संकेत बिंदु – (1) अनुभूति निर्माण के तत्त्व (2) विद्यालय और परिवार के अनुभव (3) अनुशासन और तर्क संगत ढंग से विचार व्यक्त करना (4) उद्दंडता का अनुभव (5) राजनीति का अनुभव।
सोचने-विचारने की प्रक्रिया विद्यार्थी के मन में सदा रहती है। कारण, विद्यार्थी जो कुछ भी अपने आस-पास देखता है, उससे मन में जो बोध होता है, उसकी परछाईं (प्रतिमूर्ति) को मन में घुमाता रहता है। बोध, ध्यान और विचार मिलकर विद्यार्थी की अनुभूति का निर्माण करते हैं।
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए शरत्चन्द्र की मान्यता है, ‘जीवन में उम्र के साथ- साथ जो वस्तु मिलती है, उसका नाम है अनुभव।’ डिजरायली भी मानते है ‘Experience is the child of thought & thought is the child of Action.’ अनुभव विचार की संतान है और विचार कर्म की।
बिना ठोकर खाए आदमी की आँख नहीं खुलती। कष्ट सहने पर ही अनुभव होता है। दूसरों के अनुभव जान लेना भी एक अनुभव है। अनुभव एक कला है, जिसकी प्राप्ति के लिए पर्याप्त मूल्य चुकाना पड़ता है, परंतु उससे जो शिक्षा मिलती है, जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह किसी अन्य साधन द्वारा संभव नहीं।
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल है। भविष्य निर्माण की तैयारी का समय है। जीवन में शिक्षण का समय है। अनुभव प्राप्त करने का सुअवसर है। अनुभवों के सोपान पर चढ़कर ही विद्यार्थी जीवन के कंटकाकीर्ण मार्ग को सफलता के पुष्पों से सुगंधित कर सकता है।
विद्यार्थी का संसार परिवार और विद्यालय तक ही सीमित रहता है। वह इस सीमित क्षेत्र में रहकर असीम ज्ञान प्राप्त करता है। कूप मंडूक होते हुए भी वह समुद्र-सा ज्ञान रखता है। अनुभव-हीन होते हुए भी जीवन को विषम स्थिति में डालकर अनुभव प्राप्त करता है।
विद्यार्थी परिवार में रहता है। माता-पिता, भाई-बहन तथा आने वाले सगे-संबंधियों के व्यवहार से वह शिष्टाचार सीखता है। परिवार की समस्याओं को सुलझाने के प्रयास में रहते कुटुंब के वृद्धजनों के चिंतन को देखता है, उन्हें समझने का प्रयास करता है। सब्जी-फल से लेकर वह राशन तक खरीद कर लाता है। औषधि लाने से लेकर अत्यधिक बीमारी से जूझने और उपचार के उपाय सीखता है। राशन और मिट्टी के तेल की पंक्ति में खड़े होने का अनुभव प्राप्त करता है। इस प्रकार जीवन के दैनिक व्यवहार उसे विविध अनुभूति प्रदान करते हैं।
अनुशासन का अनुभव विद्यार्थीकाल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। अनुशासन भंग करने के कारण प्राप्त दंड की अनुभूति अनेक बार जीवन-दिशा में परिवर्तन कर देती है। यह कटु अनुभव जीवन भर मस्तिष्क पर हावी रहता है।
खेल – कूद में जहाँ उत्साह, साहस, धैर्य, स्फूर्ति, अनुशासन, टीम स्प्रिट, खेल- भावना आदि का उदय होता है, वहाँ जीवन-संघर्ष में हँसते-हँसते जूझने की शक्ति की अनुभूति होती है।
विद्यालय की साप्ताहिक सभाओं से किसी विषय पर तर्क-संगत, शृंखलाबद्ध और श्रेष्ठ विचार प्रकट करने का अनुभव होता है, तो रेडक्रास सोसायटी के कैंपो से पीड़ितों की सेवा करने का तथा स्काउटिंग कैंपो से कर्तव्य के प्रति जागरूक रहने की अनुभूति होती है। भारत भ्रमण में जीवन के कष्टों की झाँकी देखता और अनुभव करता है। समय पर भोजन न मिलने की अकुलाहट, विश्राम न मिलने की व्यथा, शरीर को स्वच्छ न रख पाने की पीड़ा, स्थान-स्थान पर भटकने का कष्ट, भावी जीवन में होने वाले दुख-दर्द, कष्ट – पीड़ा को सहने का पूर्वाभ्यास तो पर्यटन में हो ही जाता है।
छात्राओं का अनुभव-संसार छात्रों की अपेक्षा अधिक विस्तृत और जीवनोपयोगी होता है। वे घर-गृहस्थी के अनुभव विद्यार्थी जीवन में प्राप्त कर लेती हैं। साधारण भोजन बनाने से लेकर विविध व्यंजन बनाने तक; सीने-पिरोने से लेकर कलात्मक चित्रकारी करने तक; नृत्य-संगीत, विविध वेश-भूषा और शरीर की सजावट को वे गृहस्थ जीवन में प्रवेश से पूर्व ही सीख लेती हैं। दैनन्दिन कार्यों से उनकी अनुभूति परिपक्व होती है।
उच्छृंखलता और उद्दंडता की अनुभूति भी विद्यार्थी के अनुभव-लोक की सीमा में आती है। कुसंगति के कारण धूम्रपान करना, गुरुजनों का निरादर, माता-पिता की अवज्ञा, निरर्थक सैर-सपाटे, गुण्डों की-सी हरकतें, सहपाठियों से मार-पीट, गृह-कार्य की अवहेलना, सामाजिक कुरीतियों की अनुभूति प्रदान करती हैं। इसी अनुभूति के बल पर जीवन – क्षेत्र में जब वह प्रवेश करता है, तो ‘दादा’ बनता है या फिर ‘समाजद्रोही।’
मित्रों की चीज चुराने, चुराई चीज छिपाने, पकड़े जाने पर बहाने ढूँढ़ने, दूसरों पर दोषारोपण करने की कुप्रवृत्ति भी छात्र-जीवन में ही पड़ती है। उसी अनुभूति के कारण वह जीवन में झूठ बोलता है, अन्यों पर दोषारोपण करता है।
राजनीति की नेतागिरी की अनुभूति भी छात्र- जगत की सीमा में आती है। राजनीति का प्रथम लक्षण है पार्टी बाजी। छात्र दल निर्माण करता है। स्कूल या कॉलेज के विभिन्न पदों का चुनाव लड़ता है। पैसा बर्बाद करता है, धुआँधार भाषण देता है। दूसरी पार्टी के विद्यार्थियों से झगड़ा करता है, लड़ता है और फँसता है दलों की दलदल में। राजनीति करने की इच्छा ने उसे हड़ताल करने की अनुभूति प्रदान की, बड़ों का अनादर करना सिखाया, बसों को जलाने और सरकारी सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट-भ्रष्ट करने को प्रेरित किया। छोटी-छोटी और बेहूदा माँगों पर ऐंठना, अकड़ना सिखाया।
आज का विद्यार्थी अर्थोपार्जन के अनुभव से शून्य है, इस ओर से अनाड़ी है। आज की शिक्षा केवल क्लर्क उत्पन्न करने का साधन है, न कि व्यावसायिकता में प्रवीणता, दक्षता उत्पन्न करने का साधन। अर्थोपार्जन की अनुभवहीनता आज के शिक्षित समाज का महान अभिशाप है।
वस्तुतः विद्यार्थी का अनुभव-संसार विशाल है, विस्तृत है। जीवन की प्राय: हर कठिनाई की अनुभूति का अंश वह भोग चुका होता है। सुख-दुख की गलियों में झाँक चुका होता है। अतः ये अनुभूतियाँ निःसंदेह उसके भावी जीवन में काम आती हैं।