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एक विद्यार्थी की डायरी – एल लघु निबंध

students diary par ek nibandh

संकेत बिंदु – (1) दैनिक कार्यों का विवरण (2) डायरी के विभिन्न विषय (3) डायरी लेखन में निष्पक्षता (4) विद्यार्थी के चरित्र का आईना (5) कार्यक्षमता और कार्यकौशल का परिचायक।

महत्त्वपूर्ण दैनिक कार्यों के विवरण से युक्त पुस्तिका डायरी कहलाती है। स्वानुभूति के अंतरंग भावों का दैनिक लेखा-जोखा डायरी है। प्रतिदिन देखी हुई दुनिया और भोगे हुए अनुभवों की अभिव्यक्ति का माध्यम डायरी है।

रोजनामचा, दैनिकी, दैनन्दिनी डायरी के पर्यायवाची हैं। डायरी में लेखक के मन पर पड़े प्रभाव उसी दिन लिखित रूप प्राप्त कर लेते हैं, अतः डायरी उसके लेखक के व्यक्तित्व प्रकाशन का सर्वाधिक प्रामाणिक माध्यम है। स्पष्ट कथन, आत्मीयता तथा निकटता डायरी की विशेषताएँ हैं।

विद्यार्थी का कार्यक्षेत्र सीमित है, किंतु अनुभव-संसार विशाल और विस्तृत है। आज भारत में अप्रत्याशित घटनाओं का बाहुल्य है। अतः विद्यार्थी की डायरी सीमित क्षेत्र में भी अनुभूति की दृष्टि से व्यापकता लिए हो सकती है।

विद्यालय में कोई अनपेक्षित प्रसंग आ गया। विद्यालय जाते मार्ग में कोई दुर्घटना देख ली, बस में चढ़ते हुए जेब कट गई, राशन की दुकान पर कोई अनहोनी बात हो गई, घर का सौदा खरीदते हुए किसी वस्तु की प्रामाणिकता पर संदेह हो गया, खेल के मैदान में किसी खिलाड़ी से तू-तू मैं-मैं हो गई, विवाह या किसी उत्सव में भाग लेते हुए सुरा सेवन और भंगड़ा का अभिशाप देख लिया, घर के वातावरण में किसी दिन कड़वाहट आ गई, सगे-संबंधी का आगमन हो गया, अध्यापक से दंड या प्रशंसा मिली, ये सभी विद्यार्थी की डायरी के विषय हो सकते हैं।

श्रेष्ठ डायरी लेखक से निष्पक्षता की आशा की जाती है, किंतु एक विद्यार्थी से तो निष्पक्षता की आशा बिल्कुल नहीं हो सकती। घटना विशेष का उसके मन पर जिस रूप में प्रभाव पड़ा है, वह अपनी डायरी में उसी रूप में अभिव्यक्त करेगा। उदाहरण के लिए विद्यार्थी विद्यालय से प्राप्त ‘गृह-कार्य’ करके नहीं ले गया। अध्यापक मे पूछा तो कह दिया, ‘कापी घर पर भूल आया।’ अध्यापक विद्यार्थी की नस नस को पहचानता है। इसलिए बोला- ‘अच्छा, तुम, कापी घर भूल आए हो?

‘हाँ, सर। – लड़के ने उत्तर दिया।’

आज शाम को जब तुम्हारे पिताजी दफ्तर से आएँ, तो कहना माताजी नमस्ते। वे चौकेंगे! पूछेंगे – क्या कहा? तुम कह देना’ भूल से कह गया।’ अध्यापक ने बड़ी संजीदगी से कहा।

लड़का पानी-पानी हो गया और संपूर्ण कक्षा ठहाका मारकर हँस पड़ी।

विद्यार्थी चाहे तो इस घटना को अपने झूठ बोलने का दंड भी लिख सकता है, किंतु वह वैसा न कर अध्यापक पर क्रोध ही प्रकट करेगा।

इसी प्रसंग में एक और उदाहरण प्रस्तुत है। अध्यापिका ने अपनी अलमारी से डायरी लाने के लिए किसी छात्रा को भेजा। छात्रा ने अलमारी से डायरी ली, पर डायरी देखते ही उसे जैसे साँप सूँघ गया। डायरी पर लिखा था, ‘श्रीमति राजकुमारी कांत’ उसने अध्यापिका को कुछ नहीं कहा और रात को अपनी डायरी में लिख लिया, “मैडम को ‘श्रीमती’ लिखना तो आता नहीं बनी हैं अध्यापिका।”

अधिकांश विद्यार्थी अपनी डायरी का उपयोग महत्त्वपूर्ण प्रसंगों के वर्णन में न करके स्कूल में बताए गए ‘होम टास्क’ के विवरण में करते हैं। प्रत्येक कालांश में बताए गए गृहकार्य को नोट करते जाते हैं। दूसरे, साप्ताहिक टाइमटेबल, परीक्षा की सूचनाएँ, परीक्षा- तिथि उसकी डायरी के विषय होते हैं। इनके अतिरिक्त कभी किसी पुस्तक को खरीदने का आदेश हुआ तो वे उस पुस्तक का नाम, लेखक का नाम, मूल्य आदि अपनी डायरी में नोट कर लेंगे।

विद्यार्थी की डायरी स्वयं उसके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण, अनिवार्य तथा उपयोगी दस्तावेज है। अतः लिखने में उसे सचेत रहना चाहिए। मन में आलस्य और प्रमाद नहीं करना चाहिए। अनजाने में या विवशतावश कोई बात वह डायरी में लिख नहीं पाया, तो दूसरे दिन उसे लिख लेनी चाहिए।

विद्यार्थी की डायरी विद्यार्थी के चरित्र का दर्पण है। साफ-सुथरी डायरी रखने वाला विद्यार्थी जीवन में स्वच्छता का पक्षधर होगा। मैले वस्त्र, बिना प्रेस किए कपड़े, गन्दा भोजन या गन्दे स्थान पर कोई चीज खाना वह पसंद नहीं करेगा। डायरी में अत्यधिक काँट-छाँट करने वाला विद्यार्थी मति-भ्रम का शिकार होगा। अशुद्ध लिखने वाला छात्र पढ़ाई-लिखाई में कमजोर होगा।

विद्यार्थी की डायरी विद्यार्थी की कार्यक्षमता तथा कार्यकौशल का परिचायक है। विद्यार्थी को दैनन्दिन कितना काम मिलता है, कितना वह कर पाता है, किस कौशल से अपने काम को पूर्ण करता है, यह उसकी डायरी बताएगी।

डायरी विद्यार्थी को गीता का संदेश देती है। वह विद्यार्थी को आलस्य, निद्रा, प्रमाद, संकोच को त्यागकर स्कूल में बताए गए काम की पूर्ति के लिए प्रेरित करती है। उसे चैन से बैठने नहीं देती, रात को आराम नहीं करने देती। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ से मन को प्रेरित करती रहती है।

विद्यार्थी की डायरी उसके नेत्र हैं। नेत्र ज्ञान के द्वार हैं। उसकी डायरी कामधेनु गाय

है, जो उसे शैक्षणिक प्रगति का वरदान देती है। उसकी डायरी उसका कोष है, जो कोष का प्रयोग करते हैं, सफलता उनके चरण चूमती है। जो कोष को गाड़कर रख देते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। डायरी का प्रयोग अमृत पान के समान है और बिना प्रयोग के यह विष बन जाती है। यही कारण है कि जो विद्यार्थी डायरी की ओर ध्यान नहीं देते और अपने समय को व्यर्थ नष्ट करते हैं, वे असफलता का मुँह देखते हैं।

इस प्रकार विद्यार्थी की डायरी उसका अमूल्य धन है। विद्यालय क्षेत्र से बाहर, वह उसकी मित्र है, गुरु है और है पथ-प्रदर्शक।

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