Meri Rachnayen

कौए की व्यथा

The best poem on Koe kii vyatha

सुनो, सुनो एक कथा सुनो

प्यारे बच्चों एक कथा सुनो

सुनो, सुनो एक कथा सुनो

काले कौए की व्यथा सुनो

सुनो, सुनो एक कथा सुनो

कौआ बोला मैं हूँ काला

मुझको नहीं किसी ने पाला

बोली मेरी है कुछ ऐसी

जिसने सुना उसी ने टाला

मेरा जीवन है दुखों से भरा

सबने किया है इसे और गहरा

कौआ ये सब बोल रहा था

दुख दिल के वो खोल रहा था

सब बैठे पंछी उसे सुन रहे थे

मन ही मन कुछ बुन रहे थे

कौए की सुन अब तोता बोला

आखिर उसने सच ही तो खोला  

अरे कोए! तू क्यों रोता है?

धीरज अपना क्यों खोता है?

तेरे साथ ही न्याय हुआ है

तेरा नहीं व्यवसाय हुआ है

देखो हमको, हम पकड़े जाते

पिंजरों में हम, जकड़े जाते

रूप हमारा अभिशाप बना है

स्वच्छंद गगन में उड़ना मना है

तुम उड़ते हो नील गगन में

बेफिक्री से मस्त मगन में

श्राद्ध में तुमको लोग बुलाते

तरह-तरह के पकवान खिलाते  

तुम बोलो तो आते मेहमान

ये है तुम्हारी बोली की शान  

क्यों तुम खुद को कोस रहे हो

क्यों दूसरों को क्यों दोष रहे हो

तुम जैसे हो अच्छे भले हो

पंछी में तुम सबसे पहले हो

मेरी बात तुम लेना मान

कौए भाई, न होओ परेशान।  

अविनाश रंजन गुप्ता  

About the author

हिंदीभाषा

Leave a Comment

You cannot copy content of this page