संकेत बिंदु-(1) इतिहास में गौरव का दिन (2) पोखरण परीक्षण के लिए पृष्टभूमि (3) उपकरणों का विस्फोट (4) अनेक देशों द्वारा भारत पर प्रतिबंध (5) उपसंहार।
11 मई 1998 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा, क्योंकि उस दिन विश्वव्यापी निंदा, आलोचनाओं और आर्थिक प्रतिबंधों का संकट उठाकर भी अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने पोखरन में परमाणु परीक्षणों को मूर्तरूप दिया। श्री अटलबिहारी वाजपेयी सरकार इन परीक्षणों का शौर्य दिखाकर गौरव का पात्र हो गई, क्योंकि श्री राव से गुजराल तक परमाणु परीक्षण की फाइल सभी प्रधानमंत्रियों की मेजों पर हमेशा पड़ी रही, किंतु वे शौर्य प्रकट करने का साहस नहीं जुटा पाए। परीक्षणों के पुरोधा चार वैज्ञानिकों-सर्वश्री आर. चिदंबरम् (चीफ डिजाइनर), ए. पी. जे. अब्दुलकलाम (प्रेरणा पुरुष, वर्तमान राष्ट्रपति), अनिल काकोडकर (असाधारण विशेषज्ञ) तथा के संथानम् (श्रेष्ठ समन्वयकार) के भारतवासी सदा कृतज्ञ रहेंगे, जिन्होंने भारत-राष्ट्र के भाल को विश्व प्रांगण में आत्म गौरव मे दीप्त किया, गर्व से ऊँचा उठाया।
10 अप्रैल 1998 को प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण की स्वीकृति प्रदान की तो लगभग 100 वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का दल पोखरन के लिए रवाना हो गया। परोक्षण का समय एक मास बाद तय किया गया।
इस संबंध में श्री राज चेंगप्पा लिखते हैं-पाँच परीक्षणों के लिए प्लूटोनियम के मूल भाग को जिस तरह से ढोकर लाया गया वह ठोस योजना का उदाहरण है। परीक्षणों से दस दिन पहले वायु सेना के ए-एन-32 विमान ने रात में मुंबई के सांताक्रुज हवाई अड्डे से उड़ान भरी। उसमें रखे आधा दर्जन लकड़ी के क्रेटों की रखवाली कुछ स्टेनगनधारी कमांडो कर रहे थे। सेब रखने वाले बक्से से मिलते-जुलते उन क्रेटों में धातु की कवच के भीतर विस्फोटक श्रेणी के प्लूटोनियम के गोले रखे थे। देश के अग्रणी ऊर्जा संस्थान ट्रॉम्बे स्थित भाभा परमाणु ऊर्जा केंद्र (बार्क) में तैयार एक गोले का वजन 5 से 10 किग्रा. के बीच था। दो घंटे बाद जोधपुर में हवाई अड्डे के बाहर खड़े ट्रकों में से एक में उन क्रेटों क़ो रख दिया गया। इसे आम काफिला दिखाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई और रात के अंधेरे में काफिला रवाना होकर पोखरन पहुँचा। पारंपरिक विस्फोटक डिटोनेटर और ट्रिगर पहले पहुँचा दिए गए थे। फिर वैज्ञानिकों ने उपकरणों के विभिन्न घटकों को जोड़ना शुरू कर दिया। अमेरिका के टोही उपग्रहों से बचने के लिए उन्होंने रात में ही ज्यादातर काम किए। मुख्य डिजाइनर चिदंबरम् ने सेना के ट्रक में रेगिस्तान में दो दिन तक थकाऊ सफर किया।
11 मई, सोमवार को सैनिकों ने मध्याह्न पूर्व पोखरन के खेतोलाई गाँव जाकर ऐलान किया कि कोई बड़ा गोला फटने वाला है, घर हिल सकते हैं, इसलिए घरों से बाहर आ जाएँ। एक गाँव से दूसरे गाँव जाने पर प्रतिबंध था। सड़कों पर यातायात अवरुद्ध कर दिया गया।
11 मई को ठीक 1 बजे विद्युत्धारा प्रवाहित कर दी गई। तभी अचानक तेज हवा चलने लगी। तापमान 43 डिग्री सेल्शियस तक पहुँच गया। दोपहर तक हवा रुक गई। टाइमर ने 3.45 पर तीनों उपकरणों का विस्फोट करा दिया।
जमीन में 200-300 मीटर नीचे 10 लाख डिग्री सेंटीग्रेट तक तापमान पैदा हुआ-सूरज के बराबर तापमान। करीब 1,000 टन की चट्टान या छोटी पहाड़ी फौरन भाप बन गई और चट्टान के नीचे धंसने के साथ ही उतनी चट्टान और पिघल गई। वह फौरन ठंडी हो गई और उसने रेडियोधर्मिता को रोक दिया। फुटबॉल के मैदान के बराबर की जमीन कई मीटर ऊपर उठ गई। देशभर में और वहाँ आसपास रखे दर्जनों भूकंपमापी यंत्रों ने फौरन परीक्षण को रेकॉर्ड करके उनकी पुष्टि कर दी।
यह विस्फोट एक नहीं, तीन थे-पहला, फिशन (विखंडन), दूसरा कम शक्ति वाला नाभिकीय और तीसरा थर्मोन्यूक्लियर नाभिकीय विस्फोट।
विश्व के कड़े विरोध, अमेरिका के आर्थिक तथा सैनिक सहयोग प्रतिबंध; जापान, स्वीडन, डेनमार्क, हॉलैंड, नार्वे तथा नीदरलैंड द्वारा सहायता रद्द करने की घोषणा के बावजूद भी 13 मई 1998 को दोपहर 12.21 पर दो और परमाणु परीक्षण करके भारत ने अपनी परमाणु परीक्षण शृंखला पूरी कर ली।
इस परीक्षण से रुष्ट होकर अमेरिका ने भारत आर्थिक तथा सैनिक सहयोग पर प्रतिबंध लगाया तो कनाडा ने भविष्य में मदद की बात खत्म की। स्वीडन ने सभी मदद बंद कीं। जापान ने मदद पिछले साल के स्तर पर बंद की तथा आस्ट्रेलिया ने अनुदान रोका, ऋण वार्ता रद्द की। भारत के विपक्षी दलों ने भी इस परीक्षण की निंदा की। तथाकथित शांति-दल इसे अहिंसा का विरोधी बताने लगे।
भले ही भारत का विपक्ष और विदेशी राष्ट्र भारतीय परमाणु परीक्षणों को जी भर कर कोसें, किंतु अटल जी के शब्दों में यह तो कटु सत्य है कि, “इन परीक्षणों का सबसे बड़ा लाभ यही है कि इन्होंने भारत को शक्ति दी है, मजबूती दी है और आत्म-विश्वास दिया हैं।”
श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के शब्दों में, “ अब हमारे पास परमाणु धमकियों का मुँहतोड़ जवाब देने की क्षमता है।” चीफ डिजाइनर श्री आर. चिदम्बरम् तो यह मानते हैं, “ ताकत जगजाहिर होने का फायदा यह है कि उसका इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा।”
इसका लाभ भी सामने आने लगा है। अब लगभग ढाई वर्ष पश्चात् (2000 ई. का अंत आते-आते) विश्व राष्ट्रों के आँखों के आगे आई धुन्ध छटने लगी है। उन्होंने भारतीय परमाणु परीक्षण की अनिवार्यता समझ ली है और आर्थिक प्रतिबंधों को धीरे-धीरे समाप्त करना आरंभ कर दिया है तथा ऋण व अनुदान देने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है।