संकेत बिंदु – (1) राष्ट्र के प्रति दायित्व (2) भारतीय युवाओं का वैभवशाली अतीत (3) खेल व शिक्षा में योगदान (4) उद्योग और वाणिज्य के क्षेत्र में (5) पाखंडों और कुप्रथाओं को समाप्त करने में सहायक।
राष्ट्र-निर्माण में युवा पीढ़ी का सहयोग राष्ट्र के प्रति उसके दायित्व की अनुभूति का प्रमाण है। राष्ट्र की सुख-शांति समृद्धि और प्रगति में उसकी साझेदारी है। उसके द्वारा राष्ट्र-वंदना है, राष्ट्र पूजा है। यह सहयोग उसके राष्ट्र-प्रेम, देश भक्ति तथा मातृभूमि के प्रति सर्वस्व समर्पण की भावना को प्रकट करता है।
राष्ट्र के युवक भावी पीढ़ियों के न्यासी होते हैं। प्रायः राष्ट्र का प्रत्येक महान कार्य युवकों के सहयोग के बिना अधूरा रह जाता है। कारण, निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती, तब तक विकास का भी अंकुर नहीं फूटता। बलिदान की भावना युवा पीढ़ी का शृंगार है। झाँसी की रानी, सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु, बिस्मिल, भगवती बाबू, चंद्रशेखर ‘आजाद’, शचीन्द्र सान्याल जैसे सहस्रों युवकों ने जीवन उत्सर्ग कर राष्ट्र-निर्माण की पहली शर्त ‘स्वतंत्रता’ का आह्वान किया था।
जला अस्थियाँ बारी-बारी / छिटकाई जिनने चिंगारी।
जो चढ़ गए पुण्य वेदी/ पर लिए बिना गरदन का मोल॥
रामधारीसिंह ‘दिनकर’ दूसरी ओर 1974 के आपत्काल ने जब राष्ट्र के राजनीतिक वातावरण को अंधकारमय कर दिया गया था तब लाखों युवकों ने इंदिरा जी की तानाशाही के विरुद्ध जेलें भर कर, जीवन की बलि देकर दूसरी आजादी के दर्शन कराए।
एक युवा शंकराचार्य ने देश में वैदिक-धर्म का प्रचार कर देश के चारों कोनों में चार मठ स्थापित कर देश को एकसूत्र में बद्धकर केवल 32 वर्ष की युवावस्था में ही शरीर त्याग दिया। सिद्धार्थ गौतम ने युवावस्था में माया-मोह को त्याग कर जीवन में ‘अहिंसा परमोधर्मः‘ की ध्वजा फहराई। भारतेंदु ने तो कुल 35 वर्ष के जीवन में ही उनहत्तर रचनाएँ देकर हिंदी साहित्य का युग परिवर्तन कर दिया। श्रीनिवास रामानुजम् ने मात्र 31 वर्ष की आयु में गणित के क्षेत्र में ‘ भारतीय फैलो ऑफ रायल सोसायटी’ का पुरस्कार जीता था। युवा-संन्यासी विवेकानंद ने तो अध्यात्म के प्रचार से विदेशियों को अध्यात्म का मतवाला बना दिया था। इन युवा देश-भक्तों के राष्ट्र-निर्माण के विविध क्षेत्रों में सहयोग के लिए राष्ट्र इनका चिर कृतज्ञ रहेगा और सदा इन पर गर्व करेगा। वास्तव में ये युवा भारत के गौरव थे।
खेल क्षेत्र तो है ही युवा पीढ़ी का यह राष्ट्र की शक्ति और वीरता का परिचायक है। खेल क्षेत्र में पी. टी. उषा, कणम मल्लेश्वरी, वेद पाठक, मुक्के बाज गुरुचरण, शाइनी विल्सन, लिंबाराम, पप्पू यादव, कपिलदेव, सोमा दत्ता, संत्यपाल, सचिन तेंदुलकर, शतरंज के खिलाड़ी आनंद विश्वनाथन, टेनिस के खिलाड़ी महेश भूपति तथा पेस की जोड़ी आदि खिलाड़ियों ने जो योगदान दिया है वह अपूर्व और अद्भुत है। यदि भारतीय खेल टीमें नवीनतम टेक्नीक से शिक्षण लें, राजनीति के कूट-चक्र को तोड़कर राष्ट्रीय चयन नीति से खिलाड़ी एशियाड, ओलम्पिक या अन्य विश्व प्रतियोगिताओं में उतरें तो वे निश्चय ही स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्र के गौरव को बढ़ाएँगे। यह भी राष्ट्र-निर्माण की एक शैली है।
युवा क्या नहीं कर सकते? यदि युवा शिक्षाविद् देश में जीवनोपयोगी शिक्षा को महत्त्व दे सकें; युवा शिक्षक निष्ठापूर्वक शिष्यों के अध्यापन में रुचि लें, युवा साहित्यकार राष्ट्रोत्थान के गीतों और लेखों से देशवासियों में राष्ट्रीयता के बीज बो सकें; यदि युवा डॉक्टर अपनी आय से अधिक मरीज के मर्ज को दूर करने का प्रण कर सकें; यदि युवा कृषक आधुनिक उपकरणों से सघन खेती में जुट जाएँ तो यह राष्ट्र-निर्माण में युवा पीढ़ी का चिरस्मरणीय सहयोग होगा। इससे राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शीघ्र खड़ा दिखाई देगा।
यदि युवा पीढ़ी सहकारिता में ईमानदारी से विश्वास प्रकट करे तो सहकारी समितियाँ, सहकारी बैंक, सहकारी उद्योग राष्ट्र के रूप को ही बदल सकते हैं। कृषि में, विपणन में, भंडारण में तथा अन्य कार्यक्रमों में संवर्द्धन ला सकेंगे। कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिल सकेगा। डेरी अर्थात् दुग्धोत्पादन, मात्स्यकी, कुक्कुट पालन तथा श्रमिक समितियाँ राष्ट्रीय विकास की सोपान बनेंगी।
उद्योग और वाणिज्य क्षेत्र राष्ट्र के आर्थिक निर्माण की आधारशिला हैं। युवा पीढ़ी देश में इनका जाल बिछाकर राष्ट्र-निर्माण में तीन प्रकार सहयोग दे सकती है – (1) आर्थिक उन्नति, (2) बेरोजगारी में कमी, (3) निर्यात द्वारा राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में सुधार। विज्ञान का क्षेत्र युवा वैज्ञानिकों से नए-नए आविष्कारों की अपेक्षा करता है। इससे जन-जीवन सरल और सुखी बनेगा।
इसी प्रकार अभिनय, संगीत तथा गायन के क्षेत्र में युवा पीढ़ी अपनी कलाप्रतिभा- प्रदर्शन कर राष्ट्र के भाल को उन्नत करते हुए जनता को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान कर सकती है। पर शर्त यह है कि इस क्षेत्र में वे यूरोप की भौंड़ी नकल न करें।
भारतीय समाज अनेक पाखंडों और कुप्रथाओं से ग्रस्त है। युवा पीढ़ी यदि कमर कसकर दहेज न लेने की कसम खा ले; ऊँच-नीच के भेद-भाव को हृदय से निकाल दे; नारी के शोषण; उत्पीड़न और बलात्कार का प्रबल विरोध करे; चोरी, छीना-झपटी का प्रतिरोध करे, रूढ़िग्रस्त परंपराओं और अहितकर प्रथाओं का विरोध करे तो यह राष्ट्र और समाज निर्माण में पुनीत सहयोग होगा।
आक्रोश और आंदोलन, हड़ताल और राष्ट्रीय संपत्ति की क्षति आज के युवा पीढ़ी की दुर्बलता है। इसलिए जैनेन्द्र ने कहा, ‘युवकों का उत्साह ताप बन कर न रह जाए। यदि उसमें तप भी मिल जाए तो और अधिक निर्माणकारी हो सकता है।’