निर्वाचन स्थल का आँखों देखा हाल

Elction in india hindi essay

संकेत बिंदु-(1) जनता की परिपक्वता की परीक्षा (2) मतदान प्रारंभ और पोलिंग बूथ का दृश्य (3) पोलिंग स्टेशन पर नारेबाजी (4) बूथ के भीतर का दृश्य (5) उपसंहार।

‘चुनाव’ जनता द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने का माध्यम है; जनता को राजनीतिक परिपक्वता की परीक्षा का अवसर है। चुनाव पानीपत या कुरुक्षेत्र का युद्ध नहीं, अपितु प्रयाग या हरिद्वार का कुंभ-सा है।

मुझे आज भी वह दृश्य याद है जब भारत में तेरहवाँ महानिर्वाचन सितंबर अक्तूबर 1999 में हुआ। दिल्ली की सात लोक-सभाई सीटों का चुनाव 6 सितंबर 1999 को था। सी.सी. कॉलोनी के लिए दो पोलिंग बूथ बने थे। दोनों पोलिंग बूथ राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, सी.सी. कॉलोनी में ही थे।

18 वर्ष से कम का युवक वोट डालने का अधिकारी नहीं होता। इस कारण हम बालक वोट के अधिकारी नहीं थे, किंतु किसी बारात में जाने का निमंत्रण न मिले तो उसकी शोभा तो देखी जा सकती है, उसके श्रुति-मधुर गीतों का आनंद तो लिया जा सकता है। अतः हम भी कौतूहल, उत्सुकता और जिज्ञासावश पोलिंग बूथ के आसपास मँडराने लगे।

मतदान प्रातः 7 बजे आरंभ हुआ। 8-10 मतदाताओं की पंक्ति लगी थी। एक-एक करके मतदाता अंदर जाता था। अंदर जाने और बाहर आने की प्रक्रिया में 5 मिनट लग जाते थे। लगता था पोलिंग और प्रिजाइडिंग अधिकारी अनाड़ी थे, अतः अंदर की कार्यवाही चींटी की चाल से चल रही थी। परिणामतः 9 बजे तक लगभग 50 मतदाता प्रतीक्षारत हो गए। लोग कानाफूसी कर रहे थे। एक-दो साहसी युवक अधिकारियों से बात करने करने आगे बढ़े, तो रिजर्व पुलिस के सिपाही ने उन्हें रोक दिया। उम्मीदवारों के चुनाव- एजेंटों से शिकायत की गई। उन्होंने चुनाव अधिकारी से बातचीत की, किंतु वे अपनी कार्य-पद्धति को बदलने के लिए तैयार न हुए।

पोलिंग बूथ के बाहर दूर-दूर तक न शामियाने लगे थे, न झंडियाँ। मैंने कौतूहलवश एक चुनाव-एजेंट से इसका कारण जानना चाहा। उसने बताया कि प्रायः झगड़े का कारण तम्बुओं में एकत्रित समर्थक होते हैं, जो नारे लगाते-लगाते हाथापाई कर बैठते थे। अतः शामियाने लगाने पर रोक लगा दी गई है- ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।’

फिर भी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लोग चुनाव केंद्र से काफी दूर कुर्सी- मेज डाले बैठे थे। वहीं वे लोग वोटरों को हाथ जोड़कर या हाथ मिलाकर अपने उम्मीदवार को वोट देने के लिए संकेत करते थे या कहते थे।

बारह बजते-बजते पोलिंग बूथ पर नारेबाजी शुरू हो गई। मैं भागा हुआ गया। देखा 8-10 लोग प्रिजाइडिंग ऑफीसर को घेरे खड़े हैं और उसकी कार्य-प्रणाली पर असंतोष प्रकट कर रहे हैं। उधर लाइन देखी तो दंग रह गया। 80-10 नर-नारी, युवा-वृद्ध पंक्ति में खड़े थे। इधर जिद्दी और अड़ियल अधिकारी मानता न था, उधर घेरा बढ़ता जा रहा था। लाइन टूट गई। पुलिस ने हस्तक्षेप किया, किंतु उसका हस्तक्षेप भी व्यर्थ गया।

अकस्मात् भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार उधर आ निकला। लोगों ने चुनाव अधिकारी का घेरा तोड़कर उस उम्मीदवार को घेर लिया। ये सज्जन पुराने खिलाड़ी थे, समझदार थे। चुनाव अधिकारी को पोलिंग बूथ में ले गए। कार्य-पद्धति को देखा और समझा। होता यह था कि चुनाव कक्ष में पहला अधिकारी सुस्त और चुंधा था। वह वोट-नम्बर ढूँढ़ने में काफी समय लगा देता था। इसके कारण एक-एक वोटर के भुगतान में 5- 5 मिनट लग जाते थे। उसे वहाँ से हटाया गया, इस काम के लिए दो आदमी रखे गए। दो कार्यकर्ता सहयोग के लिए रखे गए। पुनः लाइन लगी और वोट पड़ने शुरू हुए।

तीन बजे मुझे भी अंदर जाने का सौभाग्य मिला। एक वृद्धा को, जो चलने में असमर्थ थी, मैं अपनी पीठ पर बैठाकर ले गया। बिना पंक्ति मुझे प्रवेश मिल गया। अंदर की कार्य- संचालन- पद्धति देखी। एक अधिकारी वोटर लिस्ट में से वोटर का नाम देख रहा था। नाम सही होने पर दूसरा अधिकारी बाएँ हाथ की तर्जनी के अग्र भाग पर नाखून के समीप विशेष प्रकार की अमिट स्याही का निशान लगा रहा था। तीसरा अधिकारी काउंटर फाइल पर हस्ताक्षर करवा कर वोटर नम्बर की पर्ची दे रहा था।

वृद्धा को पर्ची मिलने तक मैं साथ रहा, बाद में उसे कुर्सी पर बैठा दिया गया। अशिक्षित होने के कारण वह स्वयं मशीन का बटन दबाने में असमर्थ थी। अतः केंद्र-अधिकारी ने उससे उम्मीदवार का नाम पूछा और उसकी इच्छानुसार मशीन का बटन दबा दिया। मत मशीन पर दर्ज हो चुका था। दिल्ली में इस बार मशीनों से मतदान हुआ था। उनमें प्रत्याशियों के नाम व चुनाव चिह्न थे। इससे मतदाताओं को काफी सुविधा हुई।

मैंने वृद्धा की सहायता सेवा-भाव से की हो, ऐसा नहीं। सच्चाई तो यह थी कि मत डालने की प्रक्रिया देखने का मेरा वह एक बहाना था।

अपनी विजय पर प्रसन्न होकर मैं अपने दो-चार दोस्तों के साथ पोलिंग बूथ के चक्कर लगाता रहा। परिचितों को नमस्ते, बड़ों का चरण-स्पर्श करता रहा। लगभग साढ़े तीन बजे भाजपा और कांग्रेस के समर्थकों में थोड़ा झगड़ा हो गया। झगड़े का कारण था-कांग्रेसी झंडे युक्त एक कार से पाँच वोटरों का पोलिंग बूथ के द्वार पर उतरना। भारतीय जनता पार्टी ने कार पर घेरा डाल दिया। झगड़ा बढ़ा। इसी बीच कार की फोटो ले ली गई। नारे बाजी शुरू हो गई। नारे बाजी हाथा-पाई में बदली। पुलिस ने हस्तक्षेप किया, किंतु भारतीय जनता पार्टी के समर्थक कार छोड़ने को तैयार नहीं थे-प्राण जाएँ पर, कार न जाई। था भी यह गैर-कानूनी काम। वोटरों को सवारी की सुविधा देना कानूनी अपराध है। थोड़ी देर बाद पुलिस कमिश्नर पहुँचे। भीड़ हटा दी गई। कुछ देर बातचीत के बाद मामला शांत हो गया।

पाँच बचने वाले थे। पोलिंग बूथ पर 70-80 वोटरों की लाइन लगी थी। प्रिजाइडिंग ऑफिसर ने बुद्धिमत्ता से काम लिया। पंक्ति में खड़े लोगों को वोट डालने की आज्ञा दे दी।

वोट डालने की प्रक्रिया समाप्त हुई। पोलिंग एजेंट मत पत्र पेटी को सील करने में लगे थे, उधर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के समर्थक नारे लगा रहे थे। जोश में होश नहीं था। वे भूल रहे थे कि उनके उम्मीदवार का भाग्य तो मशीन में बंद हो चुका है। फिर नारेबाजी किसलिए?

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Avinash Ranjan Gupta

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