कठिन परिश्रम का नाम सौभाग्य है

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संकेत बिंदु – (1) कठिन परिश्रम के लिए साहस और सहनशीलता (2) बिना परिश्रम भाग्य भी नहीं (3) कठिन तपस्या, साधना से सिद्धि (4) कठिन परिश्रम के इतिहास में उदाहरण (5) उपसंहार।

इतिहास में अनेक उदाहरण हैं कि कठिन परिश्रम ही सौभाग्य को बनाता है और कठिन परिश्रम करने वाले व्यक्ति ही देश में सदैव अग्रणी भी रहे हैं। चाहे वह देश का श्रमिक हो, चाहे विद्यार्थी, चाहे देश का वैज्ञानिक हो या कवि-लेखक, अभिनेता हो या नेता, वैद्य-हकीम डॉक्टर हो या कोई संत महात्मा, जितने ने कठिन परिश्रम किया है सफलता का सौभाग्य उसी को मिला है।

कठिन परिश्रम करने के लिए मनुष्य में सहनशीलता, साहस, निर्भीकता आदि गुण विद्यमान होते हैं क्योंकि कठिन परिस्थितियों में कठिन परिश्रम ही सौभाग्यदायक सिद्ध होता है, कठिन परिश्रम करने की प्रवृत्ति भी प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती, लेकिन अपनी धुन के पक्के व्यक्ति कठिन परिश्रम करके ही सौभाग्यशाली कहलाते हैं। अपना मन लगाकर किया जाने वाला कोई भी कार्य परिश्रम ही कहलाता है और कुछ श्रमिकों का मूलमंत्र ‘श्रम ही पूजा है’ होता है और वह लोग अपने कठिन परिश्रम से प्रत्येक कार्य को संभव बना पाने में सक्षम भी होते हैं।

कठिन परिश्रम की महत्ता पर कवि मनोहरलाल ‘रत्नम्’ का मत है कि-

गगन चूमते महल बनाते, पर्वत को कर देते धरती।

जिनकी गाथा नित कहती है, ऊँची चिमनी धुँआ उगलती॥

नत मस्तक मैं हो जाता हूँ, इनकी मेहनत है मतवाली।

श्रम के दीप जलाकर ‘रत्नम्’ पूजा करता हूँ दीवाली॥

कवि ने श्रम के दीप जलाकर दीपावली पूजने की बात कह कर यह ही बताने का प्रयास किया है कठिन परिश्रम के कारण गगन चूमते भवन अपने सौभाग्य को दर्शा रहे हैं। सही परिश्रम के साथ भाग्य भी सफलता का एक उपकरण हैं और यह सत्य है कि मनुष्य द्वारा किया गया कठिन परिश्रम उसका सौभाग्य बनकर गुण के समान उसे अपने उच्च स्थान पर ले जाता है और यह इतिहास की सच्चाई भी है कि व्यक्ति को बिना परिश्रम भाग्य भी कुछ नहीं दे सकता। क्योंकि कठिन परिश्रम का साथ पाकर ही भाग्य भी सौभाग्य बन जाया करता है। “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ” यहाँ भी कठिन परिश्रम की महत्ता को ही चरितार्थ किया गया है। विद्यार्थी कठिन परिश्रम करता है तो परीक्षा में अपने श्रम के सहारे पूरे विद्यालय ही नहीं, पूरे नगर अथवा जिला में प्रथम स्थान प्राप्त करता है। इसे सौभाग्य ही कहा जाएगा, जो कठिन परिश्रम से प्राप्त हुआ है। यदि विद्यार्थी श्रम करेगा ही नहीं तो उसे सफलता किस प्रकार मिलनी संभव होगी। इसी प्रकार व्यापारी भी सुबह से शाम तक परिश्रम करता है। वैज्ञानिकों द्वारा कठिन परिश्रम का ही तो परिणाम है कि आज हमारा विज्ञान शिखर पर है और देश का सौभाग्य उज्ज्वल हुआ है।

कठिन परिश्रम केवल पत्थर तोड़ना या भवन बनाना ही नहीं है, हर क्षेत्र में कठिन परिश्रम की आवश्यकता होती है। वर्षों की कठिन तपस्या, साधना, परिश्रम के बाद किसी संत-महात्मा को सिद्धि प्राप्त होती है। वर्षों के कठिन परिश्रम के पश्चात् भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त हुआ, लेकिन इसके लिए हमें कितने बलिदान देने पड़े, वीरों को कितना कठिन परिश्रम करना पड़ा, यह किसी से छुपा नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में कहा है-

“सकल पदारथ हैं जग माँहि।

कर्म हीन भर पावत नाँहि॥”

तुलसीदास ने इस चौपाई के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि इस संसार में हर प्रकार के पदार्थ विद्यमान हैं, लेकिन जो मनुष्य श्रमहीन है वह इन सफल पदार्थों को नहीं प्राप्त कर सकता। मनुष्य को सदैव परिश्रम के लिए तत्पर रहना चाहिए। भाग्य या सौभाग्य केवल कठिन परिश्रम से ही उदय होते हैं। जब हम कोई कर्म या परिश्रम नहीं करेंगे तो फिर किसी वस्तु को पाने की आशा भला कैसे कर सकते हैं? कुछ भी संसार में पाने के लिए हमें परिश्रम तो करना ही पड़ेगा, परिश्रम करने से ही हम अपने गंतव्य या सफलता के सोपान पर पहुँच पाएँगे, तभी हमास सौभाग्य भी हमारा साथ देगा। इसके लिए हमें उद्यमी होना पड़ेगा, बिना इसके कुछ भी प्राप्त होना संभ नहीं है।

देवों और दानवों ने कठिन परिश्रम कर सागर मंथन किया। इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है कि दोनों समुदायों ने मिलकर मँदराचल पर्वत को मथनी बनाया और शेषनाग को डोरी बनाकर सबने परिश्रम से सागर के गर्भ से संसार की अनेक वस्तुएँ निकालीं। यह सौभाग्य है कि अनेक वनस्पतियों, रसायन, बहुमूल्य धातुएँ और अमृत के साथ मदिरा की भी प्राप्ति हुई। देवताओं और दानवों के कठिन परिश्रम के कारण आज हमारे सामने अनेक पदार्थ आए।

कठिन परिश्रम को जीवन का संग्राम कह कर भी परिभावित किया गया है “बन्दे ! जीवन है संग्राम” यह पंक्ति किसी फिल्म के गीत की है या किसी कवि की कविता की प्रथम पंक्ति। लेकिन इसका सार यही है कि मनुष्य को संग्राम की भाँति जीवन में कठिन परिश्रम करना चाहिए तभी सौभाग्य का हृदय संभव है। परिश्रम शारीरिक हो अथवा मानसिक परिश्रम तो परिश्रम ही होता है, देश को स्वतंत्र करने में महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, बल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जैसे अनेक देश-भक्त वीरों ने अपने कठिन परिश्रमवश ही आजादी के सौभाग्य देश को दिया।

“रंग लाती है हिना, पत्थर से घिस जाने के बाद।

होता है इन्सां ठोकरे खाने के बाद॥”

यह किसी शायर का कथन है, इसका तात्पर्य यही है कि कठिन परिश्रम करके जब मेंहदी को पत्थर पर पीसा जाता है तो वह सौभाग्य से रंग देती है, इसी प्रकार मनुष्य द्वारा किया गया कठिन परिश्रम ही सौभाग्यकारी माना गया है।

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