जिन कुछ शब्दों ने आज के अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त कर लिया है, उनमें से ‘पंचशील’ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। आज संस्कृत का यह शब्द केवल भारतवर्ष में ही नहीं बोला जाता, अपितु संसार के सभी महाद्वीपों — रूस, अमरीका, ब्रिटेन और चीन आदि सब देशों में यह शब्द बहुत अधिक प्रसिद्ध हो चुका है। विविध देशों के राजनैतिक नेताओं के भाषण हों, शासकों की घोषणाएँ हों अथवा पत्रों में संपादकों के अग्र लेख हों, पंचशील सब जगह हम सुन या पढ़ सकते हैं। इसने अंग्रेजी के ‘नाटो’, ‘मीडो’ और ‘सीटों’ आदि शब्दों को कहीं पीछे छोड़ दिया है।
आज की परिस्थितियाँ
आखिर पंचशील के इतनी अधिक प्रसिद्धि और लोकप्रियता प्राप्त करने का क्या कारण है? पंचशील में ऐसी कौन-सी विशेषताएँ हैं, जिनके कारण वह संसार के महान् राजनीतिज्ञों और शासकों को इतना प्रभावित कर रहा है। इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह आवश्यक है कि हम यह देखें कि पंचशील का जन्म किन स्थितियों में हुआ और इसका स्वरूप क्या है।
गत महायुद्ध की समाप्ति के बाद संसार में विश्व शांति की स्थापना तथा युद्धों को सर्वथा रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई थी। किंतु संसार ने जल्दी ही यह देखा कि यह संघ भी रूस या अमरीका के पारस्परिक स्वार्थ भेद के कारण दो गुटों का अखाड़ा बन गया है। दोनों देश संसार के सब देशों को अपने-अपने गुट में लाने के लिए सिरतोड़ कोशिश कर रहे हैं। हालत यहाँ तक खराब हो गई कि दोनों देश अपने-अपने समर्थक देशों के साथ युद्ध की भीषण तैयारियों में लग गए। अणु व उद्जन बम के परीक्षण करके दोनों देश संसार को चिंता और आशंका में डालने लगे। तीसरे विश्व – युद्ध के द्वारा संसार के विनाश की संभावनाएँ प्रतिदिन बढ़ने लगीं। यह समय था, जब विश्व के राजनैतिक मंच पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी का हिंसा, शांति और प्रेम का संदेश लेकर प्रवेश किया। नेहरू जी ने समस्त स्थिति का विश्लेषण किया। वे इस परिणाम पर पहुँचे कि जब तक संसार के देश यह घोषणा नहीं कर देंगे कि वे किसी भी गुट में शामिल नहीं होंगे तथा न अमरीका और रूस के हथियार बनेंगे, तब तक युद्ध और विनाश का आतंक संसार में बढ़ता जाएगा। उन्होंने युद्ध के मुख्य कारणों पर भी विचार किया और यह अनुभव किया कि विश्व शांति स्थापित करने के लिए आधारभूत सिद्धांतों की सर्वसम्मत स्वीकृति आवश्यक है, और यह तो प्रत्येक देश को मान ही लेना चाहिए कि वह वादविवाद ग्रस्त प्रश्न को युद्ध द्वारा नहीं निपटाएगा। इंडोनेशिया में रणचण्डी चेत रही थी और किसी भी समय यह दक्षिण-पूर्वी एशिया में व्याप्त हो सकती थी। युद्ध की संभावना का एक बड़ा भारी कारण यह भी है कि एक और रूस चाहता है कि दुनिया के देशों में रूस का सा साम्यवाद प्रचलित हो जाए और दूसरी ओर अमरीका तथा ब्रिटेन लोकतंत्रवादी पद्धति का प्रचार चाहते हैं। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी प्रकार के उपाय काम में लाने की कोशिश की जाती है और इससे विश्व शांति का खतरा बढ़ जाता है।
सह-अस्तित्व व पंचशील
पंडित जवाहरलाल ने सह-अस्तित्व का सिद्धांत संसार के सामने रखा। उन्होंने रूस और अमरीका दोनों के मित्र रहकर भी न केवल किसी गुट में शामिल होने से इनकार कर दिया, अपितु अन्य देशो को भी इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे किसी गुट में शामिल न हों और इस तरह संसार में ऐसा एक तीसरा क्षेत्र बहुत व्यापक और संगठित करने का प्रयत्न किया, जो विश्व शांति को अपना लक्ष्य मान ले। अहिंसा और शांति का संदेश सबसे पहले आज से दो हजार वर्ष पूर्व महात्मा बुद्ध ने दिया था। उन्होंने संसार को मुक्ति दिलाने के लिए जिन पाँच नियमों का प्रचार किया, वे पंचशील के नाम से प्रसिद्ध थे। उसी आधार पर पंडित नेहरू ने विश्व शांति के लिए नए पाँच सिद्धान्तो का आश्रय लिया। यह सिद्धांत संक्षेप में निम्नलिखित हैं-
(1) एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता एवं प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
(2) आक्रमण न करना।
(3) एक दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(4) समानता एवं परस्पर लाभ।
(5) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
पंचशील के इन सिद्धांतों का सीधा अर्थ यह है कि संसार में कोई देश अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए, दूसरे देश पर आक्रमण नहीं कर सकेगा; न एक दूसरे के घरेलू मामलों में गृह-युद्ध आदि की स्थिति में ही हस्तक्षेप कर सकेगा; तथा छोटे-बड़े सभी देश एक समान स्तर पर स्वतंत्रता का उपयोग कर सकेंगे, समाजवादी अथवा लोकतंत्रवादी दोनों प्रकार के देश एक दूसरे के साथ परस्पर व्यवहार कर सकेंगे और एक दूसरे को सहन कर सकेंगे।
लोकप्रियता
पंचशील के इन सिद्धांतों ने संसार में एकदम लोकप्रियता प्राप्त कर ली। वस्तुतः संसार युद्ध और विनाश की आशंका से भयभीत है। इन सिद्धांतों ने भयभीत विश्व को आशा की एक सुनहरी किरण दिखाई। उसने समझा कि यह सिद्धांत है जिससे वह अपनी और अपनी संतान की रक्षा कर सकती है। किसी देश की जनता युद्ध नहीं चाहती। इसलिए पंचशील के इन सिद्धांतों में अपना त्राण समझा। कम्यूनिस्ट चीन के प्रधान मंत्री जब भारत में आए, तब उन्होंने सह-अस्तित्व के इन सिद्धांतों को स्वीकार किया।
चीन साम्यवादी देश है। उसके संबंध में पश्चिमी राष्ट्रों का यह विश्वास है कि वह युद्ध और आक्रमण की नीति का त्याग नहीं कर सकता। पंचशील की यह संयुक्त घोषणा इन महान् सिद्धांतों की सफलता का बहुत बड़ा प्रमाण था। चीन के अनाक्रमण के आश्वासन के कारण इंडोचायना में युद्ध के व्यापक होने का भय कम हो गया। इसके बाद तो बर्मा, यूगोस्लाविया, रूस और पोलैंड आदि ने भी अंतर्राष्ट्रीय संबंध में पंचशील के सिद्धांतों को स्वीकार कर लिया। विश्व शांति के प्रयत्नों के सिलसिले में जब एशियाई और अफीकी देशों का एक सम्मेलन बाँडूँग में हुआ, वहाँ भी पंचशील के इन पाँचों सिद्धांतों को (भले ही भिन्न रूप में) स्वीकार कर लिया।
वस्तुतः विश्व शांति के लिए महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत को मानना अत्यंत आवश्यक है। अहिंसा के मूल में ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत काम कर रहा है। जब तक हम इस सिद्धांत को स्वीकार न करेंगे, तब तक विश्व से हिंसा और युद्ध को समाप्त नहीं किया जा सकता। एक दफ़ा आप यह निश्चय कर लीजिए कि आप दूसरे की स्वतंत्रता नहीं छीनेंगे और न किसी दूसरे देश को आक्रमण में सहायता देंगे तो शांति की संभावनाएँ बहुत बढ़ जाती हैं। पंचशील के यह सिद्धांत इतने निर्विवाद हैं कि इनका विरोध संभव ही नहीं है।
यह ठीक है कि साम्यवादी देशों के अब तक के इतिहास को देखते हुए अमरीका आदि देश उन पर विश्वास नहीं करना चाहते। उनके इस कथन में भी सच्चाई अवश्य विद्यमान है कि जो अपने देश में किसी दूसरे राजनैतिक दल की विद्यमानता को सहन नहीं कर सकता, वह अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में सह-अस्तित्व को कैसे स्वीकार करेगा। किंतु आज आवश्यकता यह है कि इस प्रकार के संदेहों पर अधिक बल न देते हुए सह-अस्तित्व और एक दूसरे के प्रदेश की अखंडता और स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए विश्व में से युद्ध के भय को सदा के लिए समाप्त कर दिया जाए। परंतु इसके लिए राजनैतिक या आर्थिक -साम्राज्यवाद का लोभ पहले छोड़ना पड़ेगा।