Meri Rachnayen

A poem on truth सच्चाई

हम मिल आए जगत नियंता से

बिना किसी अपोइंटमेंट के

कुर्सी पर बैठे चंद लोग

खुदको ही बड़ा मानने लगे हैं खुदा से

उनके ओहदे का गुरूर

उनके रुतबे का सुरूर

उन्हें बनाता है मगरूर

लेकिन एक दिन

ये सूरत बदलेगी ज़रूर

क्योंकि ….

दुआ लगे न लगे

बद्दुआ ज़रूर लगती है

ये तो रूह की आह से निकलती है

इन ज़हीन जाहिलों को

क्यूँ नहीं समझ आती

ये मामूली-सी बात

अभी चार दिन की चाँदनी है

फिर अँधेरी रात। 

अविनाश रंजन गुप्ता

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हिंदीभाषा

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