संकेत बिंदु-(1) पेड़-पौधे और पर्यावरण का संबंध (2) पर्यावरण की शुद्धता का महत्त्व (3) पेड़-पौधों से पर्यावरण सुशंधित (4) वर्षा के निमंत्रणकर्त्ता (5) पुराणों में पेड़ का महत्त्व।
पेड़ वृक्ष का पर्यायवाची है। वृक्ष, बाड़ या भूमि पर फैलने वाले वनस्पति को लता या बेल कहते हैं। लताओं, पेड़ों और झाड़ियों से भिन्न वे वनस्पतियाँ जो दो-तीन हाथ तक ऊपर उठती हैं तथा जिनके तने और शाखाएँ बहुत कोमल होते हैं ‘पौधे’ या पादप कहलाते हैं। भूमि का बाह्य वातावरण अथवा जलवायु की विशेष स्थिति पर्यावरण है।
पेड़-पौधे और पर्यावरण का संबंध माता-पुत्र का सा है। जिस प्रकार माता अपने स्तन पान कराके शिशु को पालती है, उसी प्रकार पेड़-पौधे अपनी ऑक्सीजन से पर्यावरण को स्वस्थ और शुद्ध रखते हैं। जिस प्रकार माँ बालक की शरारत और उद्दंडता को क्षमा करके उसके प्रति किए गए उपालम्भ को पचा जाती है, उसी प्रकार ये पेड़-पौधे मानव द्वारा छोड़ी नाइट्रोजन तथा वातावरण में फैली अन्य प्रदूषित गैसों को उदरस्थ कर जाते हैं।
सृष्टि के आरंभ में पेड़-पौधे और वनस्पति की उत्पत्ति में जगत्-नियंता ने पर्यावरण की शुद्धता का महत्त्व समझकर, इन्हें प्राथमिकता दी थी। महाकवि प्रसाद ने कामायनी में इस सत्य को इस प्रकार प्रकट किया है-
धीरे-धीरे हिम आच्छादन, हटने लगा धरातल से।
जगी वनस्पतियाँ अलसाई मुख, धोती शीतल जल से॥
प्रत्येक प्राणी श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ता है। जबकि पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड खाते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इससे पर्यावरण स्वस्थ और संतुलित रहता है। पेड़-पौधों की श्वास-प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए श्री हरचरणलाल शर्मा लिखते हैं-
पेड़-पौधों की पत्तियों में बारीक रंध्र होते हैं, जिनके दोनों ओर रक्षक कोशिकाएँ होती हैं। इन्हीं रंध्रों के द्वारा वातावरण और पौधों में गैसों का विनिमय होता है और जैविक क्रियाएँ संपन्न होती हैं। पत्तियों के इन छोटे-छोटे रंध्रों से वायु भीतर जाती है। यहाँ प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के द्वारा कार्बन-डाइऑक्साइड का ऑक्सीजन में परिवर्तन होता है। इस प्रकार इन रंध्रों से जो गैस बाहर निकलती है, उसमें कार्बन-डाइ-ऑक्साइड की अपेक्षा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है।’
पेड़-पौधे जब पुष्पों फलों से लदे होते हैं तो अपनी सुगंध से वातावरण को सुगंधित करते हैं, पर्यावरण का मोहित करते हैं। मादक महकती वासंती बयार में; मोहक रस पगे फूलों की पराग में; हरे-भरे पौधे की उड़ती बहार में; करकई, काँकर, कवड़, कचनार, महुआ और आम की गंधसनी मदमाती मुस्काती पवन में पर्यावरण के दोषों के प्रक्षालन की शक्ति है।
सुभद्राकुमारी चौहान ‘वीरों का कैसा हो वसंत?’ कविता में पेड़-पौधों के पुष्पित प्यार का वर्णन करते हुए लिखती हैं-
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग
वधु वसुधा का पुलकित अंग-अंग।
‘वधु-वसुधा का पुलकित अंग-अंग’ ही तो पर्यावरण के प्रदूषण को उदरस्थ करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
पर्याप्त वर्षा पर्यावरण की शुद्धि की कुंजी है। पेड़-पौधे वर्षा के निमंत्रक भी हैं और नियंत्रक भी। जहाँ पेड़-पौधे अधिक संख्या में होते हैं, वहाँ वर्षा भी अधिक तथा ठीक समय पर होती है, किंतु जहाँ पेड़-पौधे नहीं होते (जैसे मरुभूमि में) वहाँ वर्षा बहुत ही कम होती है। जब वर्षा होती है तो पेड़-पौधों की मिट्टी उस जल को पी लेती है। उसके चहुँ ओर बिखरे पत्र पुष्प उस पानी को बह जाने से रोकते हैं। परिणामतः बाढ़ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
पेड़-पौधे वर्षा के निमंत्रणकर्ता कैसे होते हैं? इसको स्पष्ट करते हुए कृष्णभगवान गुप्त लिखते हैं-’पौधों में जड़, तना, पत्तियों आदि होती हैं। जड़ मिट्टी से पानी तथा खनिज लवणों को पौधों के लिए अवशोषित करती हैं। यह पानी तने से होता हुआ पत्तियों तक पहुँच जाता है। पानी के कुछ भाग को पौधा अपना भोजन बनाने में उपयोग कर लेता है। शेष पानी पत्तियों की सतह से वाष्प बनकर निकल जाता है। वाष्पित पानी वायुमंडल में मिलकर बादलों का अंश बन जाता है। बादल वर्षा करते हैं।’
इनके प्रदूषण का कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड को छोड़ना है। यदि बहु भीड़-भाड़ की सड़कों के बीच या दोनों किनारों पर पेड़-पौधे लगे हों तो यह प्रदूषण कम हो जाएगा। धूप की सहायता से पेड़-पौधों की पत्तियों के हरे पदार्थ द्वारा कार्बन-डाइ-ऑक्साइड और पानी के बीच एक रासायनिक प्रक्रिया होती है, जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन का निर्माण होता है।
पद्म पुराण का कहना है, ‘जो मनुष्य सड़क के किनारे वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक सुख भोगता है, जितने वर्ष तक वह वृक्ष फलता-फूलता है।’ पेड़-पौधों का रोपण धार्मिक कृत्य मानते हुए मत्स्य पुराण ने कहा, ‘एक वृक्ष का आरोपण दस पुत्रों के जन्म के समान है।’ वराह पुराण के अनुसार ‘पंचाम्रवापी नरकं न याति’ अर्थात् आम के पाँच पौधे लगाने वाला कभी नरक में जाता ही नहीं।’ सच्चाई तो यह है कि पुराणों के कर्ता मुनि यह जानते थे कि कलियुग में ऐसा समय भी आएगा, जब पर्यावरण प्रदूषित होगा। उसको शुद्ध रखने के लिए एक मात्र सृजनात्मक उपाय है-’पेड़-पौधे उपजाओ, उन्हें विकसित करो, पुष्पित पल्लवित करो।’ अतः पर्यावरण की शुद्धि के लिए तथा प्रदूषण से मानवों की रक्षा के लिए अधिक से अधिक पेड़-पौधों का रोपण परमावश्यक है।