चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ( 1879-1972 )
स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य (राजाजी) का जन्म सेलम जिले के एक गाँव में हुआ था। गांधी जी के आह्वान पर दूसरे दशक में अपनी वकालत छोड़कर पहले सत्याग्रह आंदोलन में सम्मिलित हो गए। दक्षिण भारत में राजनैतिक गतिविधियों को संगठित किया। गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम के प्रति समर्पित होते हुए भी और गांधी जी को अपना नेता मानते हुए भी, उनके विचारों से जहाँ लगा वहाँ अपनी असहमति भी दिखाते थे। राजा जी भारत छोड़ो आंदोलन के पक्षधर नहीं थे। ये पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने पाकिस्तान निर्माण की बात स्वीकार की थी। ये समझ गए थे कि देश विभाजन अब एक वास्तविकता है। बाद में कांग्रेस से मतभेद होने पर अपनी अलग स्वतंत्र पार्टी का गठन किया। 1937-39 तक मद्रास के मुख्यमंत्री, 1947 में बंगाल के राज्यपाल और 1947-50 तक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल। राजा जी एक बहुत अच्छे कूटनीतिज्ञ, राजनेता, विद्वान, लेखक, वक्ता तथा न जाने क्या-क्या थे । उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें तमिल में लिखी रामायण तथा महाभारत हैं।
प्रस्तुत वक्तव्य उन्होंने प्रथम स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त 1947) के अवसर पर बंगाल के राज्यपाल की हैसियत से विधानसभा में दिया था।
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हमारी स्वतंत्रता
भारतवासियों को आज के बाद अपना भाग्य निर्माण करने का निर्बंध अधिकार दे दिया गया है। आओ, आज हम मिलकर उन सबको अपनी मौन श्रद्धांजलि अर्पित करें जिन्होंने इस दिन के लिए अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं, विद्रोह और संघर्षों के द्वारा कड़ी मेहनत की। जो दुर्भाग्य से आज हमारे बीच नहीं हैं, जिससे कि वे अपनी मेहनत और अपनी तकलीफ के परिणामों को स्वयं देख सकें ।
हमारा आनंद उसी दशा में पूर्ण होता यदि इस स्वतंत्रता के साथ देश का विभाजन न हुआ होता। लेकिन हमें आशा रखनी चाहिए कि इस स्वतंत्रता और स्वशासन प्राप्ति के साथ जुड़ी हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के घटक शीघ्र ही समाप्त हो जाएँगे और ये दोनों स्वतंत्र देश एक बार फिर इकट्ठे होकर एक कुशल और समझदार संघ बना सकेंगे।
जिसकी आजकल संविधान सभा में चर्चा चल रही है, वह नया संविधान बनकर लागू होगा। आपको अपने प्रदेश का ‘जनता द्वारा निर्वाचित’ राज्यपाल मिल जाएगा (उस दिन तक राज्यपाल की भावी स्थिति स्पष्ट नहीं थी, इसका तात्पर्य यही था)। जब तक आपकी अपनी निर्वाचित सरकार नहीं बन जाती तब तक सरकार का संचालन भारतीय सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत होगा। लेकिन इसमें एक महत्त्वपूर्ण संशोधन है कि कोई भी ऐसा विषय नहीं होगा जिसमें राज्यपाल विधायिका के प्रति उत्तरदायी मंत्रिमंडल की सलाह के बगैर कोई काम नहीं करेगा।
विधान सभा के सदस्य होने के नाते, आज के बाद आपके पास अपनी सरकार की नीतियों के निर्धारण के अप्रतिबंधित अधिकार एवं कर्तव्य होंगे। प्रधानमंत्री तथा उनके साथी जब तक आपके विश्वासपात्र हैं तब तक इस राज्य की सरकार की सभी जिम्मेदारियों का बोझ उठाएँगे। यद्यपि मैं भी अपने अनुभवों और विचारों को उनके सामने रखने या कहने के लिए तैयार रहूँगा । संवैधानिक राज्यपाल होने के नाते मैं सदा उनकी सहायता के लिए तत्पर रहूँगा।
बंगाल के लोगों की सेवा के लिए मेरी नियुक्ति हुई और मैं इसके लिए उसी भाव से सहमत हूँ जो भाव श्रीमद्भगवद् गीता में कहा गया है। आप इसे मेरी मूर्खता भी कह सकते हैं। किसी भी व्यक्ति को जो भी कर्तव्य करने को मिले, चाहे वह अच्छा है या बुरा, उसे वह स्वीकार कर लेना चाहिए और अपनी योग्यता के अनुसार पूरा करना चाहिए। आप सबकी सहायता और सद्भावना से मुझे आशा है। कि मैं आपके काम आ सकूँगा।
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साम्राज्यवाद और विदेशी आधिपत्य के खिलाफ हमारी लड़ाई अब समाप्त हो गई है लेकिन समाज के पुनर्निर्माण का काम बहुत बड़ा और कठिन काम है। चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार और पागलपन की सीमा लाँघती हिंसा को हमें नियंत्रित करना है। स्वतंत्रता के रूप में हमें एक अवसर मिला है। यह अवसर हमारे लिए बहुत ही अनुकूल सिद्ध हो सकता है यदि हम लगन और अपनी पूरी जिम्मेदारी से काम करें। पूरा विश्व हमारे प्रयत्नों को अत्यधिक आशाओं के साथ देख रहा है क्योंकि भारत के बारे में, भारत की संस्कृति, रत के संसाधन, इसका चरित्र, इसके लोगों की महानता के बारे में पूरे विश्व की बहुत ही अच्छी राय है। इस संसार में सभी कुछ पूर्ण नहीं है और ब्रिटिश सत्ता के हटते ही सभी कुछ तुरंत ही अपने आप ठीक हो जाएगा, यह भी संभव नहीं है। बहुत-सी ऐसी कठिनाइयाँ हैं जिनका समाधान शांतिपूर्ण ढंग से किया जा सकता है। हिंसा अथवा विभिन्न प्रकार के अवरोध, असहयोग और सीधी कार्यवाही, जो विदेशी हुकूमत के खिलाफ हमारे संघर्ष के कारण शायद आवश्यक और उचित भी थी, आज अर्थहीन है। अब अपने * ही लोकप्रिय नेता अपने शासन को सँभाल रहे हैं और एक नया संविधान बनाने में लगे हैं।
बहुसंख्यक लोगों के ऊपर अब एक अतिरिक्त जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यक लोगों के वैधानिक हितों की रक्षा करें और उनमें पूरी सुरक्षा और विश्वास की भावना भरें। देश में घटित हाल की घटनाओं ने निसंदेह काफी हद तक दिलों में चोट पहुँचाई है, इस कटुता, अंधी और अनुचित हिंसा से किसी को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। यदि इन हिंसात्मक और घृणा की भावनाओं से हमें कुछ क्षणों के लिए मानसिक संतुष्टि मिल भी जाए, आगे चलकर हमें और हमारी अगली पीढ़ियों को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
सभी देशों के बड़े, बुद्धिमान लोगों का अनेक बार के संघर्षों और कोशिशों के बाद यही निष्कर्ष है कि पिछली बातों को भूल जाओ और क्षमा करो का सिद्धांत ही सबसे अच्छा है। यदि संसार को प्रगति और प्रसन्नता के पथ पर चलना है तो हिंसा का रास्ता छोड़ना ही पड़ेगा। हमारा सबसे पहला उद्देश्य अपनी योजनाओं में कमी किए बगैर सक्षम, कुशल और ईमानदार प्रशासन देना है। यहाँ तक कि इससे भी पहले, मैं यह कहना चाहूँगा कि हर स्थिति में शांति और व्यवस्था की पुनर्व्यवस्था करना आवश्यक है ।
आओ, हम सब मिलकर प्रार्थना करें कि हम एक बार फिर बंगाल को भारत में प्रथम स्थान दिला सकें जो पूर्णतया स्वतंत्र हो । इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमें अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिए। इस कार्य में यदि मेरा कोई विनम्र सहयोग हो सके तो यह मेरे लिए गौरव की बात होगी, विशेषकर अपने जीवन के इस अंतिम पड़ाव पर ।