यादें अच्छी होंगी तो
स्मित रहेगी अधरों पर
यादों का सुंदर होना तो
आधारित है हर रिश्तों पर
रिश्तों का ताना-बाना
बुनने से पहले
ये याद रखो
रिश्ते कम हों
पर मणि सम हों
सुख-दुख में अहम् (मैं)
अवश्य वयं (हम) हो
यहाँ प्रेम भी हो
प्रतिकार भी हो
डाँटने का अधिकार भी हो
न हो तो वह हो अहं का भाव
निहित हो केवल हितम् का भाव
ऐसे रिश्ते हो जीवन में
तो जीवन सुखमय बन जाता है
जितना भी संघर्ष हो करना
संघर्ष सहर्ष हो जाता है।
अविनाश रंजन गुप्ता