संकेत बिंदु-(1) भारत का ‘स्विटजरलैंड’ (2) डल झील की प्राकृतिक सुंदरता (3) कश्मीर के पर्यटन स्थल (4) 1947 में कश्मीर का भारत में विलय (5) उपसंहार।
कश्मीर धरती का स्वर्ग है। केसर की क्यारी है। महर्षि कश्यप की तपोभूमि है। आर्य-संस्कृति का उद्गम स्थल है। अभिनवगुप्त और पाणिनि की जन्मभूमि है और है भगवान अमरनाथ का वास स्थल।” जिसके वानीर-प्रदेश युग-युग से ‘ अमृत पुत्राः ‘ की अनुगूँज से गुंजित रहे, शिवत्व का शाश्वत स्वरूप स्वयंभू शिवलिंग जहाँ साकार है, “ऐसा है मूक-कश्मीर। जहाँगीर ने अपने ‘तुज्क-ए-जहाँगीरी’ में कश्मीर को ‘परिस्तान’ लिखा। महर्षि अरविंद ने इसे ‘भारत का मुकुट’ कहा। विदेशियों ने इसे ‘भारत का स्विट्जरलैंड’ नाम दिया।
सिंधु, झेलम (वितस्ता) और चिनाव (चंद्रभागा) नदियाँ कश्मीर की वक्षमालाएँ हैं। पीर पंजाल और जोजिला पर्वत शृंखलाएँ इसके शरीर के भाग हैं। गुलमर्ग की पुष्पाच्छादित भूमि, पहलगाँव के हिमगिरि-स्पर्शी, भीनी-भीनी सुगंध वाले देवदार के वृक्ष, लेदर (लम्बोदरी) का निर्मल और स्वच्छ शीतल जल एवं ‘हुस्न ए कश्मीर’ डल झील में तिरते हुए गहरी नीली-जल-राशि की गंभीरता समस्त संसार को आकर्षित करती हैं, आमोद-प्रमोद से मस्त होने के लिए, प्रकृति में अपने को विस्मृत करने और इहलोक में इहकाय से स्वर्ग का आनंद प्राप्त करने के लिए।
हजार काफिल-ए-शौक मी कशद शबगीर।
कि बारे ऐश कुशायद व बास्तए कश्मीर।|
(फैजी)
(यहाँ शौक से हजारों काफिले डेरा डालते हैं। इसलिए कि कश्मीर की भूमि पर वे अपनी ज़िंदगी का बोझ हलका कर लें।)
पठानकोट से 262 मील की दूरी पर स्थित है कश्मीर की राजधानी श्रीनगर। ‘डल’ झील इसके प्राण हैं। यह 14 मील लंबी और 5 मील चौड़ी है। शिकारा (हाउस बोट) श्रीनगर की डल झील में भ्रमण कराने की टैक्सी है। सभी ओर ‘हाउस बोटों’ का मजमा लगा रहता है। नीले पानी पर सेवारों का मेला लगा रहता है। शिकारों की मस्त चाल पर पूरी झील में मस्ती का राग किसी अनदेखे सपने-सा तैरता है।
डल झील विश्व की प्राकृतिक झीलों में सर्वाधिक खूबसूरत झील है। यह डल झील ही है, जिसका स्वच्छ जल, उस पर रेंगती हुई किश्तियाँ और शिकारे दिल की धड़कनों को तेज करते जाते हैं। अपने ख्वाबों के गुलाबों को महकाने के लिए और अपने सपनों को साकार करने के वायदे लिए दुनियाभर के लोग यहाँ इसके मोहब्बत भरे शफाफ पानियों व नजारों से आँख मिचौनी करने आते हैं। इसीलिए डल झील को हुस्न-ए-कश्मीर भी कहा गया है।
निशात बाग अर्थात् खूबसूरत रंग-बिरंगे फूलों का उद्यान। इसके पीछे पहाड़ है और आगे डलझील। यहाँ फूलों पर तितलियाँ हैं और सैकड़ों जोड़ियाँ चहल कदमी करती हैं। हरी हरी दूब, झाऊ के पेड़ तथा रंग-बिरंगे झरते फब्बारे, इसके आकर्षण हैं।
श्रीनगर से 60 मील दूर है पहलगाँव। कश्मीर का सबसे स्वास्थ्यवर्धक क्षेत्र। जहाँ पहाड़ों पर बादल प्रायः डेरा डाले धमा चौकड़ी मचाते रहते हैं और धूप आँख-मिचौली खेलती है। पास में बहती है पहाड़ी धारा। चारों ओर उग आए हैं छतनार के फूल। लगता है चप्पा-चप्पा जमीन सैलानियों को गुदगुदाने के लिए बनी है।
पहलगाँव से नौ मील ऊपर चंदनवाड़ी है और चंदनवाड़ी से 18 मील की चढ़ाई पर पावन अमरनाथ जी हैं। हिंदुओं की सांस्कृतिक धरोहर।
गुलमर्ग अर्थात् ‘पहाड़ों की रानी।’ सालभर खूबसूरती और मनोरम दृश्यों से पटी भूमि। मौज और मनोरंजन के साधनों से भरपूर यहाँ की सेबनुमा मुसकराहट अन्यत्र दुर्लभ है। गोल्फ का विश्व प्रसिद्ध मैदान है। इतनी ऊँचाई पर गोल्फ का दूसरा मैदान विश्व में नहीं है, तभी तो दुनियाभर के गोल्फ प्रेमी यहाँ आते हैं।
कश्मीर का असली सौंदर्य है, उसके अंचल में। रनमार्ग के नीचे धानी अंचल में, जहाँ सेब और अखरोट के पेड़ों का सौंदर्य बिखरा पड़ा है। श्री शंकरदयाल सिंह के शब्दों में, ‘फूलों और फलों का कश्मीर, अखरोट की कठोरता और केसर की सुगंध और ताजा सेबों की मोहकता का कश्मीर तो यहाँ है।’
कश्मीर की चारों दिशाएँ विश्व के अनेक राष्ट्रों का सीमान्त हैं। पूर्व में तिब्बत, पश्चिम में अफगानिस्तान, उत्तर में रूस और चीनी सिकियाँग तथा दक्षिण में पाकिस्तान है। भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से गिलगित इसका अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। मैत्री के उपहार में पाकिस्तान ने इनका कुछ भाग चीन को दे दिया है।
15 अगस्त, 1947 को भारत स्ततंत्र हुआ। कूटनीतिज्ञ अंग्रेजों ने भारत का विभाजन न केवल भारत और पाकिस्तान के रूप में किया, बल्कि देश में विद्यमान सैकड़ों देशी रियासतों को भी पृथक्-पृथक् इकाइयों के रूप में स्वतंत्र कर दिया। तत्कालीन उपप्रधानमंत्री, सरदार बल्लभ भाई पटेल के जो गृहमंत्री पद पर विद्यमान थे, बुद्धिकौशल से 584 रियासतों को भारत संघ में सम्मिलित करवा दिया, किंतु कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने इस स्थिति का लाभ उठाया और वे किसी ओर भी सम्मिलित न होकर स्वतंत्र राज्य के स्वप्न देखने लगे। महाराजा हरिसिंह के प्रधानमंत्री रामचंद्र-काक ने ‘व्यापारिक और प्रशासनिक सुविधा के लिए पाकिस्तान से अस्थायी समझौता किया’, किंतु 17 अक्तूबर, 1947 को ही कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन ने पाकिस्तान से संबंध-विच्छेद की चेतावनी दी और परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने कबायलियों के नाम पर 22 अक्तूबर, 1947 को ब्रितानी जनरल मेसर्बी के नेतृत्व में दस हजार सैनिक भेजकर कश्मीर पर सशस्त्र आक्रमण कर दिया।
और यहीं से कश्मीर के इतिहास ने नई करवट बदली। अन्य देशी राज्यों के विलीनीकरण की भाँति जब कश्मीर के महाराज ने कश्मीर की भारत में विलीनीकरण की प्रार्थना की, तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा ठुकरा दिया गया और विचित्र शर्तें रखी गईं। अंततः विवश होकर महाराजा हरिसिंह ने भारत संघ की विलीनीकरण-शर्तें स्वीकार करते हुए नेशनल कान्फ्रेंस के प्रधान शेख अब्दुल्ला को रिहा कर उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया एवं बदले में उन्हें (राजा को) मिला राज्य-निकाला। 27 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर भारत का अंग बन गया।
दूसरी ओर पंडित नेहरू ने कश्मीर में जनमत संग्रह की बात संयुक्त राष्ट्र संघ में रखकर मानो कश्मीर पाकिस्तान को देने का विधिवत् मार्ग ही पेश कर दिया। इसी आधार पर पाकिस्तान ने भारत परं 1964 तथा 1972 में आक्रमण भी किए। वह कश्मीर को ऐन-केन-प्रकारेण हस्तगत करना चाहता है।
कश्मीर कांग्रेस की मुस्लिम तृष्टिकरण नीति की बलि चढ़ता रहा। 1947 की भारत-संघ में विलय-संधि से लेकर आजतक कांग्रेस-कूटनीति की विफलता का परिणाम है ‘उग्रवाद’। धारा 370 ने उग्रवाद के लिए रक्त संचालन का कार्य किया। परिणामतः आज प्रायः समस्त हिंदू कश्मीर से पलायन कर चुके हैं। शरणार्थी बन जम्मू में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। वहाँ के देवालय खंडित हो चुके हैं। सेना के बल पर प्रांतीय शासन चल नहीं रहा, घिसट रहा है।
अब कश्मीर वह न पृथ्वी का स्वर्ग है, न शांतमय प्रकृति का सौंदर्य क्रीड़ा-स्थल। है तो केवल आतंकवाद की बंदूकों की गरज और उनका शासते।