भारतीय वेशभूषा पर पाश्चात्य प्रभाव

pashchatya sabhyata ka bharteey sanskriti par prabhav

संकेत बिंदु-(1) युवाओं में आकर्षक दिखने की लालसा (2) विदेशों में भारतीय परिधानों की माँग (3) पश्चिमी सभ्यता की अश्लीलता का अनुसरण (4) पाश्चात्य वेशभूषा पर अंकुश (5) उपसंहार।

‘है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ। पूरब का रहने वाला हूँ, पूरब के गीत सुनाता हूँ ‘ यह गीत मनोजकुमार की फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ का है, जिसमें पूरब पर पश्चिम के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। आज प्रत्येक युवक और युवती में आकर्षक दिखने की लालसा घर कर गई है और इस बात की प्रतिस्पर्धा महानगरों में ही नहीं छोटे नगरों और यहाँ तक कस्बे और ग्रामों में भी देखने को मिलती है। आज भारतीय वेशभूषा पर पश्चिम का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि कभी-कभी तो किसी युवती को इतने कम कपड़े पहने देखकर देखने वाले का सर स्वयं लज्जा से झुक जाता है।

इस बदलते परिवेश पर कटाक्ष करते हुए एक गीतकार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि-‘तंग पेन्ट पतली टाँगें, लगती हैं सिगरेट जैसी’ समय-समय पर भारतीय वेशभूषा पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव पर रचनाकारों, बुद्धिजीवियों ने कटाक्ष और व्यंग्य भी किए मगर सुरक्षा की भाँति यह प्रभाव देश में बढ़ता ही गया। आज की युवा पीढ़ी के फैशन और पहनावे को देख लगता तो यही है कि शायद भारत में कपड़े के कारखाने ही बंद हो गए हैं, मगर ऐसा नहीं है, कपड़ा तो बन रहा है लेकिन तन को नंगा रखने का एक चलन-सा हो गया है। इस दशा पर कवि मनोहर लाल ‘रत्नम् ‘ ने बड़े तीखे व्यंग्य करते हुए अपने गीत में कहा है-

कहीं फटे चिथड़ों में यौवन, कहीं अमीरी का नंगापन।

कहीं रूप के टूटे दर्पण, कहीं दर्पणों का टूटापन॥

विडंबना यह है कि हमारे देश का युवा पश्चिम की नकल कर रहा है और पश्चिम वाले भारतीय सभ्यता और संस्कृति को सर्वोपरि मानकर स्वीकार कर रहे हैं। अभी महानगर दिल्ली में कुछ जापान के लोगों से भेंट हुई तो आश्चर्य इस बात का हुआ कि जापानी युवतियों ने शुद्ध भारतीय परिधान अर्थात् साड़ी पहन रखी थी और पुरुषों ने कुर्ता-पायजामा। देखकर विचित्र लगा और बात करने पर एक जापानी युवक ने बताया कि आपके यहाँ का कुर्ता-पायजामा बड़ा आरामदायक है और युवती बोली जब से मैंने इण्डिया में आकर साड़ी पहनी है, मुझे पेन्ट और शर्ट अब अच्छी नहीं लग रही है। परिवर्तन का अंतर जो आसानी से समझ में आने वाला है कि विदेशी युवक-युवतियाँ भारतीय परिधान को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं और भारतीय पश्चिमी सभ्यता में रंग जाना चाहते है। फिल्म निर्माता मनोजकुमार ने अपनी एक फिल्म में इसकी चर्चा भी की है कि, ‘जब फैशन इतना बढ़ता गया, और कपड़ा तन से हटता गया, हम देखकर भी अंधे बने रहना चाहते हैं और सुनकर भी बहरे होने का हम अभिनय करते हैं।

हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूल जाते हैं, हम भूल जाते हैं कि सूर्य सदैव पूरब से उदय होकर पश्चिम में अस्त होता है, लेकिन हम प्रकृति के सारे नियम एक ओर करके पता नहीं क्यों पश्चिमी सभ्यता में रंग जाना चाहते हैं। देश में जहाँ एक ओर भारत को विश्व गुरु बनाए जाने के सपने को साकार करने का स्वप्न देखा जा रहा है, वहीं देश की युवा पीढ़ी वेशभूषा में पश्चिम का अनुसरण कर नंगेपन को बढ़ावा देने में अपने गौरव का अनुभव करने में लगी है।

जब युवक या युवती भड़काऊ कपड़े पहनकर बाहर खुली सड़कों पर दौड़ेंगे तो अनुमान लगाया जा सकता है कि दुराचार को भी बढ़ावा मिलेगा, जिसके साथ-साथ देश में अपराध का ग्राफ भी बढ़ेगा। फैशन उतना ही अच्छा लगता है, जिसे समाज स्वीकार करे। जो कपड़ा आलोचना का कारण बने उसका त्याग करना ही अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक। वैसे तो हर प्राणी संसार में नंगा ही जन्म लेता है और युवा होने पर नंगेपन का प्रदर्शन; देश व समाज को ही नंगा करने के समान है। नर हो या नारी, सबको चाहिए कि पहनावा ऐसा पहना जाए जिससे किसी को न तो आपत्ति हो और न स्वयं लज्जित होना पड़े।

जब से भारतीय वेशभूषा पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा है तब से हमारे देश में फैशन शो आयोजित होने लगे हैं, यही नहीं देश में फिल्मों और एलबम के माध्यम से भी जो नंगापन पर परोसा जा रहा है वह भी युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट बनाने में सहायक होते हैं। भारतीय वेशभूषा पर पाश्चात्य प्रभाव को जितनी जल्दी हो सके इस पर अंकुश लगना चाहिए अन्यथा आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी नंगेपन का अभ्यासी होकर समाज को गंदला कर देगा। भारतीय वेशभूषा पर पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव को देखकर एक कवि ने कितनी सुंदर पंक्तियाँ युवा पीढ़ी को समर्पित की हैं, ताकि उनकी आँख खुल सकें और वह अपने तन को पूरी तरह से ढकने की पहल कर सकें-

कभी यह पैन्ट सिकुड़ती है, कभी ढीली हो जाती है। लड़कियाँ बन जाती हैं मर्द, मर्द लड़की बन जाते हैं॥ बढ़ाकर सर के लंबे बाल, कोई तो हिप्पी बन बैठा। बढ़ाकर यह मूँछों की पूँछ, कोई है जिप्सी बन बैठा॥ पहनते हैं ऐसे कपड़े, लाज कपड़ों को आती है।

जवानी बीच चौराहे, हाय निगौड़ी मसली जाती है॥

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की रक्षा हेतु अब हमें भारतीय वेशभूषा पर छा रहे पाश्चात्य के प्रभाव को हटाने का समय आ गया है और इसके लिए सार्थक पहल करने के लिए देश के युवा वर्ग को ही आने आने की आवश्यकता होगी।

About the author

हिंदीभाषा

Leave a Comment

You cannot copy content of this page