संकेत बिंदु – (1) मोबाइल का आविष्कार नई क्रांति (2) मोबाइल का सौंदर्यीकरण (3) मोबाइल और विद्यार्थी (4) युवा वर्ग पथभ्रष्ट (5) उपसंहार।
‘चल चला चल, फकीरा चल चला चल‘ यह गीत एक फिल्म में आया और जीवन का लगभग अर्थ ही बदलने लगा। देश में आज अधिकांश व्यक्तियों के पास प्रायः ‘मोबाइल’ देखने को मिल जाता है, मोबाइल का हिंदी में अर्थ है-’ चलता हुआ’ या ‘चल चला चल।’ वैसे मोबाइल का आविष्कार व्यापारी वर्ग के लिए मुख्य रूप से हुआ, किसी व्यक्ति से तुरंत संपर्क किया जा सके, क्योंकि दूसरा टेलीफ़ोन तो केवल घर और कार्यालय या फैक्ट्री की मेजों पर सजा रहता हैं और अमुक व्यक्ति से संपर्क में कठिनाई होती थी। इस सुविधा को ध्यान में रखकर वैज्ञानिकों ने ‘मोबाइल’ नामक यंत्र का अविष्कार कर समाज में एक नयी क्रांति का सूत्रपात किया।
‘मोबाइल’ को कुछ व्यक्तियों ने ‘वाणीयंत्र’, ‘चलभाषा’ का नाम भी दिया, मगर आम जन-साधारण में मोबाइल ही लोकप्रिय हुआ। मोबाइल का लाभ इतना हुआ कि दूर गए व्यक्ति से जब चाहें तब संपर्क स्थापित किया जा सकता है और अपनी समस्या का समाधान हो जाता है। व्यापारी वर्ग, आमजन, साधारण वर्ग, अधिकारी वर्ग, नेता वर्ग, विद्यार्थी वर्ग इस मोबाइल सेवा से लाभान्वित हुआ है।
वर्तमान में मोबाइल का सौंदयीकरण हुआ है। बहुरंगी और कैमरा युक्त मोबाइल भी अब जनता के हाथों में है। यह भी देखा गया है कि मोबाइल में ‘एफ. एम.’ रेडियो, कैल्कुलेटर, कैमरा आदि अनेक क्रियाएँ आ गई हैं और मोबाइल अधिक सुविधाजनक हो गया है। मोबाइल के लिए देश में एअरटेल; हच, टाटा, रियालन्स, गरुड़ आदि अनेक कंपनियाँ काम कर रही हैं। कुछ कंपनियों ने फोन आने की जीवन भर की सुविधा ‘इनकमिंग’ की योजना लागू कर मोबाइल को जन-जन की पहुँच के लिए अधिक लोकप्रिय बना दिया है। देश-विदेश में कहीं भी मोबाइल के माध्यम से बात की जा सकती है।
मोबाइल सेवा एक जो सबसे बड़ा लाभ हुआ है कि तारों के झंझट से मुक्ति मिल गई है; अब न तार कटने का खतरा, न फ़ोन खराब होने का डर। बिना तार के मोबाइल हर समय काम करता है, जब चाहो अपने परिचित मित्र से बात कर लो, मोबाइल में यह सुविधा उपलब्ध है। मोबाइल व्यापारी, अधिकारी या अन्य कामकाजी के हाथ में कार्य क्षमता के अनुसार सही है और इसका प्रयोग भी उपयोगी है, लेकिन असमाजिक तत्त्वों ने मोबाइल का उपयोग गलत कार्य के लिए कर दिया है, यह काम समाज के लिए हानिकारक है। यही नहीं आज की युवा पीढ़ी ने तो केवल मोबाइल को मन बहलाने का साधन बनाकर समाज में विषैलापन फैलाने का जो घिनौना कार्य किया है, वह समाज के माथे पर कलंक है।
विज्ञान ने समाज के उत्थान के लिए और निरंतर प्रगति के लिए फ़ोन के क्षेत्र में एक नयी क्रांति मोबाइल के माध्यम से जो दी है उसका समाज ने और देश के युवा वर्ग ने गलत प्रयोग कर मोबाइल को ही बदनाम कर दिया है। मोबाइल की एस. एम. एस. प्रक्रिया के माध्यम से विद्यालय का छात्र वर्ग अश्लीलता के नए सोपान पार कर रहा है, यहाँ प्रश्न यह भी उठता है कि विद्यालय के छात्र वर्ग के हाथ में मोबाइल का क्या औचित्य है, छात्र- वर्ग कोई व्यापार या व्यवसाय तो कर नहीं रहा केवल विद्याध्ययन के, फिर उसे मोबाइल जैसे उपकरण की क्या आवश्यकता आ पड़ी? यह अभिभावक भी इसके लिए दोषी हैं जिन्होंने किशोर को शीघ्र युवा होने का प्रोत्साहन दे दिया। यदि ऐसा नहीं है तो फिर विद्यालय के एक छात्र द्वारा अपनी सहपाठी छात्रा के अश्लील चित्रों का अपने मित्रों के मोबाइल पर प्रसारण किस सभ्यता को उजागर करता है?
प्रश्न उठता है कि मोबाइल द्वारा इस प्रकार की विकृत मानसिकता की व्यवस्था का जिम्मेदार कौन है? मानव, समाज, नेता, शासक वर्ग का छात्र या अभिभावक या अध्यापक? यह सच है कि इस प्रकार की क्षणिक मानसिक संतुष्टि के लिए या थोड़े से पैसों के लालच में हम किसी की बहन-बेटी की इज़्ज़त बेचने में संकोच नहीं करते, किंतु यदि सोचा जाए कि वह बहन-बेटी हमारी अपनी भी तो हो सकती है !
युवा छात्र वर्ग के अतिरिक्त समाज के अन्य युवा वर्ग के हाथों में आया हुआ मोबाइल तो कब क्या गुल खिला दे, यह कल्पना भी सहज की जा सकती है। प्राचीनकाल में देश का युवा वर्ग देश का कर्णधार कहा जाता था। देश के युवा वर्ग ने ही अपनी स्वच्छ मानसिकता के बल पर देश को स्वाधीन कराया, मगर तब यह मोबाइल वाली संस्कृति हमारे देश में नहीं थी। अब मोबाइल संस्कृति के आने जाने से देश का युवा वर्ग और विद्यालय का छात्र वर्ग अपने लक्ष्य से भटक गया है, वह अपने दायित्व के निर्वाह से भी विमुख-सा हो गया लगता है।
आज यदि देखा जाए तो हाथ में मोबाइल लेकर देश की युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट हो रही है और यह युवा वर्ग की मानसिक कुंठाओं का ही परिणाम है, क्योंकि आज का बालक शीघ्र युवा होने की चाह लिए बैठा है। देश के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल को नहीं कैमरे जैसी चीज़ें विनाश की पराकाष्ठा है। एक विनाश जो आणविक है, परमाणु तकनीक आदि भौतिकता भी देन है, जिससे बस्ती, घर, मानव सुरक्षित होते हैं मगर मन और बुद्धि का विनाश हो जाता है, मन में कुंठा प्रबल होती है और सोचने की क्षमता शून्य होने लगती है और मन केवल वासना के अतिरिक्त और कुछ सोच नहीं पाता। यदि मोबाइल इस दिशा में इतना उन्नत न होता तो संभवतः युवी पीढ़ी पथ भ्रष्ट न हो पाती।
मोबाइल को केवल विशेष कार्य में प्रयोग में लाना तो हितकर है, मगर असमाजिक गतिविधियों में मोबाइल का प्रयोग व्यक्ति, समाज के लिए हानिकारक ही कहा जाएगा। हमें विज्ञान की इस उपलब्धि से लाभ लेना चाहिए और संभव हो सके तो इस मोबाइल के दुरुपयोग से स्वयं को बचाकर रखा जाए।