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शक्तियों का ध्रुवीकरण और भारत

shaktiyon ka dhruvikaran par hindi nibandh

मानव-सृष्टि परिवर्तित होती रहती है, इससे संबंधित सभी वस्तुएँ, धारणाएँ भी बदलती हैं। नब्बे के दशक तक विश्व मुख्यतः दो भागों में विभक्त था। एक भाग के राष्ट्र अमेरिका को महाशक्ति मानते थे तथा उसकी विचारधारा और कार्यों का समर्थन करते थे। दूसरा भाग सोवियत संघ को महाशक्ति के रूप में स्वीकार करता था तथा उसका अनुसरण एवं समर्थन करता था। इन दोनों से भिन्न विचारधारा वाले कुछ अन्य देश भी थे जो इन दोनों महाशक्तियों के पीछे न चलकर इनसे तटस्थ रहते थे तथा अपना विकास करना चाहते थे। इन देशों की विकास-प्रक्रिया को गुट निरपेक्ष आंदोलन का नाम दिया गया। भारत इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करता रहा है तथा दोनों महाशक्तियों से अच्छे संबंध स्थापित करता रहा है।

नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में सोवियत संघ का विघटन हो गया। आज विश्वभर में शक्ति के संतुलन का नया युग दिखाई दे रहा है। दो भागों में विभक्त विश्व एकाएक एक ध्रुवीय होने लगा और महाशक्ति का केंद्र अमेरिका हो गया। सोवियत संघ का मित्र राष्ट्र और गुट निरपेक्ष आंदोलन का अग्रणी माना जाने वाला भारत इससे अछूता नहीं रहा। दूसरी ओर मुस्लिम राष्ट्र अधिक शक्तिशाली होने लगे क्योंकि उनके पास सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आधुनिक उपकरण तेल का भंडार था। शक्तियों के ध्रुवीकरण की इस नई व्यवस्था से भारत में राजनीतिक तथा वैदेशिक नीति के स्तर पर कई परिवर्तन हुए। उदारीकरण की नीति अपनाई गई तथा आर्थिक व व्यावसायिक स्तर पर विश्व में अपने को स्थापित करने का प्रयास किया गया। आज इसी स्थिति में भारत आगे बढ़ रहा है।

शक्तियों के ध्रुवीकरण में संतुलन बनाने के लिए भारत निरंतर प्रयत्नशील है। वैश्विक स्तर पर एक ओर भारत पूर्व सोवियत संघ के प्रमुख देश रूस से मित्र भाव बनाए हुए है, दूसरी ओर अमेरिका से भी संबंध सुधारने में लगा है। मुस्लिम देशों से वह व्यापार संबंध बनाए हुए है, साथ ही पड़ोसी राष्ट्रों को मिलाकर चलने का प्रयास करता है। उदारीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करते हुए आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनने के लिए संलग्न है। इस प्रयत्न में देश में लाइसेंस कोटा राज की समाप्ति की प्रक्रिया शुरू की गई। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में आने का मार्ग खुला तथा उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भागीदारी हासिल की। विदेश नीति के स्तर पर किए गए प्रयत्न और भी लाभकारी सिद्ध हुए। विश्व पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया गया। विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अग्रणी बनता जा रहा है।

इस प्रकार की परिवर्तित स्थिति का प्रभाव हमारे अपने शक्ति- कार्यक्रमों पर भी हुआ। भारत को परमाणु शक्ति का राष्ट्र स्वीकार कर लिया गया। यह दूसरी बात है कि भारत ने परमाणु शक्ति का उपयोग अधिकांशतः विकास-कार्यों में करने की घोषणा की। इस प्रकार विश्व व्यापार संगठन के प्रारंभ से ही एक सक्रिय सदस्य के रूप में भारत ने अपनी भूमिका निभाई। शक्तियों के परिवर्तित ध्रुवीकरण का एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव भारत और चीन के आपसी संबंधों पर भी हुआ। ये दोनों ही देश मानव शक्ति के रूप में विश्व में सबसे आगे हैं।

आज विश्व की राजनीति में शक्ति का ध्रुवीकरण बदल रहा है। इस बदलती परिस्थिति में तटस्थ रह पाना कठिन है। इस शक्ति संचय में स्वार्थपरता तथा सिद्धांतहीनता यदि दिखाई दी तो उसके परिणाम बहुत हानिकारक होंगे। विश्व युद्ध के बादलों से अभी छुटकारा नहीं मिला है। यदि युद्ध होता है, तो विश्व में इतने भयंकर अस्त्र और शस्त्र हैं कि सृष्टि का विनाश अवश्यंभावी है। इसी कारण आज सभी राष्ट्र युद्ध के पक्ष में नहीं हैं। आक्रमण की घटनाएँ शक्ति प्रदर्शन के उद्देश्य से होती हैं। यदि भारत इसी गति से विकास करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब महाशक्तियों की श्रेणी में वह भी गिना जाएगा।

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