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भारत की सामाजिक समस्याएँ

Social Problems of India hindi nibandh

मनुष्य के जन्म के साथ विभिन्न समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। प्रारंभ में समस्याएँ व्यक्तिगत होती हैं बाद में वे सामाजिक समस्या के रूप में विकसित हो जाती हैं। मानव कभी भी अपने आप में पूर्ण नहीं होता। किसी न किसी प्रकार का अभाव प्रत्येक के जीवन में होता ही है। कुछ ऐसी इच्छाएँ होती हैं जो पूर्ण न होने पर समस्या बन जाती हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसका जीवन अधूरा है। समाज होगा तो सामाजिक समस्याएँ भी आवश्यम्भावी हैं। प्रतिबिंब के समान मानव मात्र के साथ सदैव जुड़ी रहती है।

भारत की वर्तमान स्थिति भी अनोखी है। प्रत्येक क्षेत्र में विविधता दिखाई देती है, फिर भी राष्ट्रप्रेम सबको एक सूत्र में बाँधे रखता है। आवश्यकता पड़ने पर सब भेदभाव भुलाकर एक जुट होकर समस्या दूर करने का प्रयास करते हैं। विविधता के कारण भारतीय समाज के सामने अनेक समस्याएँ हैं। पूरा समाज विभिन्न जातियों, वर्गों, धर्मों में विभक्त है। इनमें रहन-सहन, खान-पान का अंतर ही नहीं है, सबकी मानसिकता भिन्न है, सबके विचार भिन्न हैं। यही विभिन्न होना पूरे समाज को अलग-अलग बाँटे हुए है। अवसर पाते ही सब एक दूसरे पर आक्षेप करते हैं और लड़ाई-झगड़ा करने लगते हैं। कभी-कभी तो झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि अनेक व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। कश्मीर इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसे भारत का भाग होते हुए भी पृथक सुरक्षा दी गई है।

वर्तमान समय में भारत की अनेक सामाजिक समस्याएँ है। सबसे बड़ी समस्या निर्धनता है। राष्ट्र का धन कुछ गिने चुने परिवारों में सिमटा हुआ है। अधिकांश जनता आज भी गरीबी की रेखा के नीचे है। इसी से जुड़ी समस्या जनसंख्या वृद्धि की है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जनसंख्या वृद्धि के कारण निर्धनता है। सौ करोड़ से ऊपर जनसंख्या वाला भारत सबके लिए आवश्यक वस्तुएँ भी उपलब्ध नहीं करा पाता। इसका कारण अशिक्षा है। देश में संसाधन तो हैं किंतु उनके सही और पूर्ण उपयोग की शिक्षा जनता को प्राप्त नहीं हुई है। इन सबका परिणाम यह है कि देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ गई है। विशेषकर युवा वर्ग में निराशा छा रही है और कभी-कभी उनमें अपराधी वृत्ति जाग उठती है। इसके फलस्वरूप देश में आतंकवाद तथा बच्चे और महिलाओं में साथ दुर्व्यवहार पनप रहा है। अंततः सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है। भ्रष्टाचार, ऊँच-नीच का भेद, चरित्रहीनता, अनुशासनहीनता जैसी बुराइयाँ चारों ओर दिखाई दे रही हैं। परमात्मा की सबसे उत्कृष्ट रचना मानव अपने लक्ष्य से भटक गया है।

विभिन्न सामाजिक समस्याएँ हमारी अपनी हैं, अतः हमें ही इन्हें दूर करने के उपाय खोजने होंगे। आज नशीले पदार्थों का सेवन, दहेज प्रथा, बाल मजदूरी आदि ऐसे सामाजिक कलंक हैं जिन्होंने राष्ट्र के सम्मान को चोट पहुँचाई है। जनसंख्या वृद्धि रोकने तथा उससे उत्पन्न विभिन्न समस्याओं को दूर करना आज की आवश्यकता है। शिक्षा तथा सामाजिक चेतना उत्पन्न करके राष्ट्र को उन्नति के मार्ग जाया जा सकता पर है। स्वार्थ से ऊपर उठकर व्यक्ति को दूसरों की भलाई करने में आनंदित होना होगा। यह स्वार्थ ही है जो दूसरों को कष्ट देने में प्रेरित करता है। विघटित होते परिवार, समाज और राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधना होगा। गिरते हुए मूल्यों को फिर से स्थापित करना होगा।

राष्ट्र की सामाजिक समस्याएँ जब आर्थिक कठिनाइयों से मिल जाती हैं तो और भी भयंकर स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समाज सुधरेगा तो अर्थव्यवस्था अपने आप ठीक हो जाएगी। नियम बनाकर व्यवस्था, अवसर, साधन सरकार देगी, उन सबका सही उपयोग करना हमारा दायित्व है। राष्ट्र में फैली सामाजिक समस्याओं को समाप्त करना ही होगा, तभी राष्ट्र उन्नति करेगा तथा विश्व में उसका उचित सम्मान होगा।

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