मेरा अनुभव तेरा वैभव
बने यही है चाह मेरी
हो उत्तरोत्तर
उन्नति तेरी
ऐसी ही हो राह तेरी।
ऐसी अलख आ जाए तुझमें
जो तेरे सब भ्रम हरे
मेरा मन उस परम पिता से
निसदिन विनती यही करे।
करे परख तू
तीक्ष्ण दृष्टि से
चाहे संशय की हो वृष्टि
अटल रहे तू
सत के पथ पर
खड़ी हो चाहे सकल मही।
अनुभव, अलख और परख
जो जीवन में पा जाता है,
उसका चरित्र स्वत: ही
अनुकरणीय बन जाता है।
मेरी दृष्टि में तुम भी
कुछ ऐसा ही कर जाओगे,
अपनी जीवनी की प्रभा से
चतुर्दिग उजियारी फैलाओगे।
अविनाश रंजन गुप्ता