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पर्यटन अथवा देशाटन

essay on tourism in hindi

पर्यटन या देशाटन एक ही अर्थवाची शब्द हैं। इनका शाब्दिक अर्थ है- देश-विदेश में भ्रमण करना। एक स्थान पर रहते-रहते मनुष्य ऊब जाता है। वह कहीं घूमने जाना चाहता है। मनुष्य में जिज्ञासा वृत्ति होती है, जो उसे अपने देश के विषय में ही नहीं, विदेश के बारे में भी जानने की प्रेरणा देती है। वह नई वस्तुओं को जानना चाहता है, उनके सौंदर्य को निहारना चाहता है। वह अनुभव करता है कि जीवन का दूसरा नाम गति है तथा रुक जाना मृत्यु है। वह विश्व के बारे में बहुत कुछ पढ़ता है। उन्हें अपनी आँखों से देखना चाहता है, उनके रहस्यों को उद्घाटित करना चाहता है। ऊँची-ऊँची पर्वत श्रृंखलाएँ तथा समुद्र की गहराई उसको अपनी ओर आकृष्ट करती है। अब तो उसके कदम अंतरिक्ष की ओर भी बढ़ गए हैं। अभी मंजिल दूर है, किंतु उसकी जिज्ञासा वृत्ति उसे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करती है।

प्राचीन काल में मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण तथा अपनी आवश्यक आवश्यकताओं के लिए घूमता था। धीरे-धीरे सभ्यता का विकास हुआ और नए-नए प्रदेशों की खोज में वह निकल पड़ा। भारत सदैव ऐसा राष्ट्र रहा है जिसने विश्वविख्यात पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। मैगस्थनीज़, फ़ाह्यान, ह्वेनसांग आदि अनेक विदेशी पर्यटक भारत भ्रमण के लिए आए तथा यहाँ की सभ्यता, रीतिरिवाज, संस्कृति आदि का ज्ञान प्राप्त कर आश्चर्य चकित हुए। इससे पूर्व भारत अपने यहाँ के निवासियों को देश- विदेश में भेजता रहा है। जैन और बौद्धों की तो स्वाभाविक प्रवृत्ति घूमना रही है, तभी भारतीय संस्कृति दूर-दराज के प्रदेशों में फैलती चली गई। उद्देश्य बदल गया है, किंतु आज भी देशाटन की वृत्ति बढ़ रही है। अब राजनीतिक तथा व्यापारिक कारणों से देश-विदेश की यात्राएँ की जाती हैं।

पर्यटन के अनेक लाभ हैं। ज्ञान-विज्ञान के विकास ने विश्व के विभिन्न देशों को एक दूसरे के निकट ला दिया है। अनेक सुख-सुविधाओं के रहते यात्रा करना बहुत सहज हो गया है। पर्यटन अथवा देशाटन का सर्वाधिक महत्त्व ज्ञानार्जन है। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से मिलकर, प्रदेशों के सौंदर्य को देखकर भिन्न- भिन्न तरह की जानकारी प्राप्त होती है। एक राष्ट्र और दूसरे राष्ट्र के मध्य आपसी समझ व मैत्री-भाव बढ़ता है जिससे ज्ञान के आदान-प्रदान द्वारा दोनों राष्ट्र उन्नति कर सकते हैं। पर्यटन द्वारा मनोरंजन भी होता है। विभिन्न स्थानों, पर्वतों, नदी-तालाबों तथा समुद्र की उठती लहरों को देखकर पर्यटक आनंदित हो जाते हैं। अप्रत्यक्ष रूप में इस प्रकार का घूमना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी भी है। परिवर्तित स्थानों तथा वहाँ की जलवायु का प्रभाव स्फूर्ति तो देता ही है, साथ ही नया उत्साह भी भर देता है। इस प्रकार की यात्राओं तथा प्राकृतिक सौंदर्य को देखने के पश्चात कार्य करने में आनंद आता है। उस सबकी स्मृति बहुत समय तक हमारे साथ रहती है। पर्यटन से आत्मविश्वास जागता है, विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों को सुलझाने की सामर्थ्य उत्पन्न होती है। पर्यटन आर्थिक व व्यापारिक दृष्टि से भी लाभकारी है। इससे सांस्कृतिक एकता बनाए रखने में भी सहायता मिलती है।

पर्यटन में कुछ सावधानियाँ अपनाने की आवश्यकता होती है। राहुल सांकृत्यायन ने तो घुमक्कड़शास्त्र ही बना डाला। उनकी दृष्टि में सबसे बड़ा घुमक्कड़ वह है जो बिना किसी तैयारी के घूमने निकल पड़ता है। यह सबके लिए संभव नहीं है। अलग-अलग प्रदेशों की जलवायु हानि न पहुँचाए इसके लिए सावधानी रखनी होगी। पर्वत तथा समुद्र की यात्राएँ बहुत हानिकारक भी सिद्ध हो सकती हैं। पर्यटन साहसिक तो है किंतु अपनी शक्ति व सीमा की जानकारी हमें अवश्य होनी चाहिए। अन्यथा आनंद दुःख में परिवर्तित हो जाता है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने एक ओर सुख-सुविधाएँ दी हैं तो दूसरी ओर विभिन्न आशंकाओं के दरवाजे भी खोल दिए हैं। भविष्य अंधकार में होता है फिर भी अनुभव व अनुमान उस अंधकार को उजागर करने में सहायता करता है। इसके लिए मानसिक संतुलन की अपेक्षा होती है, यह पर्यटन का महत्त्वपूर्ण शस्त्र है।

वर्तमान समय में पर्यटन अथवा देशाटन बढ़ रहा है। एक दूसरे राष्ट्र को अधिक गहराई से समझा जा रहा है। सामूहिक प्रयासों द्वारा मानव चिकित्सा आदि क्षेत्रों में अद्भुत सफलता प्राप्त करने में योग्य बना है। व्यापारिक संभावनाएँ बढ़ी है जिससे सभी राष्ट्र उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हुए हैं। विश्व को एक परिवार के रूप में देखने की कल्पना साकार हो रही है।

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