संकेत बिंदु – (1) राष्ट्र के प्राण और कर्णधार (2) युवाओं का गौरवशाली इतिहास (3) युवा शक्ति पथ – भ्रष्ट (4) नैतिक मूल्यों का पतन (5) युवा वर्ष का गलत प्रयोग।
युवा शक्ति राष्ट्र का प्राण तत्व है |वही उसकी गति है, स्फूर्ति है, चेतना है, और है राष्ट्र की प्रज्ञा। युवाओं की प्रतिभा, पौरुष, तप, त्याग और गरिमा राष्ट्र के लिए गर्व का विषय है। युवा वर्ग का पथ, संकल्प और सिद्धियाँ राष्ट्रीय पराक्रम और प्रताप के प्रतीक हैं। उसकी शक्ति कालजयी है, अजर है, अमर है।
युवा शक्ति राष्ट्र की दूसरी पंक्ति है, कल की कर्णधार है जिसने देश का नेतृत्व करना है और अपनी शक्ति, सामर्थ्य और साहस से देश को परम वैभव तक पहुँचाने का दायित्व स्वीकारना है।
युवा शक्ति क्या है? कठोपनिषद् ने उत्तर दिया, ‘जिनकी ऊर्जा अक्षुण्ण, जिनका यश अक्षय, जिनका जीवन अंतहीन, जिनका पराक्रम अपराजेय, जिनकी आस्था अडिग और संकल्प अटल होता है, वह युवा है।’ कोषकार ने कहा, ‘16 से 35 साल तक के युवाओं की ताकत’ युवा शक्ति है।
युवा शक्ति की देश सेवा समाज सेवा और विश्व कल्याण की कथाएँ इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। युवा नचिकेता ने मृत्यु के अधिष्ठाता यमराज तक को झुका दिया। युवक सिद्धार्थ भरी जवानी में सत्य की खोज के लिए चल पड़ा। भारतीय संस्कृति के पुनरुद्धारक शंकराचार्य 32 वर्ष की आयु में समग्र भारत को एकता के सूत्र में गुम्फित कर वेदांत दर्शन की विजय पताका दिग्दिगंत में फहरा गए। 16 वर्ष का युवा शिवा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध कमर कसकर खड़ा हो गया। वीर सावरकर, चाफेकर बंधु, मदनलाल धींगड़ा, चंद्रशेखर ‘आजाद’, अशफाकुल्लाखाँ, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि कितने युवा थे जिनके अस्त्रों से अग्नि की ज्वालाएँ फूटीं थीं, ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भस्म करने के लिए। 23 वर्ष की आयु में आर्य भट्ट और 17 वर्षीय रामानुजम ने गणित और ज्योतिष में जो चमत्कार किए, वे आज भी अद्वितीय हैं। केवल 14 वर्ष की अल्पायु में ही संत ज्ञानेश्वर ने श्रीमद्भगवद्गीता पर अपूर्व भाष्य लिखकर सबको चमत्कृत कर दिया।
पर, आज अधिकांश युवा शक्ति पथ भ्रष्ट हो रही है, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय चरित्र के नाम पर वह शून्य है। स्वतंत्रता के पश्चात् ‘धर्म निरपेक्षता’ के नाम पर धर्म से परहेज की मनोवृत्ति पनपाई गई, पर धार्मिक उत्सवों में भाग लेने के लिए उकसाया गया। सत्ता- सुरक्षा के लिए खोखले मस्तिष्क वाले प्रशासनिक ढाँचे को जुटाया गया, जिसे मनचाहे ढंग से संचालित किया जा सके। बौद्धिक चिंतनशील समाज के बदले चाटुकारों और पद-लोलुपों की वह भींड़ बटोरी गई, जिसने राजाओं नवाबों के चरणों को भी नीचा दिखा दिया। सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री अरुणा ब्रूटा की धारणा है कि- ‘टेलीविजन और इंटरनेट की दुनिया ने युवकों के लिए सूचनाओं का अंबार लगा दिया है। इसलिए उनका आई. क्यू. अर्थात् बुद्धिलब्धि काफी ऊँचा होता है। इस ‘हाई- फाई’ सूचना तंत्र ने उनकी मौलिक कल्पना-शक्ति व तार्किक क्षमता को नष्ट किया है। वे स्थितियों से निबटने और विरोधी वातावरण में खुद को संतुलित रखने में अक्षम हैं। उनकी सहन-शक्ति कमजोर हुई है। वे जल्द होशो हवास खो बैठते हैं। फलतः उसका संज्ञानात्मक विकास (कॉगनिटिव डेवलपमेंट) कम हो पाता है और मनोवेगपूर्ण व्यक्तित्व (इम्पल्सिव पर्सनॉल्टी) का स्वामी बन जाता है। उसके लिए उसकी मर्जी ही सब कुछ हो जाती है।
नैतिक मूल्यों से हीन आज का युवा सड़कों पर नारियों के आभूषण झटकता है, पुरुषों के पौरुष को चाकू और पिस्टल से चुनौती देता है। लूट मचाता है, चोरी करता है, बैंको में डाके डालता है। तत्त्वहीन आंदोलन खड़े करता है, दूसरी ओर सुंदरी नारी को संगिनी बनने को विवश करता है, उसके यौवन को लूटता है, उससे बलात्कार करता है। कई वर्ष पूर्व युवा कांग्रेस के नागपुर-अधिवेशन में युवाओं के नंगे नाच से वेश्याओं तक का तोबा करना; मास्को के अंतर्राष्ट्रीय युवा सम्मेलन में रूसी खोजी कुत्तों द्वारा होटल के बाहर झाड़ियों में युवा-युवतियों का नग्नावस्था में पकड़े जाना भारतीय युवा शक्ति की विकृति का परिचायक है। आज का भारतीय युवक सिगरेट, शराब, भाँग, हेरोइन तथा अन्य नशीले पदार्थों में आत्मविस्मृत रहना चाहता है। नशा और यौन आनंद चाबी भरे यंत्र की तरह और भी जल्द स्थिर हो जाते हैं और तब केवल शेष बचता है – ‘एक नपुंसक आक्रोश, सभ्यता के प्रति, सभ्यता के समस्त अवदानों के प्रति, सभ्यता की सभी मर्यादाओं के प्रति। पलायन निषेध में आकर चुक जाता है।’
दूसरे विश्वयुद्ध के मध्य जन्मी पीढ़ी ने 1965 के दौर में विश्वभर में विद्रोह, बगावत की आवाज उठाकर विश्व की नींद हराम कर दी थी। उसके बाद की जन्मी पीढ़ी को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 17 दिसंबर, 1979 को अपने 38वें सत्र में 1985 वर्ष युवा-शक्ति को समर्पित किया, उसकी प्रगति, विकास तथा शांति के लिए।
1985 का युवा वर्ष आया और पता नहीं कब बीत गया। उस अवसर पर राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, घोषणाओं, प्रस्तावों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सैर-सपाटों, मौज-मस्ती के क्षणों के अतिरिक्त युवा वर्ग को क्या मिला? राष्ट्र-भक्ति, सांस्कृतिक प्रेम और शिष्ट सभ्यता की पावनज्योति से कितने युवा हृदय प्रज्वलित हो सके?
युवा शक्ति समाज, धर्म, राष्ट्र और विश्व की अणु शक्ति है। इसका प्रयोग इसके परिणाम को पूर्व चेतावनी है। अणु का सदुपयोग मानव का कल्याण करेगा, दुरुपयोग विध्वंस और विनाश का तांडव रचेगा। सत्ताधिकारी यदि युवा शक्ति के दिग्भ्रांत, दूषित तथा दुर्गंधपूर्ण प्रवाह को नैतिकता, सुसंस्कृति तथा राष्ट्रीयता की ओर मोड़ पाए, तो वे राष्ट्र तथा विश्व में देवदूत सिद्ध होंगे, मसीहा बनकर पूजे पाएँगे।