संकेत बिंदु-(1) जीवन में जानकारी का माध्यम (2) भारतीय संस्कृति का उद्घोष (3) जनजागरण और जनमत तैयारी का साधन (4) विज्ञापन का सस्ता और सुगम माध्यम (5) उपसंहार।
समाचार-पत्र वर्तमान जीवन का दर्पण है, अद्यतन ज्ञान का प्रदाता है। जीवन में विश्व हलचल की जानकारी का माध्यम है। यह जनता को जागृत करते का सर्वश्रेष्ठ, सर्वप्रिय, सस्ता तथा सुलभ साधन है। लोकतंत्रात्मक राष्ट्रों में समाचार-पत्र जन-शक्ति का चतुर्थ स्तंभ है, क्योंकि यह जन-जीवन की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
समाचार-पत्र वर्तमान युग की ‘बैड टी’ है। जिस प्रकार बिना ‘बैड टी’ आज का तथाकथित सभ्य नागरिक बिस्तर के नीचे पाँव नहीं रखता, उसी प्रकार मानसिक भूख मिटाने लिए’ समाचार पत्र ‘ पढ़े बिना उसे चैन नहीं पड़ता। कुछ लोग प्रातः उठकर दर्पण में अपना मुँह देखते हैं, कुछ हथेलियों के माध्यम से आत्म-दर्शन करते हैं, उसी प्रकार आज का शिक्षित नागरिक समाचार-पत्र रूपी दर्पण में विश्व दर्शन किए बिना संतुष्ट नहीं हो पाता। वर्तमान-जीवन में समाचार-पत्र का इससे बढ़कर महत्त्व क्या होगा कि समाचार पत्र पढ़ने का अभ्यस्त व्यक्ति प्रातः काल उसके दर्शनों के अभाव में ऐसा तड़पता है, जैसे जल के बिना मछली।
भारतीय संस्कृति का उद्घोष है, ‘वसुधैव कुटुंबकम्।’ इसके कार्यान्वयन का भार वहन किया समाचार पत्रों ने। समाचार-पत्र विश्व के समाचारों का संग्रह है, सांसारिक-जीवन की गतिविधि का दर्पण है। वह वसुधा के समाचारों को समस्त कुटुंब तक पहुँचाना अपना लक्ष्य मानता है। इस प्रकार समाचार-पत्र वर्तमान जीवन में ज्ञानवर्धन का माध्यम है। इसीलिए आजकल लड़ाई का मैदान विश्व के राष्ट्र कभी-कभी ही होते हैं। कारण, समाचार-पत्रों ने इनका स्थान ले लिया है। नेताओं, राष्ट्र और राज्य के दृष्टिकोण के समर्थन, प्रचार एवं प्रसार के लिए समाचार-पत्र प्रतिदिन अग्नि-वर्षा करने से नहीं चूकते।
समाचार-पत्र लोकतांत्रिक राष्ट्रों में जन-शक्ति के महान् प्रदर्शक है। जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है, राष्ट्र के कर्णधारों के बहरे कानों में जनता की आवाज फूँकने वाला पाँचजन्य है। भारत के सूखा पीड़ितों की बेहाली, जनता की असुरक्षा की घटनाओं, चोरी, डाके, बलात्कार, दलितों पर हुए अत्याचारों तथा पीड़ित जनता की चीत्कार को प्रकट कर भारत के समाचार-पत्रों ने सरकार को झझकोरा है।
समाचार-पत्र जन-जागरण के वैतालिक हैं। एक सजग प्रहरी की भाँति समाचार-पत्र भयंकर रूप भी धारण कर सकते हैं। वे हमें अपनी दिव्य दृष्टि एवं तीव्र सूझबूझ के माध्यम से उन आलमारियों तक ले जाते हैं, जिनमें सरकारों, बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों तथा स्वार्थी नेताओं की भयावनी योजनाएँ छिपी रहती हैं। अमेरिका के सुप्रसिद्ध ‘वाटरगेट कांड’, जापान के शक्तिशाली प्रधानमंत्री काकुई तनाका का पतन, इंग्लैण्ड के मंत्री प्रोफ्यूमा का सेक्स-कांड एवं भारत में बोफर्स कांड, चारा कांड, क्रिकेट मैच फिक्सिंग कांड आदि बीसियों कांडों का प्रकाशन समाचार-पत्रों द्वारा जन-जागरण के ज्वलंत प्रमाण हैं। इसीलिए विश्वविख्यात वीर नेपोलियन ने कहा था, ‘मैं लाखों विरोधियों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ।’
समाचार पत्र ही जनमत तैयार करने का सबसे सुलभ साधन है। प्रकाशित समाचारों, अग्रलेखों और संपादकीय टिप्पणियों में जनता की विचारधारा मोड़ने और दृष्टिकोण को बदलने की महती शक्ति होती है। आपत्काल की ज्यादतियों एवं संजय-राजनारायण-चरणसिंह की विभेदक नीतियों से राष्ट्र को खतरे की घण्टी बजा-बजाकर समाचार-पत्रों ने इन सबके प्रति जनता के मनों में क्षोभ उत्पन्न किया। रूस के अधिनायकवादी रवैये पर समाचार-पत्र ही टिप्पणियाँ लिख-लिखकर जनता को सही बात समझाने की चेष्टा करते रहे। अमेरिका की चौधराहट पर रोष प्रकट करने का कार्य समाचार पत्र ही करते हैं।
जीवन में विज्ञापन का बहुत महत्त्व है। किसी वस्तु, भाव या विचार को विज्ञापन द्वारा प्रसिद्ध किया जा सकता है, प्रधानता दिलाई जा सकती है। समाचार-पत्र विज्ञापन का एक बड़ा साधन है। इसमें प्रकाशित विज्ञापन पढ़े जाते हैं। ये विज्ञापन पाठक पर अपना प्रभाव भी छोड़ते हैं। इसीलिए व्यापारी वर्ग विज्ञापन के लिए समाचार-पत्रों का सहारा लेकर व्यापार की वृद्धि करते हैं। दूसरी ओर अपने विचारों के प्रचार और प्रसार के लिए राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाएँ अपने-अपने अखबार निकालती हैं। समाचार-पत्र योग्य वर या वधू, काम के लिए उपयुक्त कर्मचारी, कार्यालय या निवास के लिए उचित स्थान की खोज का श्रेष्ठ एवं सरल साधन बन गए हैं।
वर्तमान युग में नवोदित लेखकों एवं कवियों-कवयित्रियों को प्रकाश में लाने का श्रेय भी समाचार-पत्रों को है। अपरिचित लेखकों को जनता समाचार-पत्रों के माध्यम से आँखों पर बैठाती है, उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करती है। यश के साथ-साथ समाचार-पत्र आय का साधन भी हैं। लेखक को लेख का पारिश्रमिक मिलता है, कवि-कवयित्री को अपनी प्रकाशित कविता के लिए दक्षिणा प्राप्त होती है।
इन सबसे बढ़कर समाचार-पत्र लाखों लोगों की आजीविका का साधन है। समाचार-पत्रों के कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारी, संपादक, संवाददाता, फोटोग्राफर, समाचार-एजेंसियों के कर्मचारी, कम्पोजिटर, मशीनमैन आदि लाखों लोग समाचार-पत्रों से अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं।
समाचार-पत्र के बिना आज का मानव जगत की घटनाओं से अनभिज्ञ अँधेरे में ही रह जाता है। सुचारु जीवन जीने की कला से अनभिज्ञ रहता है। विश्व की कुटुम्बीय भावना को नकारता है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-
इस अन्धियारे विश्व में, दीपक है अखबार।
सुपथ दिखावे आपको, आँख करत है चार॥