संकेत बिंदु-(1) मनोरंजन का अर्थ (2) मनोरंजन के बिना स्वास्थ्य में कमी (3) मनोरंजन के साधन (4) मनोरंजन के आधुनिक साधन (5) उपसंहार।
मन को प्रसन्न करने की क्रिया या भाव मनोरंजन है। ऐसा कोई कार्य या बात जिससे समय बहुत ही आनंदपूर्वक व्यतीत होता है, मनोरंजन है। मनोविनोद, दिल बहलाव और इंटरटेनमेंट, इसके पयार्यवाची हैं।
मनोरंजन मात्र मन की रंजन-क्रिया ही नहीं, जीवन दर्शन भी है। जीवन जीने की एक कला है। जीवन मूल्यों के प्रति आस्था है। वैचारिकता की दृष्टि से पंकमय अस्थिर मन में कमल विकसित करना है।
दिल दे तो इस मिजाज का परवर दिगार दे।
जो रंज की घड़ी को खुशी में गुजार दे॥ -दाग
मानव की स्वभावगत मोहक प्रवृति है मनोरंजन। जीवन को हँसकर जीने की औषधि है तो स्वास्थ्य का अनोखा मंत्र है मनोरंजन। वस्तुतः मनोरंजन या मनोविनोद परिश्रम से क्लान्त तन-मन को विश्रान्ति देने वाला और आनंद देने वाला है।
मनोरंजन का अर्थ है-मन को प्रसन्न रखना। इसी को मनोविनोद भी कहते हैं। वस्तुतः मनोरंजन से मन हर्षित होता है। मन के प्रसन्न रहने से शरीर व मन दोनों को लाभ मिलता है, आयु बढ़ती है। मनोरंजन के क्षणों में शरीर के तनाव ग्रस्त तन्तु ढीले पड़ जाते हैं और अतिरिक्त शक्ति का संचय होने लगता है, जिससे नवस्फूर्ति आती है।
मनोरंजन के बिना मनुष्य का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। कार्य क्षमता मंद पड़ जाती है। इच्छा-शक्ति क्षीण हो जाती है। मानसिक चेतना ही जागृति के अभाव में जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। स्वभाव में रुखाई एवं चिड़चिड़ापन आ जाता है। हास्य भाव समाप्त हो जाता है और जीवन नीरसता से भर जाता है। अतः मनोरंजन के लिए कुछ समय निकालना और उन आनंदमय क्षणों में जीवन की वास्तविक अनुभूति प्राप्त करना आवश्यक है।
प्राचीन रोम में खान-पान, सरकस एवं पुरुषों के साथ पशुओं का द्वंद्व-युद्ध मनोरंजन के साधन थे। ‘बुल फाइटिंग’ स्पेन-वासियों के मनोरंजन का प्रमुख साधन था। प्राचीन भारत में नाटक और पुत्तलिका-नृत्य, काव्य-ग्रंथों का अध्ययन, शतरंज और ताश, तीतर और बटेर की लड़ाई, शिकार आदि मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ मनोरंजन के साधनों का भी विकास होता गया। आज मनोरंजन के लिए सर्वसुलभ और अत्यंत सस्ते साधन हैं-टेलीविजन (दूरदर्शन) और रेडियो (आकाशवाणी)। आज घर-घर में टेलीविजन और रेडियो हैं। टेलीविजन में फीचर फिल्में देखिए और देखिए नृत्य एवं संगीत के विविध मनोरंजक कार्यक्रम। गणतंत्र दिवस का आनंद लीजिए तथा क्रिकेट मैच से मनोरंजन कीजिए। यह अनेक धारावाहिकों द्वारा विविध रूपेण प्रतिदिन मनोरंजन कराने वाला बिना वेतन का सेवक है।
ध्वनि कार्यक्रमों पर आधारित रेडियो मानव मात्र का स्वस्थ मनोरंजन-प्रदाता है विविध भारती के कार्यक्रम, मनोरंजक प्रायोजित कार्यक्रम, श्रुतिमधुर गीत, नाटक, प्रहसन, लोकरुचि के कार्यक्रम, कहानियाँ तथा कविताएँ, क्रिकेट कॉमेंट्री आदि कार्यक्रम मानव को स्वस्थ और चुस्त बना देते हैं।
मनोरंजन का तीसरा आधुनिक साधन है चित्रपट या सिनेमा कम पैसों में एयर कंडीशंड हॉल में बैठकर फिल्म देखिए और तीन घंटे तक स्वस्थ मनोरंजन प्राप्त कीजिए।
मनोरंजन का चौथा आधुनिक साधन हैं-पुस्तकें। हिंदी में उपन्यास, कहानी-संग्रह हास्य-व्यंग्य कविताओं ने जनता में जहाँ पढ़ने की रुचि जागृत की, वहाँ स्वस्थ मनोरंजन भी प्रदान किया। आज सभ्य और पढ़ी-लिखी जनता पुस्तकों की शौकीन हो गई है।
मनोरंजन के अन्य आधुनिक साधन हैं-सरकस, रंगमंचीय नाटक, ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम तथा नृत्य और संगीत। ये हर समय या प्रतिदिन तो उपलब्ध नहीं है। हाँ, बड़े-बड़े शहरों में ये कार्यक्रम होते रहते हैं। सरकस में सरकस का जोकर हँसा हँसाकर एवं पशुओं और युवक-युवतियों के साहसिक कृत्य दिखाकर जनता का स्वस्थ मनोरंजन करते हैं। इसी प्रकार नृत्य-संगीत-नाटक में संगीत की धुन पर नृत्य और अभिनय का संगम बहुत चित्ताकर्षक कार्यक्रम होता है। रंगमंचीय नाटक और ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रम मानव-मन को हर्षोल्लासित करते हैं। विजयदशमी के पर्व पर रामलीला का मंचन जन-जन को आह्लादित करता है।
ताश, कैरम, शतरंज, बैडमिंटन, फुटबॉल, क्रिकेट, कबड्डी, मल्लयुद्ध, नौका विहार आदि खेल भी आधुनिक युग में मनोरंजन के अच्छे साधन हैं। अपनी-अपनी रुचि के अनुकूल जन-मानस इनसे मनोरंजन प्राप्त करता है।
मनोरंजन के कुछ अन्य साधन हैं-पिकनिक और प्रातः कालीन सैर। अवकाश के दिन मित्रों की टोली जब पिकनिक पर जाती है, तो अनेक दिनों तक उसका आनंद विस्मृत नहीं कर पाती। सैर शौक पर निर्भर है। शौक से सैर करेंगे, तो आनंद आएगा, मनोरंजन भी होगा। कवि सम्मेलन, काव्य-गोष्ठियाँ, सांस्कृतिक कार्यक्रम जीवन को आनंद प्रदान करते हैं। काव्य-रुचि विद्वानों को रस-मग्न करती है।
विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ आज का मानवीय जीवन अत्यंत व्यस्त होता जा रहा है। जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं को जुटाने और कमरतोड़ महँगाई के कारण आज का मानव घुटन का जीवन जी रहा है। चेहरे पर मुस्कान रहते भी वह अंदर से घुटा-घुटा रहता है। जीवन से जूझने में समयाभाव दीवार बनकर खड़ा है। समयाभाव के कारण मानवीय मनोरंजन के साधनों में भी उसी मात्रा में विकास हो रहा है। दिन-भर फाइलों से झूझता लिपिक, दिनभर की व्यापारिक ऊँच-नीच को झेलता दुकानदार और पसीने में तर-बतर कठोर श्रम करने वाला श्रमिक जब घर लौटता है, तो रेडियो या दूरदर्शन उसका हल्का-फुल्का मनोरंजन करते हैं, उसका मन स्वस्थ करते हैं। जैसे-जैसे मानव समयाभाव की पीड़ा का अनुभव करेगा, वैसे ही ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ इस सिद्धांत के अनुसार वीडियोगेम्स जैसे सरल तथा स्वस्थ मनोरंजन के उपाय आविष्कृत हो चुके हैं। अब तो मोबाइल ही सबसे बड़ा और आधुनिक मनोरंजन का साधन बन चुका है।