अंतरिक्ष में मानव के बढ़ते चरण

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संकेत बिंदु-(1) अंतरिक्ष यात्रा का शुभारंभ (2) अंतरिक्ष में स्टेशन निर्माण (2) सोयुज और अपोलो की यात्रा और मंगल ग्रह (4) कोलंबिया शटल और अंतरिक्ष में औषधियाँ निर्माण (5) उपसंहार।

महाभारत तथा पुराण ग्रंथों में चंद्र व अन्य ग्रहों की यात्रा का वर्णन है। लगभग चार सौ साल पहले गैलीलियो ने अपनी बनाई दूरबीन के माध्यम से देखकर चाँद की अनेक जानकारियाँ दी थीं। उसी कल्पना को साकार करते हुए आज के वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान में उड़ान भर रहे हैं।

अंतरिक्ष यात्रा का वास्तविक आरंभ 4 अक्तूबर, 1957 से समझना चाहिए, जब रूस ने ‘स्पुतनिक-1’ छोड़ा। यह कृत्रिम भू-उपग्रह अंतरिक्ष में तीन महीने तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा। इसने पृथ्वी की 1400 परिक्रमाएँ कीं। रूस ने इसके एक महीने बाद ‘स्पुतनिक-2’ छोड़ा, जिसमें लाइका नामक कुतिया थी। अमेरिका भी इस क्षेत्र में 21 जनवरी, 1958 को आ गया, जब उसने ‘एक्सप्लोरर 1’ नामक अपना पहला भू-उपग्रह छोड़ा और फिर 17 मार्च, 1958 को ‘बेनगार्ड-1’ उपग्रह छोड़ा, जो हजार साल तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहेगा।

अनेक परीक्षणों और प्रयोगों के पश्चात् रूस ने 12 अप्रैल, 1961 को प्रथम मानव यात्री यूरी गागारिन को अंतरिक्ष में भेजा। इस सफल परीक्षण के पश्चात् अमेरिका ने ‘जैमिनी-11’ और ‘जैमिनी-12’ में एक-एक मानव भेजे। रूस और अमेरिका, दोनों राष्ट्र अंतरिक्ष में जाकर अनेक प्रकार के परीक्षण करते रहे।

इन सफल परीक्षणों के पश्चात् अंतरिक्ष में स्टेशन निर्माण की ओर ध्यान गया। चाँद को ही स्टेशन बनाने की योजना अमरीकी वैज्ञानिकों ने बनाई। अंततः अमेरिका का ‘अपोलो-11’ तीन यात्रियों सहित 21 जुलाई, 1969 को प्रातः 1:48 पर चंद्रतल पर उतर गया। उसके दो यात्री सर्वश्री नील ए. आर्मस्टाँग और एडविन एल्ड्रिल ने चंद्रतल पर पग रखकर करोड़ों पृथ्वी पुत्रों की आकांक्षाओं को पूर्ण कर दिया।

‘अपोलो-11’ के चार महीने बाद अमेरिका ने ‘अपोलो-12 ‘ छोड़ा, जिसमें तीन यात्री थे। ये 21 नवंबर, 1969 को रात्रि में चाँद के तूफानी महासागर में उतरे। ये पहले यात्रियों से अधिक समय तक चाँद पर विचरण करते रहे।

इन दोनों यानों के यात्री अपने साथ चंद्रतल से मिट्टी व चट्टानों के अनेक नमूने लाए थे, जिनका अध्ययन विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों ने किया है। अध्ययन करने वालों में चार वैज्ञानिक भारतीय भी थे। इन वैज्ञानिकों ने महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन किया। फिर भी, चाँद के बारे में अनेक गुत्थियाँ अभी तक सुलझी नहीं हैं।

17 जुलाई, 1975 को सोवियत ‘सोयुज-19’ तथा ‘अपोलो-21’ यान का भारतीय समय के अनुसार रात्रि 9-39 पर पुर्तगाल व स्पेन के समुद्रतटों के 225 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में संगम हो गया। संगम निर्धारित समय से 6 मिनट पूर्व होने के कारण पश्चिमी जर्मनी के ऊपर नहीं हो सका।

संगम के लगभग तीन घंटे के बाद सोयुज और अपोलो के अंतरिक्ष यात्री दोनों यानों को जोड़ने वाली सुरंग के अंदर मिले और उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाए। तत्पश्चात् उन्होंने अपने-अपने राष्ट्रों के ध्वज एक-दूसरे को भेंट किए। ‘सोयुज’ तथा ‘ अपोलो’ का यह संगम अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक उपलब्धि थी।

अब अंतरिक्ष अनुसंधान का नया लक्ष्य बना मंगल ग्रह। इस बार भी अमेरिका ने पहल की और सफल रहा। 20 अगस्त, 1975 को ‘वाइकिंग-1’ ने मंगलग्रह की यात्रा आरंभ की। 11 मास में 80 करोड़ किलोमीटर की यात्रा तय कर 20 जुलाई, 1976 को 5 बजकर 43 मिनट पर उसने मंगलग्रह के धरातल पर पदार्पण किया। अमेरिका का यह विमान मानव-रहित था। इस सफलता पर अमेरिकी जनता हर्षातिरेक से नाच उठी।

वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की उपलब्धि के पश्चात् शुक्रग्रह को अपना लक्ष्य बनाया। 20 मई, 1978 को छोड़ा गया ‘पायनीयर बीनस-1’ 4 दिसंबर, 1978 को शुक्र ग्रह में पहुँच गया। इसके पश्चात् ‘पायनीयर-2’ ने शुक्र ग्रह में पहुँचकर वहाँ के वायुमंडल की रचना और मौसम का अध्ययन करने के उद्देश्य से उसके वायुमंडल में पाँच प्रायोगिक पैकेज छोड़े।

इन अंतरिक्ष यात्रियों को समय-समय पर सात ‘प्रोग्रेस’ यानी (मानव रहित माल वाहक अंतरिक्ष यान) द्वारा रसद तथा अन्य सामग्री पहुँचाई गई। इन यानों का संचालन पृथ्वी से रिमोट कंट्रोल प्रणाली द्वारा किया गया था। प्रोग्रेस द्वारा एक टेलिविजन रिसीवर ‘सेल्यूज-6’ तक पहुँचाया गया। अंतरिक्ष यात्री इसे दूरभाष की भाँति प्रयोग करके पृथ्वी-स्थित अपने प्रियजनों से बातचीत कर सकते थे। साथ ही उन्हें देख भी सकते थे।

12 अप्रैल, 1981 को अमेरिका द्वारा अंतरिक्ष शटल ‘कोलंबिया’ को अंतरिक्ष में भेजकर तथा 15 अप्रैल, 1981 को सकुशल वापिस लौटाकर अंतरिक्ष यात्रा में नए युग का आरंभ कर दिया गया। इस शटल में दो वैज्ञानिक भी गए थे।

अंतरिक्ष में ऐसी औषधियों का निर्माण कार्य चल रहा है, जो पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के कारण असंभव था। दूसरे, अंतरिक्ष स्टेशनों से उपग्रह की मरम्मत की जा सकती है, जिससे उनकी अकाल मृत्यु न हो और लाखों डालरों की क्षति से बचा जा सके।

फ्लोरिडा के केनेडी अंतरिक्ष केंद्र से अमरीकी अंतरिक्ष यान ‘एनडेवर’ ने 12 सितंबर 1992 को उड़ान भरी। अंतरिक्ष यान में सात यात्रियों का एक अंतर्राष्ट्रीय दल गया जिसने अंतरिक्ष प्रयोगशाला ‘जे’ में सात दिनों तक विभिन्न प्रयोग किए। इस अभियान का आयोजन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ और जापान की राष्ट्रीय अंतरिक्ष विकास एजेंसी ने मिलकर किया था।

रूस और अमरीका अंतरिक्ष कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं। अमरीका अंतरिक्ष यान ‘डिस्करी व एंडेपर’ उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने में व्यस्त रहा। नासा की मंगल खोज सितंबर 1992 से जारी है। अगस्त 1993 में पहली बार इसने मंगल की सतह के करीब से फोटो भेजें। उस समय यह मंगल से 5.8 मिलयन किलोमीटर की दूरी पर था। अंतरिक्ष अनुसंधान दिन-प्रतिदिन प्रगति पर है। वैज्ञानिक अहर्निश अंतरिक्ष में अनुसंधान कर मानव के लिए कल्याणकारी और मंगलकारी तल ढूँढ़ने में लगे हैं। वह दिन दूर नहीं, जब इन अंतरिक्ष यानों से भूमिपुत्र अत्यधिक लाभान्वित होंगे।

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