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एकतंत्र और प्रजातंत्र शासन

rajtantra aur prajatantra par ek laghu nibandh

संभवतः शासन व्यवस्था का सबसे प्राचीनतम रूप एकतंत्र शासन ही है। पहले पहल राज्य संचालन का यह ढंग राजा में देवी शक्ति का आरोप करके किया गया था। संस्कृत-शास्त्रों में राजा को पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना है। प्रारंभ में अराजकता को रोकने के लिए ‘राजा’ में जितनी भी शक्तियाँ होती हैं उन सभी को एकत्रित किया गया है और इस प्रकार राष्ट्र को बलवान बनाकर मानव के हित की भावना को जन्म मिला। भारत के एकतंत्र शासन का क्या प्राचीनतम रूप है उसकी कल्पना हम ‘राम राज्य में कर सकते हैं परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत में प्रजातंत्र शासन की व्यवस्था थी ही नहीं। सिकन्दर महान के आक्रमण काल में वैशाली प्रजातंत्र राज्य था जिसमें राजपुत्रों का निर्वाचन होता था। इसके अतिरिक्त हिंदू शास्त्रों के विधानों के अनुसार प्राचीनतम राज्य-व्यवस्था एकतंत्र रूप में अवश्य मिलती है परंतु राजा स्वेच्छाचारी नहीं होते थे और यदि राजा स्वेच्छाचारी हो जाता था तो प्रजा को अधिकार होता था कि उसे पदच्युत कर सके।

वर्तमान युग में एकतंत्र का अर्थ समझा जाता है स्वेच्छाचारी एकतंत्र सत्ता अर्थात् डिक्टेटरशिप और प्रजातंत्र का अर्थ है प्रजा के मन पर अवलंबित राज्य सत्ता ये दोनों ही विचारधाराएँ वर्तमान युग की है और उनका उदय भारत से न होकर यूरोप से हुआ है। संसार के इतिहास पर दृष्टि डालने से पता चलता है कि संसार में सदैव ही शक्ति के लिए संघर्ष बना रहा है। यूरोप में एक काल तक धार्मिक पादरियों और सामन्तों के बीच संघर्ष चलता रहा। यूरोप में धर्म-शक्ति का धीरे-धीरे ह्रास हुआ और अपने-अपने देश, अपने-अपने राजे शक्तिशाली बने। धर्म-भावना के पश्चात् साम्राज्यवाद की भावना ने बल पकड़ा और बलशाली राजाओं ने अपने यश और गौरव के लिए अन्य देशों पर आक्रमण किया और अपनी निरंकुश शक्ति के बल से अन्य देशों की मानवता को पैरों तले रौंद डाला।

शक्ति और माया कभी स्थायी नहीं रह सकते। जिस प्रकार पोष के करों से यह शक्ति राजाओं पर आकर प्रजा के दलन का साधन बनी उसी प्रकार से इस शक्ति के अपहरण की भावना उत्पन्न हुई। क्रॉमवेल जैसे नेताओं ने राजाओं के विरुद्ध विद्रोह के झंडे ऊँचे किए। रक्त की सरिताएँ प्रवाहित हो नली और जनता के नेताओं ने एक दिन वह आया कि इस शक्ति को राजाओं के हाथों से छीन लिया। इस काल में यूरोप ही नहीं एशिया तक भी दो पक्षों में विभक्त हो गया, एक प्रजातंत्रवादी और दूसरा एकतंत्रवादी प्रजातंत्र के नाम पर दो महायुद्ध हो चुके हैं। सीजर हो, हिटलर हो या मुसोलिनी, सबने शक्ति अपहरण का ही प्रयत्न किया है विजय आज तक प्रजातंत्र की ही होती आ रही है। जनता की स्वतंत्रप्रियता की प्रबल इच्छा को दबाना स्वेच्छाचारी एक-तंत्रवादियों के लिए संभव नहीं हो सका है।

प्रजातंत्र में शासन-शक्ति का संचालन प्रजा के चुने हुए व्यक्तियों द्वारा होता है। इसका जन्म इंग्लैंड से हुआ और धीरे-धीरे संसार भर में फैलता गया। अब्राहम लिंकन ने इस शासन व्यवस्था को “Governinent of the people, by the peolpe, and for the people कहा है “अर्थात् जनता का शासन जनता द्वारा शासित और जनता के लिए शासित”। यह शासन नरेशों और तानाशाही के विपरीत विद्रोह था, क्रांति थी। भारत के आर्य-काल में यूनान में एथेन्स (Athens) का और स्पार्टा (Sparta) के प्राचीनतम राज-तन्त्रों में प्रजातंत्र का प्रारंभिक रूप मिलता है। इसका कुछ आभास हम ऊपर भी दे चुके हैं परंतु उस काल में पार्लियामेंट का तो नाम मात्र भी नहीं था। यह इंग्लैंड की अपनी प्रणाली है जो वहाँ के इतिहास में किसी-न-किसी रूप में राज्य शक्ति के ऊपर अंकुश के रूप में बनी हुई थी। स्टुअर्ट काल में (Divine right of Kingship) राजा के देवी अधिकार के विरुद्ध नामवेल का सफल विद्रोह हुआ।

क्रॉमवेल के विद्रोह से राज्यसत्ता का तो ह्रास हुआ परंतु क्रॉमवेल ‘डिक्टेटर’ का जन्म हो गया। इस प्रकार हम क्रॉमवेल को संसार के इतिहास में सर्वप्रथम डिक्टेटर मानते हैं। इसके पश्चात् जागृति (Renaissance) का युग आया ओर जनता प्रगति की ओर बढ़ी। इंग्लैंड की पार्लियामेंट में हिंग और टोरी दो दल बने जिन्होंने प्रजातंत्र के विचार को और बल दिया। उन्नीसवीं शताब्दी में पार्लियामेंट में सुधारों  माँग की गई और जेबी हल्के (Pocket boroughs) शाही हल्के (King boroughs) तथा उजड़े हुए हल्के (Rotten boroughs) के विरुद्ध एक जोरदार आवाज उठाई। सन् 1832 1868 1872, 1884, 1911 और 1918 में अनेकों सुधार हुए जिनके फलस्वरूप स्त्रियों को भी मत देने का अधिकार मिल गया। अंत में पार्लियामेंट में लेबर कंजरवेटिव पार्टी का जन्म हुआ और प्रजातंत्र धीरे धीरे अपनी वर्तमान परिस्थिति तक पहुँच गया।

प्रजातंत्र का प्रसार धीरे-धीरे विश्व भर में होना प्रारंभ हो गया। अमेरिका, फ्रांस और आज भारत में भी प्रजातंत्र शासन है। चीन का प्रजातंत्र समाप्त हो चुका। प्रजातंत्र में लोकसभा की बहुमत पार्टी का नेता प्रधान मंत्री होता है और वही अपना मन्त्रिमंडल बनाकर शासन व्यवस्था करता है। इंगलैंड में नरेश अभी तक वर्तमान है परंतु भारत और अमेरिका में नरेश नहीं हैं। उनके स्थान पर प्रेसीडेंट होता है। यदि किसी समय अल्पमत वाली पार्टी का नेता बहुमत में आ जाए  तो बहुमत वाली सरकार के विरुद्ध अविश्वास (Vote of non-confidence) का प्रस्ताव रख सकता है। अंग्रेजी लोक सभा में छोटे पिट (The younger Pitt) के कहने पर नरेश को ऐसा करना पड़ा था। इस प्रकार के शासन में शक्ति सर्वदा जनता के हाथों में रहती है। बह जब चाहे तब किसी भी पार्टी को शासन सत्ता सौंप सकती है और जब चाहे उसे ले सकती है। उसी पार्टी को अपना मत देकर अधिक से अधिक संख्या में उसके सदस्य निर्वाचित करके लोक सभा में भेज देती है। इससे बहुमत पार्टी को हर समय जनता का ध्यान रखकर कार्य करना होता है। प्रजातंत्र शासन व्यवस्था में धनी और निर्धन, स्त्री और पुरुष पर वयस्क व्यक्ति को मताधिकार होता है। नागरिकता के अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। इस शासन व्यवस्था में अदालतों को स्वतंत्र रखा जाता है। उनको सरकारी प्रभाव से मुक्त रखने का प्रयत्न किया जाता है।

आज संसार में एकतंत्र शासन की प्रधानता नहीं है। गत महायुद्ध से पूर्व एकतंत्र और प्रजातंत्र शासन संसार में समान स्थान रखते थे। जापान, इटली तथा जर्मनी में एकतंत्र सत्ता थी और इंग्लैण्ड तथा अमेरिका इत्यादि में प्रजातंत्र सत्ता। गत महायुद्ध ने एकतंत्रवाद को बहुत कुछ अंशों में समाप्त-सा ही कर दिया। आज के युग में प्रजातंत्र और कम्यूनिज्म का बोलबाला है। समस्त संसार दो दलों में विभाजित है। संसार की प्रधान शक्तियों ने दो अखाड़े लगाए हुए हैं। आपस में खुल कर मुठभेड़ करने का अवसर अभी तक नहीं आया है। तंत्रवाद में आज दो पृथक्-पृथक् वर्ग हैं, एक पूँजीवादी वर्ग और दूसरा मध्य वर्ग भारत को हम पूँजीवादी देशों में नहीं गिन सकते। भारत की दशा इस समय बहुत विचित्र है। कांग्रेस सरकार के आचरण पूँजीवादियों जैसे हैं। परंतु यह प्रदर्शित नहीं करना चाहती। भारत में कम्यूनिज्म, साम्यवाद और हिंदू-मुसलमानियत की समस्याएँ आज वर्तमान हैं। ऐसी परिस्थिति में भारत प्रजातंत्र शासन की व्यवस्था को चला रहा है। अब देखना यह है कि यदि इस युग में कोई और महायुद्ध हुआ तो उसमें विजय किसकी होगी? महायुद्ध की संभावना कम नहीं है। संसार पर आज भी महायुद्ध के बादल चारों ओर से घिरे हुए हैं। प्रजातंत्र का भविष्य क्या होगा इसके विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, परंतु इसकी प्रगति में एक ऐसी व्यवस्था अवश्य है जिसका एकदम अंत हो जाना संभव नहीं है।

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