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मेरा परिवार

mera pariwaar my family par hindi bhasha me ek nibandh

संकेत बिंदु – (1) परिवार का अर्थ (2) परिवार के सदस्यों का परिचय (3) भाइयों और बहनों का परिचय (4) पिताजी की शिक्षा और व्यवसाय (5) माताजी की शिक्षा और स्वभाव।

परीक्षा में ‘मेरा परिवार’ शीर्षक निबंध लिखने से पूर्व सोचना पड़ा कि मेरा परिवार से तात्पर्य मेरे पितामह – परिवार से है या पितृ-परिवार से? दूसरी ओर विचार आया कि विज्ञान की कृपा से ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ बन जाने के कारण क्या मुझे विश्व परिवार पर लिखना चाहिए? फिर विचार आया हिंदी की विख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा ने तो अपने पालित पशु-पक्षियों को ही अपने परिवार में परिगणित किया है। तो क्या मुझे अपने पालतू कुत्ते-बिल्ली पर लिखना चाहिए? इस असमंजस का हल निकाला जैनेन्द्र जी के विचारों ने। उनका कहना है कि ‘परिवार मर्यादाओं से बनता है, परस्पर कर्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परंपरा में कुछ जनों की इकाई एक हित के आस-पास जुटकर व्यूह में चलती है। उस इकाई के प्रति हर सदस्य अपना आत्मदान करता है, इज्जत खानदान की होती है। हर एक उससे लाभ लेता है और अपना त्याग देता है।

इस प्रकार परिवार से तात्पर्य हुआ ‘एक घर में और विशेषतः एक कर्ता के अधीन या संरक्षण में रहने वाले लोग।’

मेरे परिवार में सात प्राणी हैं। इसके सदस्य हैं- मेरे पिता, माता, दो भाई तथा तीन बहनें। हाँ, मैं परिवार का ही अंग हूँ। अतः संख्या आठ हो गई, संख्या बताते ही दूलन दास चिल्ला उठा- ‘बेटा सत्य बोल।’ कारण,

दूलन यह परिवार सब, नदी नाव संयोग।

उतरि परै जहँ तहँ चले, सब बटाऊ लोग॥

मुझे ध्यान आया दो बड़ी बहनें विवाहोपरांत अपने ससुराल चली गईं। वे अन्य परिवारों की अंग बन गईं। दूसरी ओर दोनों बड़े भाई रहते ही विदेश में हैं, उन्होंने वहीं अपना घर बना लिया है। इसलिए परिवार से ये चार प्राणी कट गए। रह गए चार – माताश्री, पिताश्री, बहन और मैं।

चार की संख्या पर विश्वख्यिात चिंतक अरस्तू को एतराज हुआ। उन्होंने कहा पुत्र ! ‘तू तो परिवार की परिभाषा को संकुचित कर रहा है। परिवार तो मनुष्य की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति द्वारा स्थापित एक संस्था है। इसमें तुम्हारा मुँडू (नौकर) भी शामिल होना चाहिए।’ मुझे लगा अरस्तू सही कहते हैं। हम चार नहीं, पाँच हैं।

मेरी तीसरी बहन बी. ए. तृतीय वर्ष की छात्रा है। उसकी राजनीति में रुचि है। इसलिए कॉलेज इलेक्शन लड़ना उसका ‘व्यसन’ है। दूसरी ओर वह धाविका हैं। कॉलेज दौड़ की गोल्ड मैडलिस्ट है। पढ़ाई में प्रथम श्रेणी प्राप्त करना, अध्ययन पर उसके अधिकार का प्रतीक है।

मैं क्या हूँ? ‘न मम’, मेरा अपना बताने लायक कुछ नहीं है। जो कुछ हूँ वह माता- पिता का ममत्व है, उनकी तपस्या का फल है, उनका स्नेह और आशीष मुझे प्राप्त है। भवभूति के उत्तर रामचरित में मेरी पहचान ढूँढ लीजिए-

अंत:करणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेह संश्रयात्।

आनंद ग्रंथिरेकोऽयम् अपत्यमिति कथ्यते॥

अर्थात् संतान स्नेह के आश्रम से माता-पिता के अंत:करण तत्त्व की आनंद ग्रंथि कही जाती है। मैं दसवीं का छात्र हूँ। अध्ययन के प्रति समर्पित हूँ। स्वस्थ रहने के लिए नित्य एक घंटा खेल खेलता हूँ। हॉकी मेरा प्रिय खेल है। मित्रों से मित्रता निभाता हूँ, क्योंकि उनके अभाव में जीवन निर्जन वन-सा लगता है। माता-पिता और गुरुजन की सेवा और सम्मान में विश्वास रखता हूँ। मेरा अहं तुझे तंग करता है और मेरी भावकुता मुझे नीचा दिखाती है।

चलते-चलते दोनों बड़े भाई और दोनों बड़ी बहनों का परिचय करा दूँ। यद्यपि वे हमारे परिवार के सदस्य नहीं, पर हैं तो एक माता-पिता की संतान, एक वंश के अविभाज्य अंग। दोनों अग्रज इंजीनियर हैं। वे भारत की राजनीतिक दलदल के मारे हैं, पर विदेश में कमल बन कर खिल रहे हैं। लक्ष्मी की उन पर कृपा है। दोनों बहिनें मातृत्व की दीर्घ तपस्या का सुपरिणाम है। एक, एम. ए., पी-एच. डी हैं, अध्यापिका हैं; दूसरी एम. बी. बी. एस. डॉक्टर।

पाँच प्राणियों का परिवार और पच्चीस बातें। कोई कहता ये गंधर्व, पितर, देव, असुर और राक्षस का पंच- जन परिवार है तो कोई कहता नहीं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद का पंच-वर्ग समूह है। तीसरा कहता है -ये मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि रूपी पंच-ग्रह हैं। चौथा हमें पंचतंत्र – पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश या तंत्र के अनुसार गुरु– तत्त्व, मंत्र-तत्त्व, मनस्तत्त्व, दैवतत्त्व और ध्यानतत्त्व मानता है। पाँचवाँ, पंच तरु मंदार, परिजात, संतान, कल्पवृक्ष और हरिचंदन से उपमित करता है। छटा, हमें चंपा, आम, शमी, कमल और कनेर के पंच पुष्प मानता है। खैर इतनी ही है कि किसी ने हमें पंचमांगी, पंचानन या पंडक नहीं माना।

मेरे पिताजी ने एम. ए. तक शिक्षा प्राप्त की है, पर उन्होंने नौकरी के स्थान पर व्यापार को प्राथमिकता दी। वस्त्र-विक्रेता हैं। गाँधी नगर वस्त्र मार्किट के सचिव हैं। हृदय के उदार हैं, पर हैं सिद्धांतवादी। वे मुद्दों की राजनीति करते हैं, मूल्यों की नहीं। इसीलिए पुत्रियों को सुयोग्य वर थमाने में दान-दहेज देते हैं और सिद्धांतों के लिए वस्त्र – मार्किट के संघ की बलि नहीं चढ़ने देते। सगे-संबंधियों, इष्ट मित्रों के काम आने वाले व्यक्ति हैं। परिवार के लिए वे इस फ्रैंच कहावत को चरितार्थ करते हैं – A Father is a banker provided by nature’. अर्थात् पिता प्रकृति द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठी है।

मेरी माताश्री बी. ए. हैं, शास्त्री हैं। कढ़ाई, सिलाई, विभिन्न व्यंजन तथा चित्रकला में ‘उपाधिधारी’ हैं। नौकरी के विरुद्ध हैं। बच्चों की सेवा को अपना परम कर्तव्य मानती हैं। बच्चों की सेवा के सम्मुख वे अपने पति की भी उपेक्षा कभी कर लेती हैं। यही कारण है कि हम तीनों भाई और तीनों बहिनें शरीर से स्वस्थ पढ़ाई में होशियार और चिंतन में प्रखर हैं। भावुकता उनकी पहली दुर्बलता है। खर्च में उदारता उनकी दूसरी कमजोरी है।

हिंदू-दर्शन में स्वर्ग और नरक की कल्पना है। परलोक के स्वर्ग और नरक को मैं नहीं जानता, न ही जानने में मेरी रुचि है। मेरा स्वर्ग मेरे परिवार के सुखद तथा उत्साहवर्द्धक वातावरण में है। माता-पिता मेरे शिवा और शिव हैं। बहिन लक्ष्मी रूपा है और मुँडू जी साक्षात् सेवा का अवतार हैं।

यह है मेरे परिवार की एक छोटी-सी झलक।

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