संकेत बिंदु – (1) मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्म दिन (2) श्रद्धेय और पूजनीय (3) राम का अलौकिक रूप (4) अनेक भाषाओं में रामचरित (5) उपसंहार।
“मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म दिन है ‘राम नवमी’। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है।’ फलित ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवमी रिक्ता तिथि मानी गई है और चैत्र मास विवाहादि शुभ कार्यों में निषिद्ध मास माना गया है। पर इसी मनभावन, पावन मधुमास की नवमी तिथि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् रामचंद्र ने जन्म धारण किया था। इसी पुण्य तिथि को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने ‘रामचरितमानस’ का प्रणयन आरंभ किया था। इस प्रकार मानो ज्योतिष शास्त्र की स्थापनाओं के विपरीत भी यह भाग्यशालिनी तिथि पवित्र भावनाओं से सुपूजित बन गई है”
– रामप्रताप त्रिपाठी (प्राचीन भारत की झलक, पृष्ठ 106)
श्रीराम विष्णु के सातवें अवतार हैं। वे दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के पुत्र बनकर प्रकट हुए थे। वे मनुष्य रूप में जन्मे थे। अतः उनके भी शत्रु-मित्र थे। दुख, कष्ट, विपत्ति उन्हें भी झेलनी पड़ीं। जीवन में हताश भी हुए, सिर पीटकर क्रंदन भी किया। वे पूर्ण पुरुष थे, लोकोत्तर देवता नहीं। विष्णु की भाँति चार भुजाएँ, ब्रह्मा की भाँति चार मस्तक, शिव की भाँति पाँच मुख तथा इंद्र की भाँति सहस्र नेत्र नहीं थे उनके। उनका निवास क्षीरसागर की अगाध जल – राशि में विराजमान शेष का पर्यंकपीठ, दुग्ध-ध्वज हिमाच्छन्न शिखर पर विराजमान नंदीश्वर की पृष्ठिका अथवा नाभिसमुद्भूत शतदल कमल की कोमल पैंखुड़ियाँ या समुद्र में पैदा होने वाले उच्चैःश्रवा नहीं था। वे तो दो हाथ, दो पैर, दो चक्षु, एक सिर वाले हम जैसे मानव थे।
श्रीराम धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी, दृढ़ संकल्प, सर्वभूत हित-निरत, आत्मवान्, जित, क्रोध, अनसूयक, धृतिमान्, बुद्धिमान्, नीतिमान्, वाग्मी, शुचि, इन्द्रियजयी, समाधिमान्, वेद-वेदांग सर्वशास्त्रार्थ तत्त्वज्ञ, साधु, अदीनात्मा और विलक्षण हैं। वे गम्भीरता में समुद्र के समान, धैर्य में हिमालय के समान, वीरता में विष्णु के समान, क्रोध में कालाग्नि के समान, क्षमा में पृथ्वी के समान और धन में कुबेर के समान हैं। इसलिए श्रद्धा के केंद्र हैं।’
श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप की स्थापना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। वे आदर्श शिष्य, आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श सेनाध्यक्ष और आदर्श राजा हैं। ‘गौतम पत्नी अहल्या, शबरी, निषादराजगुह, गृध्रराज जटायु, वानरराज सुग्रीव, ऋक्षराज जाम्बवान्, कपीश हनुमान् और अंगद अपने निजी जीवन में अपावन होकर भी उनकी इसी अमर धर्मनीति की दुहाई फेरने के लिए ही धार्मिक इतिहास में पन्नों में अमिट रूप से जुड़ गए हैं। अजामिल या गणिका की कल्पना भी उनकी इसी धर्मनीति की पृष्ठभूमि पर आधारित है। जो रावण जैसे निंदित शत्रु के सगे भाई का भी परम हितैषी, बाली जैसे अपकर्मी के सगे पुत्र का भी शुभचिंतक, परशुराम जैसे घोर अपमान करने वाले का भी प्रशंसक तथा कैकेयी जैसी कुमाता का भी पूजक था।’ (श्री रामप्रताप त्रिपाठी) वह परम शक्ति, शील, सौंदर्य और करुणानिधि शासक श्रीराम भारत के लिए पूजनीय हैं।
एक पत्नी व्रत का आजीवन पालन, गुरुओं का आदेश पालन, धर्म रक्षार्थ पत्नी का त्याग, राज्य और संपत्ति के लिए विवाद नहीं, बल्कि भाई के लिए राज्य तक छोड़ने को तैयार, उच्च कुल के चरित्रवान् लोग, पतित स्त्रियों के उद्धार में अपना गौरव समझना, राजपुत्रों का गुहों, भीलों और वनचरों के साथ मैत्री स्थापन, राजन्य होने पर भी अभिमान की ऐंठन से ऊपर उठकर शूद्रादि का आलिंगन, ब्रह्मचर्य का पुनीत तेज, सत्य और धर्म की सेवा स्वीकार करना, प्रजा वर्ग में धर्म और परोपकार के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना, उच्चवंश में उत्पन्न राजकुमार होकर भी जीवन के सुख-ऐश्वर्य को ठोकर मारकर सुख- शांति का सच्चा संदेश देने निकल पड़ना, उस राम की अलौकिक कल्पना को शतशत प्रणाम।
यद्यपि श्रीराम का उल्लेख ऋग्वेद में पाँच बार हुआ है, पर कहीं भी ऐसा संकेत नहीं मिलता, जिससे सूचित होता हो कि श्रीराम दशरथ के पुत्र थे। उनको दशरथ-नंदन रूप में वर्णन किया आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ लिखकर। इस मधुर काव्य पर अनेक काव्य-प्रणेता इतने मुग्ध हुए कि वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर न केवल संस्कृत साहित्य में ही अनेक काव्य निर्मित हुए, अपितु हिंदी तथा भारत की प्रान्तीय एवं विश्व की अनेक भाषाओं में रामकाव्य लिखे गए। संस्कृत वाङ्मय में जो स्थान वाल्मीकि का है, हिंदी में वही स्थान तुलसी के ‘रामचरितमानस’ का है। बीसवीं सदी में मैथिलीशरण गुप्त के ‘साकेत’ का है। महाराष्ट्र में’ भावार्थ रामायण’ का है और दक्षिण में ‘कंब रामायण’ का है।
चीन के ‘ अनामकं जातकं’, ‘दशरथ जातकं’ तथा ‘ज्ञान- प्रस्थानं’ आदि ग्रंथों में राम कथा का सविस्तार वर्णन है। पूर्वी तुर्किस्तान की ‘ खोतानी रामायण’ में, लंका की ‘रामायण पद्म चरित’ में, कम्बोडिया की ‘रे आमकेर’ में, लाओ के ‘राम-जातक’ में, मलाया की ‘हिकायत सेरी राम’ में राम-कथाओं का उल्लेख है। तिब्बत में भी रामचरित की अनेक हस्तलिपियाँ मिलती हैं।
डे. फेरिया ने स्पैनिश भाषा में अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘प्रसिया पौर्तुगेसा’ में और डॉक्टर कोलैंड ने डच भाषा में रामकथा का वर्णन किया है। जे. वी. खनियर ने ‘ट्रावल्स इन इण्डिया’ में तथा एम. सोनेरा ने अपनी ‘वायस ऑफ एन ओरियंटल’ में श्रीराम की लोकप्रिय गाथाओं का निरूपण किया है। फ्रेंच भाषा की ‘रेसालिया डेस एवरर’ तथा ‘मिथिलांजी डेस इण्डू’ में व्यवस्थित रामकथा का उल्लेख है। रूस ने तो ‘रामचरित मानस’ का रूसी अनुवाद ही छाप दिया है। सच्चाई यह है कि इतने प्रिय और जगद्वन्दनीय नायक राम पूज्य हैं। फिर ‘ श्रुत्वा रामकथां रम्यां शिरः कस्य न कम्पते। ‘मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है।
कोई कवि बन जाए, सहज सम्भाव्य है।
रामनवमी उन्हीं की पावन जन्म तिथि है। चैत्र शुक्ल नवमी यदि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त हो और मध्याह्न में भी यही योग हो तो वह परम पुण्यदायी है। अगस्त्य संहिता में कहा भी है-
चैत्र शुक्ला तु नवमी पुनर्वसु युता यदि।
सैव मध्याह्न योगेन, महापुण्यतमा भवेत्॥
उपोष्य नवमीं त्वद्य यामेष्वष्टसु राघव।
तेन प्रीतो भव त्वं भोः संसारात्मा हि मां हरे॥
इस मंत्र से भगवान् के प्रति उपवास की भावना प्रकट करनी चाहिए।
रामनवमी के अवसर पर राम मंदिर सजाए जाते हैं, पत्रों- पुष्पों मालाओं तथा रात्रि में विद्युत्- दीपों से अलंकृत किए जाते हैं। राम-जीवन की झाँकियाँ दर्शायी जाती हैं। ‘मानस’ का पाठ होता है। राम कथा पर प्रवचन होता है। राम जीवन का महत्त्व दर्शाया जाता है। राम के गुण जीवन में अवतरित करने का उपदेश होता है। जीवन में मर्यादा के मूल्यों की स्थापना का आग्रह होता है। ‘सियाराम मय’ रूप ग्रहण करने में जीवन की कृतार्थता पर बल दिया जाता है।