संकेत बिंदु – (1) एक सिक्के के दो पहलू (2) नारियों का गौरवशाली अतीत का वर्तमान (3) नारी में नवीन चेतना और मानसिकता का विकास (4) पुरुष के साथ कार्यरत (5) उपसंहार।
आज के वैज्ञानिक युग में नारी हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल पाने में सक्षम हो गई है। आज यदि हम देखें तो नारी भी पुरुष के साथ शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, शिल्पकला, पुलिस, न्यायपालिका, राजनीति, प्रशासन के साथ-साथ यहाँ तक हवाई उड़ान, रेल और बस व्यवस्था में भी नारी का भरपूर सहयोग मिल रहा है। अगर देखा जाए तो प्राचीनकाल में भी नारी किसी पुरुष से कम बलशाली नहीं रही। इतिहास साक्षी है कि गार्गी, मैत्रेयी, लक्ष्मीबाई, पद्मिनी आदि अनेक नारियों के वीरता के पृष्ठ देखने को मिल जाएँगे।
नर और नारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस प्रकार नदी के दो किनारे होते हैं, उसी प्रकार नर और नारी भी समाज में, परिवार में दो किनारों की भाँति ही माने जाते हैं। जिस प्रकार किसी रथ के, मोटर साइकिल या साइकिल के दो पहिये यदि गतिशील हैं तो व्यवस्था सुचारु होती है उसी प्रकार स्त्री और पुरुष भी दो चक्रों या पहियों के समान ही निरंतर गतिशील बने रहें।
नर-नारी हों एक समान।
जीवन में आए मुस्कान॥
भारतीय समाज में नारी की दशा के मूल में भी प्रमुख कारण प्रारंभ में यह रहा कि हमारे यहाँ पुरुष प्रधान समाज की मान्यता बनी रही जिसके कारण नारी की दशा को अत्यंत दयनीय बना दिया था, लेकिन वर्तमान में जो विचारधारा उभरकर सामने आई है उससे नारी हर क्षेत्र में स्वतंत्रता के साथ आगे बढ़ रही है। नारी को पुरुषों के बराबर सम्मान देकर देश में एक प्रशंसनीय कार्य हुआ है और इसी के फलस्वरूप भारतीय नारी कल्पना चावला को नासा के माध्यम से अंतरिक्ष में जाने का सौभाग्य मिला, लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि अंतरिक्ष से लौटते समय यान में खराबी आ जाने से कल्पना केवल कल्पना ही बनकर रह गई, मगर पुरुष के साथ नारी ने कदम से कदम मिलाकर चलने का साहस तो किया।
रामायण और महाभारत काल में भी नारियों को गौरवपूर्ण पद प्राप्त था, लेकिन समय के साथ नारी की स्थिति में परिवर्तन आता गया। सामाजिक परिवर्तनों के साथ-साथ नारियों की स्थिति में भी परिवर्तन आया। सीता, राधा, यशोधरा, अहल्या, मंदोदरी, सुलोचना, तारा, शकुंतला आदि ऐसी नारी पात्र हैं जो पुरुष प्रधान समाज में सम्मलित होकर भी आजीवन दुख और संघर्षों की आँच में कुन्दन की भाँति तपती रहीं। हमें इस सत्य को स्वीकार करना पड़ेगा कि इन दोनों युगों त्रेता द्वापर में नारी की वह स्थिति नहीं रह गई तो वैदिक काल में थी।
‘यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारी की पूजा जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। लेकिन आज भारत में नारी की पूजा के स्थान पर नारी को पुरुष के बराबर माना गया है और कार्य पूजा से भी अधिक श्रेष्ठ जान पड़ता है। कहा गया है कि नारी केवल भोग की वस्तु है और नारी पुरुष की वासना पूर्ति का साधन है, मगर आज के परिवेश में यदि देखा जाए तो नारी पुरुष की संगति है और प्रत्येक कार्य में पुरुष को बराबर की भागीदार भी है।
नर-नारी एक समान के अधिकार को पाकर भारतीय नारी जगत में एक नवीन चेतना और मानसिकता का विकास हुआ है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने नारी की स्थिति का चित्रण अपनी कविता में किया था-
अबला जीवन, हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥
आज के वातावरण को देखकर लगता है कि समय और विधाता ने गुप्त जी की पीड़ा को देखा-परखा और नारी के जीवन में सुधार लाने के सामाजिक और सरकारी स्तर पर प्रयास हुए और नारी को पुरुष के बराबर हर क्षेत्र में अधिकार भी प्राप्त हुए।
भारत में अब नारी की है नयी कहानी।
हर क्षेत्र में नारी चमकी बन मर्दानी॥
पुरुषों के संग कार्य क्षेत्र में हाथ बँटाती।
नारी को अधिकार मिले ‘रत्नम् ‘ तूफानी॥
गुप्त जी द्वारा नारी की दयनीय दशा का कविता में जो चित्रण है, वह उस समय की बात रही होगी लेकिन आज जो नारी को सम्मान और पुरुष के समान अधिकार मिले हैं उस पर मनोहरलाल ‘रत्नम्’ की उपरोक्त चार पंक्तियाँ सटीक और सुंदर चित्रण प्रस्तुत करने में सफल हुई हैं। नारी समाज की धुरी है और पुरुष नारी का साथी माना जाता है। नारी और पुरुष से ही समाज की रचना संभव है, लेकिन अब वर्तमान में नारी और पुरुष एक साथ प्रत्येक कार्यों में संलग्न होकर देश और समाज को उन्नत बनाने में अग्रसर हैं। नारी को पुरुष के समान अधिकार मिलने का सबसे बड़ा श्रेय नारी-शिक्षा को जाता है, जब नारी शिक्षित होगी तभी समाज के प्रत्येक कार्य व्यवहार में भागीदारी निभा पाने में सक्षम होगी। आज शिक्षा के स्तर को यदि देखा जाए तो शिक्षा के स्कूली स्तर पर लड़कियाँ लड़कों से आगे पाई जाती हैं और विश्वविद्यालय स्तर पर भी लड़कियाँ शिक्षा में आगे हैं। शिक्षित महिला समाज की आवश्यकताओं को समझ पाने में सक्षम होती हैं, यह बात आज नारी समाज की समझ में आ गई है। वैसे नारी के संदर्भ में अनेक कवियों और गीतकारों ने अपनी लेखनी चलाई है, एक फिल्म के गीत की कुछ पंक्तियाँ जो नारी के सम्मान में लिखी गयीं-
कितने सुख नारी देती है,
माँ, बहन, बहू, बेटी बनकर॥
जहाँ नारी के सुख देने की बात है उपर्युक्त पंक्तियाँ तो केवल पारिवारिक पृष्ठभूमि तक ही सीमित करती हैं, मगर आज नारी शिक्षित होकर पुरुष के साथ प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत है, यह भी नारी द्वारा दिया गया सुख ही कहा जाएगा। समाज में नर और नारी का दोनों का समावेश है, स्त्री पुरुष समाज के अभिन्न अंग हैं, दोनों के समान विकास में, शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन के समान अवसर, खेल के मैदान में स्त्री और पुरुषों को समानता के अधिकार, दैनिक जीवन में एक समान व्यवहार और स्त्री और पुरुषों दोनों के गुणों को समान रूप से जगाने में ही समाज और देश का कल्याण निहित है।
नर-नारी एक समान पर चर्चा करते समय हमारा ध्यान चम्बल के बीहड़ों की ओर भी जाता है। यहाँ भी नारी ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए कभी पुतलीबाई और कभी फूलन देवी बनकर पुरुषों से अधिक बलशाली कार्य कर दिखाया है। इस संदर्भ में इन नारियों की राह तो गलत थी मगर बहादुरी और समानता में पुरुषों से कहीं आगे दिखाई देती हैं।
भारतीय समाज में नर-नारी को एक समान अधिकार मिलने से संभव है कि हमारा भारत देश भविष्य में आर्थिक और सामाजिक उन्नति कर विश्व में अग्रणी बनकर विशाल भारत देश कहलाने का गौरव प्राप्त करेगा। इस गौरव को पाने के लिए आज आवश्यकता बुद्धिमान्, पराक्रमवान्, निष्ठावान्, आकांक्षावान और ईमानदार नर और नारी, यह स्त्री-पुरुष तभी देश के स्वाभिमान और गौरव को ऊँनाकर पाएँगे जब इन सबको इनके गुण और महत्त्व और मानवीय मूल्यों को एक साथ समान रूप से समझा जाएगा।
नार-नारी संसार में, हैं केवल दो हाथ।
नर से नारी का रहे, हर कार्य में साथ॥
हर कार्य में साथ, उन्नति हम पा जाएँ।
ऊँचे शिखर पहुँच, वहाँ सारे मुस्काएँ॥
कह ‘रत्नम्’ पथ पर हों जब नर और नारी॥