Meri Rachnayen

A Poem दूसरे की कलम से …

माँगी थी दुआ कितनों ने ख़ुदा से

कि मुझे मेरा भविष्य दिखा दे

शायद उस दिन

ख़ुदा भी फुरसत में थे

फरियादियों की दुआएँ कुबूल हुईं

बस उस दिन के बाद से ही

उनके दिन का चैन

और…

रातों की नींदें गुल हुईं

क्योंकि …

ये भविष्य देखने वाले

निरा निकम्मे थे

निपट नासमझ थे

महामूर्ख थे

उन्हें ये तक इल्म न हुआ

भविष्य वर्तमान से खिलता है

अतीत वर्तमान से बनता है

प्रतिष्ठा कर्म से आती है

धर्म हमें सज्जन बनाती है।

बस इत्ती-सी बात

जो समझ जाता है

ज़िंदगी को हसीन

और ….

मौत को तारीख बनाता है।

अविनाश रंजन गुप्ता

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हिंदीभाषा

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