संकेत बिंदु-(1) विज्ञान और विश्व शांति का संबंध (2) विश्व-शांति भंग होने के कारण (3) अमेरिका और रूस में होड़ (4) विश्व शांति का आधार स्तंभ विज्ञान (5) उपसंहार।
विज्ञान और विश्व शांति का संबंध विरोधाभासपूर्ण दिखाई दे रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान ‘चोर को कहता है तू चोरी कर, शाह को कहता है तू जागता रह।’ एक ओर विज्ञान के उत्कर्ष से विश्व शांति के लिए प्रयत्न आरंभ किए गए तो दूसरी ओर विश्व को नष्ट करने के लिए भयंकर घातक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण हुआ। आज उन अस्त्रों-शस्त्रों के संभावित प्रयोग से सभी राष्ट्र भयभीत भी हैं। वे डरे हुए इसलिए हैं कि कहीं इन घातक अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग से विज्ञानरूपी भस्मासुर अपने प्रभाव से मानवों का विनाश करता हुआ स्वयं ही नष्ट न हो जाए तथा पृथ्वी का अस्तित्व ही समाप्त न कर दे।
विश्व शांति भंग होने के दो प्रमुख कारण हैं-प्रकृति का क्रूर अट्टहास अर्थात् प्रलयंकारी रूप तथा विश्व के महान् राष्ट्रों का युद्ध भूमि में उतर आना।
प्रकृति का प्रलयंकारी रूप विज्ञान के अधीन है। विज्ञान ने मनुष्य को ऐसा गुरु मंत्र प्रदान किया है, जिससे प्रकृति की गुप्त निधियों के द्वार सहज में खुल जाते हैं। दूसरे, प्रकृति विज्ञान की चेरी है। प्रकृति पर विजय पाकर विज्ञान ने ऐश्वर्य और वैभव विश्व के चरणों में उँडेल दिया है। फिर भी चेरी के नखरे संभावित हैं। जैसे भूकंप, जल-प्रलय और ज्वालामुखी विस्फोट। इनसे क्षेत्र-विशेष की जनसंख्या पीड़ित हो सकती है। ये नखरे इतने भयंकर नहीं हो सकते कि विश्व शांति को ही खतरा उत्पन्न हो जाए।
विश्व के दो महान् राष्ट्र हैं-रूस और अमेरिका। ‘वर्ल्ड किंग’ (विश्व सम्राट्) बनने की इन दोनों राष्ट्रों में होड़ सी लगी थी। इसके लिए वे व्यापारिक प्रलोभन देकर, विकास की सुविधाएँ देकर, अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएँ देकर, ऋण देकर, विश्व के अन्य राष्ट्रों को उपकृत करते थे। विश्व में अपने अनुकूल परिस्थिति उत्पन्न करने के लिए राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों को बदलवा देते थे। सैनिक क्रांति करवा देते थे। प्रजातांत्रिक राष्ट्रों में चुनाव के समय और चुनाव के पश्चात् पानी की भाँति रुपया बहाकर अपने समर्थक उम्मीदवारों को विजय दिलवाने और विपक्षी प्रत्याशियों को खरीदने का प्रयत्न करते थे।
कूटनीति के बल पर अमेरिका ने विश्व शक्ति में अपने प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र रूस को खंडित करवा कर उसकी विश्व शक्ति पहचान को ही क्षीण कर दिया। विज्ञान-शक्ति के सुदृढ़ स्कंधों पर वह ‘वर्ल्ड किंग’ (विश्वसम्राट्) बन गया है। अपनी विज्ञान-शक्ति के बल पर पाश्चात्य राष्ट्रों को इकट्ठा कर इराक से युद्ध कर उसे नाक रगड़वाता है तो युगोस्लाविया की संपत्ति जब्त करवाता है और विश्व से उसका संबंध विच्छेद करवाता है। विश्व के अनेक राष्ट्रों को धमकी देता है, मानो उनका जीवन-मरण अपने हाथ में रखना चाहता है।
विश्व शांति के शत्रु ये महान् राष्ट्र जहाँ एक-दूसरे पर वाग्वाण चलाते रहते हैं, वहाँ प्रत्यक्ष मैदान में उतरकर हाथ दिखाने से डरते हैं। आज बड़े राष्ट्रों ने प्रक्षेपणास्त्रों, अणु बमों तथा न्यूक्लीयरों का कल्पनातीत संग्रह कर रखा है। विज्ञान के इस संहारक शस्त्र-प्रयोग में जिसने भी पहल की, वह दूसरे राष्ट्र को कुछ ही मिनटों में श्मशान बनाकर रख देगा, किंतु करता कोई नहीं। मित्र राष्ट्रों की सेना द्वारा ईराक पर संहारक शस्त्रों का प्रयोग न करना, इसका ज्वलंत प्रमाण है। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा हाईड्रोजन बमों की मार से ध्वस्त हिरोशिमा और नागासाकी के श्मशान की बुझी राख आज भी युद्ध का नाम सुनकर भय खाती है, अतः यह सत्य हैं कि विश्व तृतीय विश्व युद्ध के कगार पर पहुँच कर भी विज्ञान के कारण वापिस मुड़ जाता है। अतः विश्व शांति का आधार स्तंभ विज्ञान है।
सच्चाई यह है कि आज विज्ञान की कृपा से विश्व में शांति है, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना विद्यमान है। विश्व के राष्ट्र एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं, एक-दूसरे से लाभान्वित होते हैं। जिन राष्ट्रों के पास कच्चा माल है, वे कच्चा माल देकर संतुलन बनाए हुए हैं, मानव को अभाव की पीड़ा से बचाए हुए हैं।
विज्ञान ने विश्व मानव को सुख और संपन्नता प्रदान करने के लिए मनुष्य की दिनचर्या में घर कर लिया है। उसको सुख देने का प्रत्येक साधन विज्ञान ने उपलब्ध करा रखा है। विज्ञान की सहायता से मनुष्य शांतिपूर्वक इहलोक के सुखों को भोग सकता है।
विज्ञान के कारण विश्व की शांति के लिए संकट का अनुभव करते हुए विश्व की तृतीय शक्ति ‘तटस्थ राष्ट्रों’ ने नारा लगाया है-‘विज्ञान को शांति कार्यों की ओर उन्मुख किया जाए। विनाशक शस्त्रों की होड़-समाप्ति के लिए संहारक शस्त्रों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया जाए।’ मद में मतवाले राष्ट्र इस आवाज के महत्त्व का मूल्यांकन करते हुए कुछ संहारक शस्त्रों के भंडार को समाप्त करने की बात कर रहे हैं, किंतु स्वार्थवश कर नहीं रहे।
दूसरी ओर अमेरिका, रूस तथा ग्रेट ब्रिटेन ने परमाणु प्रसार निषेध संधि (CTBT) की शुरूआत की। इन तीनों की चौधराहट से विश्व के अनेक राष्ट्र इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। परमाणु प्रसार निषेध संधि विश्व शांति की दिशा में एक सुदृढ़ प्रयास ही तो है, पर जब तक ये राष्ट्र ही अपना परमाणु आयुध भंडार नष्ट नहीं करेंगे, क्या वास्तव में शांति संभव होगी?
नेपोलियन के शब्दों में, ‘युद्ध असभ्य लोगों का व्यापार है।’ वह व्यापार छोटे-मोटे राष्ट्र करते रहें, तो विश्व शांति को खतरा नहीं होता। इजराइल-अरब-फिलिस्तीनी युद्ध तथा भारत-पाक युद्ध इसके ज्वलंत प्रमाण हैं। इन युद्धों रूपी सुनार की खट्-खट् से विश्व-शांति की निद्रा तो उचटी, किंतु निद्रा भंग नहीं हुई। विश्व शांति भंग तभी होगी, जब विश्व के महान् राष्ट्र युद्ध भूमि में उतर आएँगे अथवा विश्व पर्यावरण प्रदूषित हो जाएगा।