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स्वावलंबन (आत्म-निर्भरता)

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संकेत बिंदु – (1) स्वावलंबन का अर्थ (2) स्वावलंबन के उदाहरण (3) मानवीय गुणों को स्थापित करना (4) आत्मनिर्भरता, स्वावलंबियों की आराध्य देवी (5) स्वावलंबी मनुष्य समाज तथा राष्ट्र का जीवन।

स्वावलंबन का अर्थ है आत्म-निर्भरता, पर आत्म-निर्भरता का अर्थ यह कदापि नहीं कि प्रत्येक कार्य व्यक्ति स्वयमेव करे। झाड़ू-बुहारी से लेकर, रोटी पकाने तक, कपड़े धोने से लेकर, दफ्तर की ड्यूटी भुगताने तक एक ही व्यक्ति मरे पचे। न ही स्वावलंबन का अर्थ पर-बुद्धि, योग, ज्ञान, बल शक्ति की उपेक्षा है। यह तो आत्म-विश्वास का खंडन है, आत्मबल का दुरुपयोग है, आत्मनिर्भरता की अशुद्ध व्याख्या है। वस्तुतः आत्म-विश्वास के बल पर कार्य को निरंतर गति देना स्वावलंबन है। निज, समाज तथा राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता उत्पन्न करना स्वावलंबन है। व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र में आत्मविश्वास की भावना होना, स्वावलंबन की प्रतीक है।

स्वालंबन व्यक्ति, समाज, राष्ट्र के जीवन में सर्वांगीण सफलता प्राप्ति का महामंत्र है। जीवन का आभूषण है। कर्तव्य शृंखला की प्रथम कड़ी है। वीरों तथा कर्मयोगियों का इष्टदेव है। सर्वांगीण उन्नति का आधार है।

प्रभु का मुँह और हाथ देने का तात्पर्य है – स्वावलंबनी बनो। अपना काम अपने हाथ से करो। अपने हाथ की कमाई खाओ। आत्म-निर्भर बनकर हार्दिक आनंद की प्राप्ति करो। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी स्वावलंबन के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सूर्य से प्रकाश, चंद्रमा से रस, आकाश या भूमि से जल प्राप्त कर पेड़-पौधे स्वतः बढ़ते जाते हैं। वे प्रकाश, रस तथा जल के लिए सूर्य, चंद्रमा तथा मेघ की खुशामद नहीं करते। उनके सामने दाँत नहीं निपोरते, बगलें नहीं झाँकते, गण्डा या तावीज नहीं बाँधते।

पशु तथा पक्षी – शावक जरा से बड़े हुए नहीं कि निकल पड़े अपना चारा स्वयं खोजने। चींटी – जैसा नन्हा सा जीव भी स्वावलंम्बन का महत्त्व समझता है। इसी से प्रेरित होकर एक शायर परमुखापेक्षी मानव, समाज तथा राष्ट्र की मूर्खता पर रो उठा-

       जो हुआ मोहताज गैरों का, वो कब इन्सान है।

       वो है हैवानों से बदतर, चूँकि वो नादान है।

राजस्थानी में एक कहावत है- ‘काम सुधारो तो अंगे पधारो।’ अर्थात् यदि अपना काम सुधारना है, तो किसी के अधीन न रहकर उसे स्वयं करो। दूसरे शब्दों में- ‘स्वावलंबी बनो।’ भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है-’स्वे-स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।‘ जो व्यक्ति अपने कर्म के पालन में तत्पर रहता है, उसे ही सिद्धि (सफलता) प्राप्त होती है। कहावत भी प्रसिद्ध है – आप काज महाकाज।’ एकलव्य स्वयं के प्रयास से धनुर्विद्या में प्रवीण बना, निपट दरिद्र बालक लालबहादुर भारत का प्रधानमंत्री बना, साधारण परिवार में जन्मा जैलसिंह स्वावलंबन के सहारे ही भारत का राष्ट्रपति बना। मध्यवर्गीय अध्यापक पुत्र अटलबिहारी वाजपेयी आज भारत का प्रधानमंत्री है।

जैसे अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, सूक्ति भाषा को चमत्कृत करती है, गहने नारी के सौंदर्य को द्विगुणित करते हैं, इसी प्रकार स्वावलंबन मानव में अनेक गुणों की प्रतिष्ठा करता है, उन्हें चमकाता है। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मबल, आत्मनिर्भयता, आत्मरक्षा, साहस, संतोष, धैर्य आदि गुण स्वावलंबन के सहोदर हैं। महात्मा गाँधी स्वावलंबन के जीवंत उदाहरण थे। आवश्यकता पड़ने पर वे किसी भी काम से झिझके नहीं, हिचके नहीं। अपने हाथों से खाना बनाया तो कपड़े भी धो लिए। बीमार का शौच भी साफ कर दिया, तो वमन युक्त वस्त्र भी बदल दिए।

स्वावलंबन के महत्त्व से अपरिचित, दूसरों का मुँह ताकने वाले अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पाते। ऐसे लोग मोह को बढ़ाकर, तृष्णा को उत्पन्न कर अपनी स्थिति दयनीय तथा कृपण बना लेते हैं। कार्पण्य दोष से जिसका स्वभाव उपहत हो जाता है, उनकी दृष्टि म्लान हो जाती है। इस म्लान, अंधकारपूर्ण दृष्टि से भगवान को भी भय लगता है। प्रभु तो उन्हीं की सहायता करते हैं, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। स्वावलंबी को ही प्रभु का वरदान प्राप्त होता है।

आत्म-निर्भरता स्वावलंबियों की आराध्य देवी है। इस देवी की उपासना से उनका आलस्य अंतर्धान हो जाता है, भयभीत होकर भाग जाता है, कायरता नष्ट हो जाती है, संकोच समाप्त हो जाता है, आत्मविश्वास उत्पन्न होता है, आत्मगौरव जागृत होता है। स्वावलंबी व्यक्ति कष्टों और बाधाओं को रौंदता हुआ कंटकाकीर्ण पथ पर निर्भीकतापूर्वक आगे बढ़ता है। ऐसे ही कर्मवीरों के संबंध में कविवर ‘हरिऔध’ ने कहा है-

पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे,

सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे।

आज जो करना है कर देते हैं उसको आज ही,

 सोचते, कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।

टाटा, बिड़ला, सिंघानिया, डालमिया, खेतान, मोदी, अंबानी न जाने कितने स्वावलंबियों ने केवल स्वयं को समृद्ध किया, अपितु राष्ट्र को औद्योगिक संपन्नता प्रदान कर विश्व- प्रांगण में भारत का भाल ऊँचा किया। अनेक महान वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) के रूप में भारत को विश्व के महान राष्ट्रों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया। डॉ. अब्दुल कलाम तथा सुब्रह्मण्यम जैसे वैज्ञानिकों ने परमाणु बम का सफल परीक्षण कर भारत को परमाणु-संपन्न राष्ट्र होने का गौरव प्रदान कराया। डॉ. इकबाल ने इसी तथ्य को प्रस्तुत करते हुए कहा है-

खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले।

खुदा बन्दे यह पूछे, बता तेरी रजा क्या है?

ऐसे महाप्रचंड शक्तिसंपन्न स्वावलंबी मनुष्य समाज तथा राष्ट्र का जीवन हैं। ‘वे प्राण ढाल देते हैं ज़िंदगी में, मन ढाल देते हैं, जीवन रस के उपकरणों में। कठोर भूतल को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भोग्य संग्रह प्राप्त करते हैं; वायुमंडल को चूसकर, झंझा-तूफान को झेलकर अपना प्राप्य वसूल करते हैं। आकाश को चूसकर, अवकाश की लहरी में झूमकर उल्लास खींचते हैं।’ ऐसे स्वावलंबियों की प्रशंसा में कवि का कथन है- ‘स्वावलंबन की एक झलक पर न्योछावर कुबेर का कोष।’

स्वावलंबन आत्म-निर्भरता का परिचायक है; व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र के लिए बल, गौरव एवं उन्नति का द्वार है। सुख, शांति तथा सफलता का प्रदाता है और है शौर्य, शक्ति तथा समृद्धि का साधन।

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