संकेत बिंदु – (1) वसंत पंचमी का आगमन (2) सरस्वती का जन्मदिन (3) रति कामदेव की पूजा का दिन (4) वीर हकीकतराय का जन्मदिन (5) पंचमी मनाने के ढंग।
माघ शुक्ल पंचमी को ‘वसंत पंचमी’ के नाम से जाना जाता है। कोशकार रामचंद्र वर्मा के अनुसार ‘वसंत पंचमी वसंत ऋतु के आगमन का सूचक है।’
(मानक हिंदी कोश : खंड पाँच, पृष्ठ 23)
ऋतु गणना में चैत्र और वैसाख, दो मास वसंत के हैं। फिर उसका पदार्पण चालीस दिन पूर्व कैसे? कहते हैं कि ऋतुराज वसंत के अभिषेक और अभिनंदन के लिए शेष पाँच ऋतुओं ने अपनी आयु के आठ-आठ दिन वसंत को समर्पित कर दिए। इसलिए वसंत पंचमी चालीस दिन पूर्व प्रकट हुई। यह तिथि चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से चालीस दिन पूर्व माघ शुक्ला पंचमी को आती है।
भूमध्य रेखा का सूर्य के ठीक-ठीक सामने आ जाने के आस-पास का कालखंड है वसंत। अतः वसंत भारत का ही नहीं, विश्व वातावरण के परिवर्तन को द्योतक है। सम्भव है कभी बृहत्तर भारत में माघ के शुक्ल पक्ष में वसंतागमन होता हो और माघ शुक्ल पंचमी को वसंत- आगमन के उपलक्ष्य में ‘अभिनंदनं पर्व’ रूप में प्रस्थापित किया हो। वस्तुतः वसंत पंचमी वसंतागमन की पूर्व सूचिका ही है, इसी कारण इसे ‘ श्री पंचमी’ भी कहते हैं।
वसंत पंचमी विद्या की अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती का जन्म दिवस भी है। इसलिए इस दिन सरस्वतीपूजन का विधान है। ज्ञान की गहनता और उच्चता का सम्यक् परिचय इसी से प्राप्त होता है। पुस्तकधारिणी वीणावादिनी माँ सरस्वती की यह देन है कि वे जीवन के रहस्यों को समझने की सूक्ष्म दृष्टि प्रदान कर ज्ञान लोक से संपूर्ण विश्व को आलोकित करती हैं। अतः सरस्वती पूजा ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ के आदर्श पर चलने की प्रेरणा देती है- ‘महो अर्णः सरस्वती प्रचेतयति केतुना। धियो विश्वा विराजति।’
(ऋग्वेद 1/3/12)
प्राचीन काल में वेद अध्ययन का सत्र श्रावणी पूर्णिमा से आरंभ होकर इसी तिथि को समाप्त होता था।
गत बीसवीं शताब्दी में वसंत पंचमी को न तो विद्या का सत्र समाप्त होता था, न विद्याभ्यास के लिए मंगल-दिन मानकर विद्या- ज्ञान का आरंभ होता था। हाँ, माँ शारदा की कृपा एवं आशीर्वाद के लिए ‘सरस्वती पूजन’ अवश्य होता रहा है।
पौराणिक कोश के अनुसार वसंत पंचमी रति और कामदेव की पूजा का दिन है। मादक महकती वासंती बयार में, मोहक रस पगे फूलों की बहार में, भौरों की गुंजार और कोयल की कूक में मानव हृदय जब उल्लसित होता है, तो उसे कंकणों का रणन, नुपुरों की रुनझुन, किंकणियों का मादक क्वणन सुनाई देता है। मदन-विकार का प्रादुर्भाव होता है तो कामिनी और कानन में अपने आप यौवन फूट पड़ता है। जरठ (वृद्धा) स्त्री भी अद्भुत शृंगार- सज्जा से आनंद पुलकित जान पड़ती है। दाम्पत्य और परिवारिक जीवन की सुख- समृद्धि के लिए रति और कामदेव की कृपा चाहिए। अतः यह रति कामदेव पूजन का दिन माना जाता है।
वसंत पंचमी किशोर हकीकतराय का बलिदान दिवस भी है। सियालकोट (अब पाकिस्तान) का किशोर हकीकत मुस्लिम पाठशाला में पढ़ता था। एक दिन साथियों से झगड़ा होने पर उसने ‘कसम दुर्गा भवानी’ की शपथ लेकर झगड़ा समाप्त करना चाहा। मुस्लिम छात्रों ने, जो झगड़ा करने पर उतारू थे, दुर्गा भवानी को गाली दी। हकीकत स्वाभिमानी था, बलवान् भी था। प्रत्युत्तर में फातिमा को गाली दी। ‘फातिमा’ को गाली देने के अपराध में उसे मृत्यु-दण्ड या मुस्लिम धर्म स्वीकार करने का विकल्प रखा गया। किशोर हकीकत ने मुस्लिम धर्म स्वीकार नहीं किया। उसने हँसते हुए मृत्यु का वरण किया। उस दिन भी वसंत पंचमी थी। लाहौर में रावी का तट था। सहस्रों हिंदू जमा थे। सबके सामने मुस्लिम शासक की आज्ञा से उस किशोर का सिर तलवार से काट दिया गया। रावी नदी के तट पर खोजेशाह के कोट क्षेत्र में धर्मवीर हकीकत की समाधि बनाई गई। स्वतंत्रता- पूर्व सहस्रों लाहौरवासी वसंत के दिन वीर हकीकत की समाधि पर इकट्ठे होते थे। मेला लगता था। अपने श्रद्धा-सुमन चढ़ाते थे।
वसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने की प्रथा थी। वह प्रथा आज नगरों में लुप्त हो गई है। गाँवों में अवश्य अब भी उसका कुछ प्रभाव दिखाई देता है। हाँ, वसंती हलुआ,
पीले चावल तथा केसरिया खीर खाकर आज भी वसंत पंचमी पर उल्लाल, उमंग प्रकट होता है। परिवार में प्रसन्नता का वातावरण बनता है।
वसंत हृदय के उल्लास, उमंग, उत्साह और मधुर जीवन का द्योतक है। इसलिए वसंत पंचमी के दिन नृत्य-संगीत, खेलकूद प्रतियोगिताएँ तथा पतंगबाजी का आयोजन होता है। वसंत मेले लगते हैं।
वसंत पंचमी प्रतिवर्ष आती है। जीवन में वसंत (आनंद) ही यशस्वी जीवन जीने का रहस्य है, यह रहस्योद्घाटन कर जाती है।