Meri Rachnayen

अमावट

Amawat Hindi Short story by avinash ranjan gupta

किसी कारण से घर के मुख्य सदस्यों को गाँव जाना था। शायद गाँव में कुछ बात हो गई थी। तय यह हुआ कि छह सदस्यों के परिवार में माता-पिता और इकलौती बहन ही जाएँगे और शेष तीन भाई घर पर ही रहेंगे। ऐसे में घर के सबसे छोटे बेटे को रोना आ गया। कारण यह नहीं था कि वह माँ-पिता से अलग हो रहा है। कारण यह था कि वे लोग घूमने जा रहे हैं। बच्चे का मन कि वह भी घूमने जाए। आखिर वह तो केवल सात साल का है, परेशान भी नहीं करता फिर उसे क्यों छोड़ दिया जा रहा है। उसे शांत करने के लिए माँ ने उससे पूछ ही लिया कि बोल तुझे क्या चाहिए। बच्चा दिल मसोस कर रह गया। उसे पता चल गया कि वह नाराज़ हो या दुखी, उसे वे अपने साथ लेकर नहीं जाएँगे। इसलिए उसने गाँव से अपने लिए अमावट लाने की बात कही और माँ ने हामी भी भरी। सत्रह दिनों के बाद जब वे गाँव से लौटे तो बच्चा अपनी माँ को देखकर प्रसन्न हो गया। आते ही उसने पूछ लिया, “माँ अमावट”। माँ ने सिर हिलाया – मानो वह आश्वासन दे रही हो कि मैंने लाया है। अगले दिन शाम को चर्चा-परिचर्चा के साथ कि किसके हिस्से कितनी पैदावार आई, लाए गए सारे सामान खोले गए तो बच्चा वहीं बैठा किसी पुड़िया से अमावट के निकलने का इंतज़ार कर रहा था। सामानों की सारी थैलियाँ खुल जाने के बाद भी जब अमावट नहीं निकला तो उसने माँ से फिर पूछा, “माँ अमावट” इस बार माँ ने टालू अंदाज़ में कहा, “अरे! वो तो भूल गए थे।” बच्चे ने यह महसूस किया कि, “माँ अमावट नहीं, मुझे भूल गई थी।” रुआँसा-सा चेहरा लिए वह वहाँ से निकल पड़ा लेकिन माँ की चर्चा-परिचर्चा में थोड़ा भी व्यवधान नहीं पड़ा।

1992 में घटी इस घटना के बाद बच्चा जब भी अमावट खाता है तो उसे यह दुखद वाक़या याद हो आता है।        

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