उसकी चर्चा करने से कठिन है। कानून बनने पर अवैध शराब बनाने का व्यापार अधिक बढ़ेगा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब अवैध शराब पीकर लोगों ने हानि उठाई है। कभी नेत्रों से दिखाई देना बंद हो गया और कभी मृत्यु भी हो गई। शायद इसीलिए मदिरापान को सामाजिक कलंक की संज्ञा दी गई है।
अस्तु, मद्यनिषेध एक सामाजिक आवश्यकता है। सर्वप्रथम इस दिशा में यह प्रयत्न किया जाना चाहिए कि विभिन्न प्रचार माध्यमों के द्वारा जनता को शराब पीने की हानियों से अवगत कराया जाए। व्यक्ति को स्वयं इस बुराई से बचने की प्रेरणा उसके अपने मन-मस्तिष्क से मिलनी चाहिए। राज्य सरकार अथवा केंद्र यदि कानून बना भी दे और जनता इससे छुटकारा न पाना चाहे तो राष्ट्र उन्नति की बजाय अवनति की ओर चल पड़ेगा। जो भी हो, जैसे भी हो इस सामाजिक कलंक को मिटाना ही होगा, यही आज की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।