संकेत बिंदु – (1) गाँधी जी का जन्म दिन (2) गाँधी जी से स्वप्न में भेंट (3) भारत में सत्य और अहिंसा की स्थिति (4) विभिन्न धर्मों के लोग (5) गाँधी जी के सच्चे अनुयायी।
दो अक्तूबर का दिन, विश्व वंद्य ‘बापू’ का जन्म-दिन। उसी के उपलक्ष्य में हमारे विद्यालय में छात्र गाँधी मेला देखने गए। दिल्ली नगर निगम कार्यालय के पीछे दंगल मैदान में यह मेला लगा था। वहाँ बापू की प्रतिमा के दर्शन कर धन्य हो गए। मेले में बापू-जीवन की चित्रावली देखी। ऐसी महती शक्ति! सोचा, काश, बापू हमारे युग में होते और हम भी उनके दर्शन कर पाते।
रात्रि 8 बजे गाँधी मेले से घर वापिस पहुँचे। पैर थक गए थे। सिर कुछ बोझिल – सा लग रहा था। खाना खाते ही नींद आ गई। थोड़ी देर बाद देखता हूँ कि गाँधीजी मेरे पास चले आ रहे हैं। उनके दर्शन कर मन बहुत खुश हुआ। मैंने आगे बढ़ कर उनके चरण छुए।
गाँधी जी ने पूछा- ‘बेटे! कौन-सी कक्षा में पढ़ते हो?’
मैंने उत्तर दिया- ‘ बारहवीं कक्षा में।’
गाँधीजी बोले, ‘अच्छा इंटर फाइनल में।’
‘नहीं बापू! इंटर नहीं, बारहवीं कक्षा में।’
‘यह अंतर क्या है?’ बापू ने साश्चर्य पूछा।
‘बापू अब बी. ए. 16 की बजाए 17 वर्ष में होती है। अतः यहाँ सीनियर सेकेण्डरी 11 की बजाए 12 वर्ष में पूर्ण होती है। यह नई शिक्षा पद्धति है।’
‘तो क्या सारा देश 17 वर्ष में बी. ए. करता है।’
‘हाँ, बापू !’
बापू चुप हो गए। दो क्षण बाद पूछने लगे-’ देश में सत्य और अहिंसा का क्या हाल है? भारतवासी और शासक सत्य और अहिंसा का पालन करते हैं या नहीं?”
बापू के इस प्रश्न पर मेरा चेहरा उतर गया। सच कहूँ तो बापू को दुख होगा और झूठ बताऊँ तो बापू के सामने उनके सिद्धांतों की हत्या होगी। दो क्षण चुप रहा तो बापू समझ गए। बोले, ‘बोलता क्यों नहीं?’
मैने कहा – ‘बापू आपके अनुयायी दिन में 108 बार आपका नाम ले-लेकर खूब झूठ बोलते हैं। हर राजनीतिज्ञ का सिद्धांत है-
गाँधी नाम जपना पराया माल अपना।
माल पुए खाओ। जनता को बुद्ध बनाओ॥
‘और बेटा अहिंसा का?’ मैंने देखा बापू का गला सूख रहा है। प्रश्न पूछने में कठिनाई हो रही है।
मैंने कहा – ‘बापू अहिंसा का नाटक भारत में प्रतिदिन होता है। ‘गाँधीजी ने पूछा- ‘नाटक से क्या मतलब है?’
‘इसमें पुलिस लाठियाँ, बेंत, अश्रुगैस के गोले तथा बंदूक की गोलियाँ चलाती है। 100 मरें तो 10 बताती है। 500 घायल हों, तो 50 बताती है। देश में हर रोज अहिंसा का नाटक होता है।’
सुनते-सुनते बापू की आँखों से आँसू बहने लगे। मैं चुप हो गया। बापू ने कहा- ‘बोलो, बेटा ! सच-सच बताओ मेरे देश का हाल।’
कुछ रुककर बापू बोले- ‘एक बात बता – मेरे देश में हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई सब मिल-जुलकर तो रहते होंगे?’
‘बापू! हिंदू-मुसलमान-सिक्ख सभी मिलकर रहना चाहते हैं, पर ये राजनीतिज्ञ रहने दें, तब न। ये तो वोट और सत्ता के लिए सबको आपस में लड़ाते रहते हैं। ऊपर से सब मुसलमानों और सिक्खों के शुभचिंतक बनते हैं।’
यह सुनते ही बापू धड़ाम से भूमि पर गिर पड़े। मैंने बापू को उठाया। उठाकर बैठाया। वे देश की हालत सुन-सुनकर रो रहे थे – बोले, ‘सच्चाई तो यह है कि मुझे गोडसे ने नहीं मारा। गोडसे ने तो मुझे अमर कर दिया। मेरे इन तथाकथित अनुयायियों ने मेरी हत्या कर दी। हिंदू धर्म में शरीर परिवर्तन का नाम मृत्यु है, अन्यथा आत्मा तो अमर है। वस्तुतः मेरे अनुयायियों ने मेरी आत्मा की ही हत्या कर दी है।’
मुझे लगा बापू को कोई शुभ समाचार सुनाऊँ, अन्यथा ये तो स्वर्ग में बिलखते रहेंगे। मैंने कहा-‘बापू, आजकल भारत में आपका कोई सच्चा अनुयायी है तो वे ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ वाले हैं।’
बापू ने आँखें पोंछी और विस्फारित नेत्रों से मेरी और देखते हुए कहा- क्या कह रहा है?’ सच बापू। उन्होंने एक पत्रक बाँटा है। उसमें घोषणा की है कि संघ का उद्देश्य – ‘अपने श्रेष्ठ और प्राचीन राष्ट्र का अपने सनातन सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर तथा वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप सर्वांगीण विकास करना।’
‘सच बेटा?’ यह कहते-कहते गाँधीजी के मुख मंडल पर रौनक आ गई। मैंने कहा – ‘हाँ, बापू।’
इतना ही नहीं बापू, वे तो आपकी तरह ‘स्वदेशी अपनाओ’ का आंदोलन भी समस्त भारत में चला रहे हैं।
बापू ने खुशी से मुझे छाती से लगा लिया। बोले- ‘बेटा यह बात सुनाकर तूने मेरी आत्मा प्रसन्न कर दी। अच्छा, अब मैं चलता हूँ, तू जा कर पढ़ाई कर।’
अचानक मेरा यह स्वप्न भंग हुआ। मेरे कानों में पिताजी की आवाज टकराई। वे कह रहे थे- ‘उठ, पढ़, उठ, पढ़।’
आँख मलता हुआ उठा। मुँह हाथ धो, ठंडा जल पिया। प्रांगण में घूमने लगा, ताकि नींद की खुमारी उतर जाए।
नींद की खुमारी तो उतर गई, पर बापू-भेंट की खुमारी अनेक दिनों तक बनी रही।