संकेत बिंदु – (1) युवावर्ग का असंतोष (2) राष्ट्र के लिए अभिशाप (3) भारत की राजनीति जिम्मेदार (4) सांप्रदायिक दंगों के कारण (5) राष्ट्र के विकास में बाधक।
युवा वर्ग में संतोष का अभाव ही युवा – असंतोष कहलाता है। वह स्थिति जिसमें किसी काम, वस्तु या उद्देश्य से युवा वर्ग का मन नहीं भरता, या उसे वह पर्याप्त नहीं जान पड़ता, तब उसका खिन्न या रुष्ट होना ही युवा-असंतोष है।
युवाओं के असंतोष में जोश होता है, बल होता है, साहस होता है, आत्मविश्वास होता है। इसीलिए उसकी परिणति सफलता में होती है। असफलता का शब्द उसके कोश में है ही नहीं। इसलिए ब्रिटेन के विख्यात प्रधानमंत्री डिजरायली ने कहा या, ’Almost everything that is great has been done by youth.’ अर्थात् प्रत्येक महान कार्य युवकों द्वारा किया गया है। और उसे कार्य प्रेरणा उसके अंत:करण के असंतोष ने दी है।
युवा-असंतोष आग की चिंगारी की तरह फैलता है। उसकी जवानी उस असंतोष को भड़काने में घी काम करती है। मृत्यु से निडरता, उसके असंतोष को ज्वालामुखी की तरह भड़काता है। मंडल आयोग के प्रति युवाओं के असंतोष ने ही कतिपय युवाओं को आत्म-दाह जैसे दुःसाहस पूर्ण कार्य के लिए प्रेरित किया, जिसने राष्ट्र-हृदय को हिला दिया। फलतः सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भी मंडल आयोग की रिपोर्ट को तत्काल लागू करने पर रोक लगानी पड़ी।
युवा-असंतोष फूटना जानता है, भड़कना जानता है, सर्वस्व अर्पण करना जानता है, पर झुकना कम जानता है। परतंत्रता के विरुद्ध युवा असंतोष ही था, जो आंदोलन का प्राण बनकर उसे शक्ति प्रदान करता रहा। आपत्काल में इंदिरा – तानाशाही को झुकाने में युवा असंतोष ही मुख्य कारण था।
युवा-असंतोष जब अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता, तब वह अपने समाज और राष्ट्र के लिए अभिशाप बनता है। समाज द्रोही बन समाज का अहित करता है। आतंकवादी बन राष्ट्र का ध्वंस करता है। अपनी आत्मा को अभिशप्त करता है तो सुरासुंदरी में डूब जाता है। कश्मीर, असम, आन्ध्र, बिहार आदि प्रदेशों का आतंकवाद वहाँ के युवा-असंतोष की निराशात्मक स्थिति का परिणाम है। सुरासुंदरी का प्रेम, ड्रग्स का प्रयोग, अपहरण, बलात्कार का चसका, विद्रोह प्रवृत्ति युवा-असंतोष की निराशा से उत्पन्न नियति ही तो है।
युवा-असंतोष का मुख्य कारण आज भारत की राजनीति है। जब युवक देखता है कि कॉलेज में 70 प्रतिशत अंक वाले को प्रवेश नहीं मिलता और 30 प्रतिशत अंक वाला शान से प्रवेश पाता जाता है; जब वह देखता है कि सेवा में नियुक्ति योग्यता पर नहीं होती अपितु वह कुछ लोगों की पैतृक संपत्ति बन जाती है, जब वह देखता है कि बेईमानी से अर्थ, यश और सत्ता की प्राप्ति होती है, जब वह देखता है कि जीवन-मूल्यों को समाज- सुधारकों तथा आदर्श-पुरुषों द्वारा रौंदा जा रहा है, तो उसका हृदय विद्रोही बन जाता है। यह विद्रोह ही दूसरे शब्दों में असंतोष है।
युवा-असंतोष यदि अपने वर्ग, समाज अथवा राष्ट्र के हितार्थ है तो लाभप्रद है, यदि निजी स्वार्थों से प्रेरित है, समाज और राष्ट्र के अहित की प्राचीर पर खड़ा है तो हानिकर है। युवा असंतोष यदि न्याय और सत्य की आधारशिला पर प्रतिष्ठित है तो वह लाभकर है। इसके विपरीत वह क्षुद्र स्वार्थों और महत्त्वाकांक्षाओं का भिति पर स्थित है तो वह हानिकर है।
पराधीनता के दिनों में ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध युवा-असंतोष के कारण सहस्त्रों युवकों ने पढ़ाई बंद कर दी, नौकरी छोड़ दी, विदेशी परिधान का बहिष्कार किया। सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में युवा असंतोष राजकीय संपत्ति के विध्वंस, लूट और बगावत में परिणत हुआ। यह असंतोष अंग्रेजी-सत्ता के विरुद्ध था, इसलिए लाभकर था, क्योंकि इसमें राष्ट्र हित निहित था।
इसके विपरीत सन् 1946-47 में कट्टर सांप्रदायिक भावना के कारण मुस्लिम युवकों में असंतोष फूटा। उस असंतोष में लाखों हिंदू मारे गए, वे घर-बार छोड़कर दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हुए, अरबों की संपत्ति स्वाहा हुई। इसमें जातीय स्वार्थ था, जिससे भारत का विनाश हुआ, इसलिए यह हानिकारक सिद्ध हुआ। भारत-विभाजन युवा- मुस्लिम असंतोष का विषफल ही तो था।
जब सत्ताधारी सत्ता के मद में चूर होकर विवेक-शून्य हो जाते हैं, तब वे अपनी सूझ- बूझ, विचार-निर्णय को ईश्वरीय आदेश के समान सत्य मानते हैं, तब युवा-असंतोष उनके उन झूठे मुखौटों को नोचता है। उनकी कथनी और करनी की दुमुँही चाल का परदा फास करता है। राष्ट्र जीवन का यथार्थ-पथ दर्शाता है। तब युवा असंतोष लाभकर कहलाएगा। सत्ता के विरुद्ध विद्रोह होते हुए भी वह देश-भक्ति की पहचान होगा। आपत्काल का युवा-असंतोष भारत के लिए कितना लाभकर रहा, इसके वर्णन से इतिहास के पृष्ठ रंगे पड़े हैं। स्वयं को ‘भारत माता’ मानने वाली इंदिरा का पतन भारत के लिए वरदान बना।
इसी प्रकार का दूसरा उदाहरण पिछले दशक का असम युवा असंतोष था। इसमें अपने प्रदेश के विकास और समृद्धि की भावना थी, पर था यह भी स्व-सत्ता के विरुद्ध। प्रदेश का हित होने के कारण यह लाभकर सिद्ध हुआ। परिणामतः पाँच वर्ष के लिए शासन ही युवा-असंतोष के नेताओं ने संभाल लिया। इसके विपरीत कश्मीर, त्रिपुरा, बिहार, नक्सलवादी, बोड़ो असंतोष वर्ग-विशेष के हितार्थ है। उनके अपने संपूर्ण प्रांत तथा भारत के लिए घातक है। इसलिए यह हानिकर है।
दूसरी ओर, जब युवा वर्ग परीक्षा स्थगित करने, नकल करने, फीस कम करने, बस-रेल किराए कम करने, स्वच्छंद आचरण करने, शराब और ड्रग्स में मदमस्त होने के लिए अपना असंतोष प्रकट करे तो यह न केवल उनके लिए अपितु समाज और राष्ट्र के लिए हानिकर होगा।
युवा-असंतोष का लाभकर या हानिकर होना उसके आचरण और उद्देश्य की सफलता पर निर्भर करता है। नेपाली युवकों का प्रजातंत्र के निमित असंतोष सफल रहा, परिणामतः लाभकर सिद्ध हुआ। प्रजातंत्र प्रणाली लागू करने के उद्देश्य से चीन में युवा असंतोष सैनिक बल द्वारा दबा दिया गया तो वह उनके अपने तथा चीन राष्ट्र के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ।