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शिष्टाचार

shishtachar ettiquette par hindi nibandh

संकेत बिंदु – (1) उचित व्यवहार और आचरण (2) वाणी और व्यवहार में विनम्रता (3) जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में शिष्टाचार (4) अनुशासन-शिष्टाचार की परख (5) शिष्टाचार नियमों का पालन।

शिष्टतापूर्ण आचरण और व्यवहार शिष्टाचार है। शिष्ट व्यक्तियों का आचार, व्यवहार तथा सदाचार शिष्टाचार है। बुद्धिमान व्यक्तियों का आचरण शिष्टाचार है। ऐसा आचरण जो साधारणतया एक सामाजिक प्राणी से अपेक्षित हो, शिष्टाचार है। ऊपरी और दिखावटी व्यवहार शिष्टाचार हैं। आवभगत तथा आदर-सत्कार शिष्टाचार हैं।

शिष्टाचार मनुष्य में मानवीय गुणों का विकास करता है। मानसिक तनाव से मुक्ति और दैनिक जीवन के कार्य संपादन में कष्ट कठिनाइयों को कम करता है। जीवन में सुख, शांति और सौंदर्य बिखेरता है। शिष्टाचारी सर्वत्र आदर, सत्कार और सम्मान का पात्र बनता है। समाज उसे भद्र और कुलीन मानता है।

विनम्रता शिष्टाचार का अनिवार्य गुण है। वाणी और व्यवहार की विनम्रता शिष्ट आचरण की पहली पहचान है। हित, मित, मृदु और विचारपूर्वक बोलना वाणी का विनय हैं। अथर्ववेद का ऋषि कामना करता है, ‘जिह्वा अग्रे मधु मे जिह्वा मूले मधूदकम्।’ 34 अर्थात् मेरी जीभ के अग्र तथा मध्य भाग में मधुरता रहे। वेदव्यास जी महाभारत के उद्योग-पर्व में वाणी की चार विशेषताएँ बताते हुए लिखते हैं-

अव्याहतं व्याहृताच्छ्रेय आहुः, सत्यं वदेद् व्याहृतं तद् द्वितीयम्।

प्रियं वदेद् व्याहृतं तत् तृतीयं, धर्मं वदेद् व्याहृतं तच्चतुर्थम्॥

(1) व्यर्थ बोलने की अपेक्षा मौन रहना। (2) सत्य बोलना (3) प्रिय बोलना (4) धर्म बोलना वाणी की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता है।

असत्य, चुगली, कठोर वचन, पर निंदा तथा बकवास से बचना चाहिए। कटु वचन मनुष्यता का शत्रु है। कटु वचन का बाण हृदय से कभी निकलता नहीं और उसका घाव कभी भरता नहीं। झूठ के पाँव नहीं होते, इसलिए उस पर कोई विश्वास नहीं करता। तुलसी तो कहते हैं, ‘नहीं असत्य सम पातक पुंजा।’ निंदा और बकवास, दोनों उपहास के पात्र हैं। इसलिए कबीर कहते हैं-

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।

अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होय॥

व्यवहार और आचरण सिद्धांत के मूल तत्त्व है। इन्हीं के कारण लोग मित्र और शत्रु होते रहते हैं। उदार रहना, कृपा करना, समानता का निर्वाह व्यवहार की कसौटी हैं।

वाणी और व्यवहार के दो-चार उदाहरण पर्याप्त होंगे। संबोधन में ‘हाँ’ या ‘नहीं’ के स्थान पर ‘हाँ जी’, ‘नहीं जी’ शिष्ट आचरण है। जब दो व्यक्ति परस्पर बात कर रहे हैं तो बीच में टोकना या बोलना नहीं चाहिए। क्रोधपूर्ण बात में भी कटु और कर्कश शब्दों से बचना चाहिए।

बस स्टॉप हो या टिकट-घर की खिड़की, लाइन को तोड़ना अशिष्टता है। इसी प्रकार बस में प्रवेश की सीढ़ियों पर खड़ा होना अशिष्टता है। आरक्षित महिला सीटों पर कब्जा जमाना अशिष्टता है। सीट पर पैर रखकर बैठना अशिष्टता है।

भोजन करते समय मुँह से चप-चप की आवाज करना अशिष्टता है। पंक्ति में भोजन कर रहे हों तो पंक्ति से पहले उठना अशिष्टता है। मना करने पर भी थाली में रोटी, रायता, सब्जी डालना अशिष्टता है।

नाम के उच्चारण या लिखने में नाम से पूर्व श्री श्रीमती, श्रीमान श्रीयुत लगाना तथा अंत में ‘जी’ प्रयोग शिष्ट आचरण है। कृतज्ञ होने पर ‘धन्यवाद’ करना, आभार व्यक्त करना शिष्टता है।

व्यक्ति अपना जीवन अपनी सुविधा तथा शैली के अनुसार जीता है। उसमें आर्थिक स्थिति, सामाजिक परंपराएँ और पीढ़ी-दर-पीढ़ी रूढ़िगत संस्कारों का प्रभाव भी रहता हैं। उसके जीवन में दखल देना और दैनंदिन जीवन में हस्तक्षेप करना अशिष्टता है। उदाहरण रूप में – बहिन जी, आप साग-सब्जी में बहुत मिर्चे डालती हैं। आपके पति- देव काम से लौटते ही टी.वी. का स्विच क्यों ऑन करते हैं? आपके बच्चे जमीन पर क्यों सोते हैं? आप सपरिवार हर रविवार कहीं बाहर घूमने क्यों जाते हैं? आपकी बड़ी लड़की बन ठन कर क्यों निकलती है? ये सब बातें अशिष्टता के चिन्ह हैं। ऐसी हस्तक्षेप भरी बातें प्रायः कलह का कारण बन जाती हैं।

अनुशासन जीवन का प्राण है, परिष्कार की अग्नि है जिससे प्रतिभा योग्यता बन जाती है। शिष्टाचार की परख है. जिससे सभ्यता का जन्म होता है। जीवन के हर क्षण, हर परिवेश, हर परिस्थिति में अनुशासन शिष्ट आचरण की पहचान बनता है। सड़क के बाईं और वाहन चलाना अनुशासन है। सड़क पर नहीं, पटरी पर चलना शिष्टता की पहचान है। दूसरों की जीवन में हस्तक्षेप न करना तथा सामाजिक, संस्थागत नियमों का पालन करना शिष्टाचरण का परिचायक है। मंदिर, मठ, गुरुद्वारे में जूता उतारकर जाना धर्म-स्थलों का अनुशासनात्मक शिष्टाचार है। राष्ट्र ध्वज के चढ़ते-उतरते तथा राष्ट्र-गान के गायन के समय स्तब्ध खड़े रहना अनुशासित शिष्ट आचरण है। सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, पान की पीक, फलों के छिलके या रद्दी कागज फेंकना अशिष्टता है।

नियमों के विरुद्ध कार ड्राइव करना, नशे की मौज-मस्ती में वाहन को तेज चलाना, दूसरों की जान-माल और इज्जत पर खेलना, देवी-देवताओं का मखौल उड़ाना, अनाप- शनाप बकना, लड़ने-मरने को तैयार रहना वर्तमान युग के शिष्ट (?) आचरण हैं। ‘Eat Drink & Be marry’ अर्थात् खाओ, पीओ और मौज करो जीवन का सिद्धांत है। इस सिद्धांत वाक्य के अनुसार व्यवहार शिष्टाचरण है। इस ध्येय प्राप्ति के लिए हर कार्य और कर्म शिष्टाचारिक नियमों का पालन है। वस्तुत: यह शिष्टाचार नहीं, अशिष्टता है।

वाणी और व्यवहार की विनम्रता शिष्टाचार को पुष्पित करते हैं। सामाजिक, धार्मिक तथा वैधानिक नियमों का पालन शिष्टाचार को पल्लवित करते हैं। अनुशासन शिष्टाचार को अलंकृत करता है तो आत्म-संयम शिष्टाचार को सुगंधमय वातावरण प्रदान करता है। ये सब मिल कर शिष्टाचारपूर्ण जीवन की झोली में सुख, शांति और ऐश्वर्य की वर्षा करते हैं।

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