मेरे सपनों का भारत / मेरी कल्पना का भारत

Mer sapnon ka bharat par ek hindi me shandaar nibandh

संकेत बिंदु-(1) सर्वगुण संपन्न हो (2) भारत धन्य-धान्य से संपन्न हो (3) भारत के नागरिक चरित्रवान बनें (4) देश हित सर्वोपरि हो (5) उपसंहार।

मेरा स्वप्न है कि मेरा भारत अपने प्राचीन जगद् गुरु पदं को प्राप्त हो। सुवर्ण और रत्नों से परिपूर्ण हो, ताकि विश्व इसे फिर सोने की चिड़िया’ के नाम से पुकार सके। मेरा भारत इतना शक्तिशाली हो कि कोई उसकी ओर आँख उठाने को दुस्साहस भी न कर सके। शांति और व्यवस्था की दृष्टि से यहाँ ‘राम राज्य’ का आदर्श प्रस्तुत हो। भारत अपने नाम को (अर्थात् जो ‘भा’ प्रतिभा, ज्ञान, शोभा में ‘रत’ है, आसक्त है, वही भारत है) चरितार्थ करे।

मेरा स्वप्न है कि भारत का समीरण पुष्प सुगंध से परिपूर्ण होकर बहता हुआ वास्तविक ‘गंधवह’ बने। भारत के खेत-खलियान अन्न से भरपूर हों। भारत के वन-उपवन अपनी हरीतिमा में और सौंदर्य में नंदन कानन सदृश सुखद हों। भारत के लता-पादप रसपूर्ण, स्वाद और मधुर फलदायी हों। भारत की नदियाँ जन-जीवन को तृप्त करें। भारत की पर्वत शृंखलाएँ तपोभूमि बनकर मानव-मंगल का आशीष प्रदान करें, अपनी अतुल संपदा से भारत को भर दें। स मग्न रूप में प्रकृति नटी अपने सौंदर्य से, अपने हास्य-विलास, अपने अँगड़ाई लेते यौवन से विश्व को स्तब्ध कर दे।

भारत की नारी का सौंदर्य उसके सतीत्व और मातृत्व में प्रकट हो। सौम्यता, सद् गुण और चरित्र की उज्ज्वलता उसको विभूषित करने वाले अलंकरण हों तपोमय जीवन उसका परिधान बने। पुरुषों में पौरुष हो, उनका जीवन विवेक से संचालित हो।

आज के संदर्भ में मेरी कल्पना भारत के पवित्र चरित्र की भावना से विभोर है। मेरा स्वप्न है कि भारत के राजनीतिज्ञ Two Faces (दुमुँही) की नकाब को उतार फेकेंगे ताकि भविष्य में अहिंसा के नाम पर 1947 के समान भारत माता का विध्वंस करके कोई गाँधी सत्याचरण के नाम पर देश का विभाजन न कर सके। कोई जवाहरलाल वंशवाद स्थापित करने के लिए ‘कामराज योजना’ लागू न करा सके। कोई लालबहादुर युद्ध में विजयी होकर भी रूस की राजनैतिक चौसर पर अपने बहुमूल्य प्राण अर्पण न कर सके। इसलिए मेरा स्वप्न है कि मेरे भारत में ‘प्राण जाएँ पर चरित्र न जाहिं’ की कल्पना साकार हो।

मेरे स्वप्नों के भारत में व्यक्तिगत स्वार्थ के स्थान पर देश-हित सर्वोपरि होगा। ताकि कोई इतिहासकार देश की स्वतंत्रता का श्रेय एकमात्र कांग्रेस को न दे सके। कोई गाँधी-जवाहर द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत पर मिली स्वतंत्रता को सर्वधर्म समभाव के लिए ‘धर्म निरपेक्षता’ की. पटरी पर देश चलाकर सांप्रदायिकता की विष बेल को बढ़ावा न दे सके। कोई कांग्रेसी मंत्री भस्मासुर रूपी आतंकवाद को जन्म देकर देश के लिए सिरदर्द पैदा न कर सके। कोई राजनीतिज्ञ प्रजा के नाम पर वंशवाद और सामंतशाही की वकालत न कर सके। कोई पदाधिकारी रिश्वत के बल पर धनाढ्य न बन सके।

मेरी कल्पना में भारत की वह उज्ज्वल भव्य प्रतिमा है, जिस पर प्रत्येक भारतीय चाहे वह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, फारसी, यहूदी किसी भी धर्म का उपासक हो, इस देश को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि तथा पुण्यभूमि मानता हुआ इसकी उन्नति के लिए कार्य करेगा और अपनी विशिष्ट पूजा पद्धति को सुरक्षित रखता हुआ भी भारत के मान बिंदुओं को पैरों तले कुचल न सके, अपने पूर्वजों का अपमान न कर सके।

चरित्र की उज्ज्वलता, देश हित की सर्वोच्चता तथा मातृ-भूमि और पुण्य-भू की वैचारिक सोच से भारत में रामराज्य आएगा। सुख, समृद्धि और ज्ञान की त्रिवेणी बहेगी।

मैं चाहता हूँ कि मेरा भारत पुनः ‘सोने की चिड़िया’ बने। जिस भारत पर विदेशों का अरबों रुपया कर्ज है, उसके लिए ‘सोने की चिड़िया’ का स्वप्न लेना पागलपन है। इस दृष्टि से मुझे पागल कह सकते हैं, भ्रान्तमति कह सकते हैं, शेखचिल्ली की उपमा से अलंकृत कर सकते हैं। पर जब द्वितीय महायुद्ध का ध्वस्त जापान केवल चार दशकों में ही औद्योगिक विश्व का उज्ज्वल नक्षत्र बन सकता है, साढ़े चार दशकों में हिटलर की पराजय से विभक्त जर्मनी पुनः एक होकर महाशक्ति बन सकता है तो भारत के मिल, कारखाने, फैक्ट्रियाँ निर्यात के वर्चस्व से विश्व का सोना भारत में क्यों नहीं ला सकते? मेरा स्वप्न है कि भारत पुनः विश्व गुरु का पद ग्रहण करे। वर्तमान विश्व गुरु बनने का अर्थ होगा कि विश्व-संसद ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में उसका वर्चस्व हो, प्रभुत्व हो। केवल अध्यात्म की रट से, सनातन-धर्म की दुहाई से, विश्व-सभ्यता-संस्कृति का आदि-स्रोत की पुकार से विश्वगुरु पद मिलने वाला नहीं। जब तक हम ‘भिक्षां देहि की स्थिति से उभरकर साहूकार नहीं बनेंगे, जब तक वैज्ञानिक दौड़ में हम प्रथम नहीं रहेंगे।

मेरा स्वप्न है कि इक्कीसवीं शताब्दी भारत में सबके लिए समान कानून का साम्राज्य हो, आतंकवाद का विनाश हो। राजनीतिज्ञ प्रांतवाद, पार्टीवाद और परिवारवाद से ऊपर उठकर ‘भारत-हित’ को प्राथमिकता देंगे। सांप्रदायिकता नष्ट होगी, सांप्रदायिक भाव सर्वधर्म समभाव में परिवर्तित होगा। पारस्परिक प्रेम और आत्मीयता की गंगा बहेगी। नई टैक्नोलोजी से उद्योग समृद्ध होंगे ताकि कोई भारतीय गरीबी का जीवन न जीए। यहाँ सब सुखी, नीरोग, सुशिक्षित, वैभव संपन्न और राष्ट्र-भक्त बनें।

नारद पुराण के पूर्व भाग में एक कथन है-’अद्यापि देवा इच्छन्ति जन्म भारत भूतले।’ अर्थात् देवगण आज भी भारत भूमि में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। मेरी कामना है कि भारत इतना समृद्ध और पावन बने ताकि देवता पुनः यहाँ जन्म लेने की इच्छा कर सकें।

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