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यदि मैं पक्षी होता

yadi main ek paxi hota par hindi nibandh

संकेत बिंदु – (1) स्वतंत्रतापूर्वक विचरण (2) मानव द्वारा अनेक उपमाएँ (3) मानव कल्याण की भावना (4) महाकवियों की इच्छा पूर्ति (5) मानव को स्वावलंबन का पाठ।

यदि मैं पक्षी होता तो स्वतंत्रतापूर्वक मुक्त गगन में विचरण करता, भूमंडल के दर्शन करता, इच्छानुसार भोजन करता और हरी-भरी तरु शाखाएँ मेरी शय्या होतीं। मेरा जीवन स्वतंत्र और स्वच्छंद होता।

मानव देश-विदेश भ्रमण के लिए तरसता है, सवारी का अवलंबन लेता है, परमिट, पासपोर्ट और वीजा की प्राप्ति में रात-दिन एक करता है, फिर भी वह न भ्रमण का पूरा आनंद ले पाता है और न जगत् की विविधता की पूरी तरह देख पाता है। यदि मैं पक्षी होता तो-

होती सीमा हीन क्षितिज से, इन पंखों की होड़ा-होड़ी।

या तो क्षितिज मिलन बन जाता, या तनती साँसों की डोरी॥

(शिवमंगलसिंह ‘सुमन’)

मानव पर कोई विपत्ति आ जाए, तो आज उसके दुख-दर्द में दूसरा शामिल नहीं होता। परदुखकातरता की भावना लुप्त होती जा रही है। यदि मैं पक्षी होता तो मेरी एक आवाज पर सैकड़ों पक्षी इकट्ठे होकर मेरे सुर में सुर मिलाकर इतना शोर मचा देते कि दुख, दर्द और मुसीबतें काफूर हो जातीं।

यदि मैं पक्षी होता तो मनुष्य मेरे रंग-बिरंगे शरीर की आकृतियाँ अपने वस्त्रों पर उतारते; काष्ठ, मिट्टी या प्लास्टिक की मूर्तियाँ बनाकर अपने बैठक की शोभा बढ़ाते। तूलिका से मेरे रंग-बिरंगे चित्र बनाकर दीवारों को शोभायमान करते और मैं इस पर हर्ष अनुभव करता।

यदि मैं पक्षी होता तो मानव मेरे अंग, मेरी चाल, मेरे स्वभाव पर गर्व करता। मेरे अंगों और चेष्टाओं की उपमाएँ देता हुआ अपने कथन में प्रभावोत्पादकता लाता। काव्यों में सुंदरियों की मनोहर नासिका की उपमा शुक की चोंच से, गर्दन की उपमा हंस और मोर की ग्रीवा से दी जाती है नव-युवतियों की चाल को हंसिनी और मोरनी की चाल बताया जाता है। अनिंद्य सुंदरियों के नेत्रों की उपमा चकोरी के नेत्रों से की जाती है। छिद्रान्वेषी, धूर्त, ढीठ रूप में कौवे से उपमा दी जाती है। लोभी होने पर ‘गिद्ध’ कहा जाता। चील- सदृश झपट्टा, तोते- सी रटंत, भ्रमर-सी वृत्ति, मोर के से पंख, कोयल की-सी सुरीली वाणी, हारिल की लकड़ी, नीर-क्षीर विवेकी हंस, बगुला भगत, शांति का प्रतीक कबूतर, शक्ति और वीरता का प्रतीक बाज बताया जाता है। इसी प्रकार की उक्तियाँ मेरे लिए निश्चित ही गर्व का कारण बनतीं।

यदि मैं पक्षी होता तो मानव से मित्रता स्थागित कर उसका हित करता। छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों को खाकर फसल की रक्षा करता। मरे हुए पशुओं को खाकर वायु को दूषित होने से बचाता। दूर-दूर संदेश पहुँचाने के काम आता। जो लोग मुझे पालते, मैं इनका मनोरंजन करता। परस्पर युद्ध (तीतर-बटेर) करके मानव का मनोविनोद करता। अपनी और अपने अंडों की आहुति देकर उनकी क्षुधा शांत करता।

यदि मैं पक्षी होता तो आलसी और प्रमादी मानव मात्र को सूर्योदय से पूर्व ‘कुकहुँ कूँ’ (मुर्गा) का उद्घोष करके जगाता। आँगन में चहक – चहककर (चिड़ियाँ) कलरव करता। मुँडेर पर बैठकर काँव-काँव (कौवा) कर शोर मचाता और छत पर चढ़कर ‘गुटर- गूँ-गुटर-गूँ’ (कबूतर का कूजन करता।

यदि मैं पक्षी होता तो महाकवि रसखान की इच्छा पूरी करता हुआ, ‘कालिंदी कूल के कदम्ब डार’ पर बसेरा करता। आदिकवि वाल्मीकि और कवि शिरोमणि तुलसीदास के शब्दों को कार्यान्वित करता। काक बनकर प्रभु राम के हाथ से रोटी का टुकड़ा छीन लेता। जटायु बन सीता के अपहरणकर्ता महाप्रतापी रावण से युद्ध करता। बादशाह अकबर के सुपुत्र सलीम के प्रेम-पत्र अनारकली तक पहुँचाकर उसकी प्रेमाग्नि को प्रज्वलित करता। युद्ध में जासूसी कर तथा संदेश पहुँचाकर राष्ट्र ऋण से उऋण होता।

यदि मैं पक्षी होता तो देवगण का वाहन बनता। कितनी प्रसन्नता होती मुझे। गरुड़ बन भगवान विष्णु का, उल्लू बन भगवती लक्ष्मी का, मोर बन कार्तिकेय स्वामी का तथा हंस बन ज्ञान की देवी सरस्वती का वाहन बनने का गौरव प्राप्त करता।

यदि मैं पक्षी होता तो मानव के भविष्य का लेखा पढ़कर उसे घटनाक्रम से पूर्व ही सचेत कर देता। प्रातः काल द्वार पर काँव-काँव करके अतिथि-आगमन की संभावना प्रकट करता। चील रूप में मेरे सामूहिक मँडराने से मृत्यु का बोध होता। मयूर रूप में मेरे नृत्य की तैयारी से वर्षा के आगमन का पूर्वाभास होता।

यदि मैं पक्षी होता तो मानव को स्वावलंबिता का पाठ पढ़ता। रोटी के लिए हाथ पसारने की बजाए श्रम के महत्त्व को समझाता। उन्हें बताता कि मैं क्षुधाशांति के लिए दूर- दूर तक चक्कर काट लेता हूँ। मानव को सीना (पत्तों के किनारे), बुनना (मकड़ी का जाला) और नीड़ – निर्माण की कला बताता। व्योम-विहार के नए-नए आविष्कार का प्रेरक बनता। संगठन – सूत्र का मंत्र बताता (कौए समूह में रहते और विहार करते हैं)।

प्रभु की असीम कृपा होती यदि मैं पक्षी होता। तब प्रभु इस मायावी संसार से मुझे शीघ्र अपने सान्निध्य में बुला लेते। मैं अस्पताल या घर की चारदीवारी के घुटन भरे वातावरण में दम नहीं तोड़ता, बल्कि प्रकृति की गोद में अंतिम साँस लेता। प्रकृति-प्रेमी होने के कारण मुझे ईश्वर भक्त माना जाता। ईश्वर भक्ति अर्थात् मोक्ष की दात्री। यदि मैं पक्षी होता तो स्वर्ग-नरक के झंझट, इहलोक और परलोक की विडंबना से मुक्त होकर परमपद का अधिकारी होता।

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