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यदि हिमालय न होता

yadi himalay n hota hindi nibandh

संकेत बिंदु – (1) पृथ्वी का इतिहास कुछ और होता (2) पांडवों का सर्वगारोहण असंभव होता (3) असुरक्षित भारत और देवस्थानों का अभाव (4) जड़ी-बूटियाँ, रत्न और भोजपत्रों का अभाव (5) प्राकृतिक सौंदर्य का अभाव होता।

यदि हिमालय न होता तो सृष्टि का इतिहास कुछ और ही होता। भारत उत्तर दिशा में सुरक्षित नहीं होता। हिंदू संस्कृति का आध्यात्मिक स्वरूप होता भी तो किसी अन्य रूप में होता। गंगा-यमुना, सिंधु-ब्रह्मपुत्र और पंचनद की पाँच नदियों का नामोनिशान न होता। जगत जल के बिना तड़पता। मानव रत्नों और महौषधियों के कोष से वंचित होता। पर्यटक प्रकृति-सौंदर्य देखने के नाम पर अपने आँगन में ही घूम कर संतोष कर लेते।

यदि हिमालय न होता तो पौराणिक देवों में सर्वाधिक प्रभाव भगवान शिव पर पड़ता। उनका निवास स्थान कैलास न होता। हिमालय की ही पुत्री उनकी अर्धांगिनी पार्वती न होती। पार्वती या उमा हिमालय की ही पुत्री हैं।

यदि हिमालय न होता तो महाभारत के वीर पांडव तथा द्रौपदी को जीवन की अंतिम शांति प्राप्त न होती, क्योंकि वे तो देवतात्मा हिमालय के अंचल में गलकर ही तो अपने जीवन का अंत करना चाहते थे। क्योंकि हिमालय में ही तो ‘स्वर्गारोहण’ गिरि है, उसके बिना क्या धर्मराज युधिष्ठिर का स्वर्गारोहण संभव था?

यदि हिमालय न होता तो हिंदू-धर्म का आध्यात्मिक गुण शायद प्रकट होता नहीं, होता भी तो उसका रंग-रूप, साज-सज्जा कुछ अन्य ही होती। जिसकी कल्पना भी असंभव है। हिमालय पर्वत पर ही तो यज्ञ, तप और अनुष्ठान करके ऋषि-मुनियों ने, योगियों ने अध्यात्म की ज्योति जलाई, जीवन के सत्य से साक्षात्कार कर जीवन कृतार्थ किया। मानव को धर्म का संदेश देकर उसका जीवन धर्ममय बनाया।

हिमालय न होता तो उसके अंचलों में बसे देवस्थान न होते। अमरनाथ, कैलास, मानसरोवर, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, आदि अनगिनत पूजा और श्रद्धा केंद्र न होते। आद्य शंकराचार्य का ज्योतिर्मठ न होता। हिमालय न होता तो मुक्तिकामी तपस्वी साधकों को पवित्र तपस्या स्थल प्राप्त न होता।

यदि हिमालय न होता तो उत्तर की ओर से भारत की सुरक्षा का विश्वास कौन देता? अत्याचारी अरबों का आक्रमण हजारों वर्ष पूर्व ही हो गया होता, जो भारत की अस्मिता को ही बदल देता; भारत के इतिहास को पलट देता।

यदि हिमालय न होता तो सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना आदि नदियों के अभाव में भारत की धरती शस्य – श्यामला होकर सोना न उगलती। अन्न के अभाव में देशवासियों को प्रायः अकाल का सामना करना पड़ता। इन नदियों के अमृतसम सलिल के अभाव में मनुष्य ही नहीं. पशु-पक्षी और धरती भी प्यासी रह जाती।

यदि हिमालय न होता तो हजारों मील में फैले उसके घने जंगलों से फल-फूल, लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ, वनस्पति, खनिज, रत्नों के अभाव में भारत की उन्नत सभ्यता का कहीं पता न होता। विज्ञान की उन्नति, आयुर्वेद और ‘एलोपैथी’ की नींव ही खिसक जाती। हिमालय न होता तो भू-स्वर्ग कश्मीर न होता, न उसके केशर की क्यारियाँ ही होतीं। कहते हैं कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के घोड़ों ने कश्मीर की केशर क्यारियों में लोट-लोट करके अपने अयाल लाल कर लिए थे। हिमालय न होता तो उसके वनों में पाए जाने वाली ‘चमरी गाय’ के अभाव में देवों और सम्राटों के सिर पर चँवर न डुलाए जाते। भोजपत्रों पर लिखे सहस्रों प्राचीन ग्रंथ आज हमारे पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वे न होते। बाँस के वनों के अभाव में कृष्ण की मुरली न बजती तथा ज्ञान प्रमार का मुख्य आधार कागज न होता। हिमालय के घने जंगलों के अभाव में और हिम नदी के अभाव में वर्षा न होती, धरती प्यासी मरती। शेर, हाथी, चीते आदि जंगली जीव न होते।

हिमालय न होता तो सृष्टि में प्राकृतिक सौंदर्य की कल्पना ही न होती। उसके अभाव में ‘पर्यटन’ का कार्य न होता। कालिदास के ‘मेघदूत’ का विरही यक्ष और अलकापुरी न होती। प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी को छायावादी दृष्टिकोण प्राप्त न होता। इकबाल जैसे शायर की यह कल्पना न होती – ‘ऐ हिमालय! ऐ फसीले किश्वरे हिन्दोस्ताँ, चूमता है तेरी पेशानी को झुककर आसमाँ।’ ‘दिनकर’ को ‘मेरे नगपति! मेरे विशाल? साकार दिव्य गौरव विराट्’ कहकर कविता लिखने की प्रेरणा न मिलती।

हिमालय न होता तो पर्वतारोहियों को उसके सर्वोच्च पर्वत शिखर ‘सरगमाथा’ य ‘माउंट एवरेस्ट’ को स्पर्श कर उसका आलिंगन करने का निमंत्रण कौन देता? कर्नल हंट और शेरपा तेनसिंह विश्व में एवरेस्ट के सर्वप्रथम आरोही होने की यशस्विता कैसे प्राप्त करते?

इसीलिए डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी का कथन है कि-’हिमालय को भारतीय साहित्य और इतिहास से हटा दिया जाए तो वह बहुत निष्प्राण हो जाएगा। हिमालय हमारा प्रहरी है, देवभूत है, रत्नखानि है, इतिहास विधाता है, संस्कृति का मेरुदंड है।’

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